सर आर्थर टामस क्विलरकूच

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लेख सूचना
सर आर्थर टामस क्विलरकूच
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3
पृष्ठ संख्या 258
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक सुधाकर पांडेय
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1976 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक परमेश्वरीलाल गुप्त

सर आर्थर टामस क्विकलरकूच (1863-1944 ई.) अंग्रेज कवि, उपन्यास लेखक, कहानीकार और समालोचक।21 नवंबर,1863 को कार्नवाल जन्म और आक्सफोर्ड के क्लिप्टर कालेज और ट्रिनिटी कालेज में शिक्षा। वहीं1886 में प्राचीन साहित्य के अध्यापक नियुक्त हुए।1899 ई. में लंदन से प्रकाशित होनेवाली पत्रिका ‘स्पीकर’ के संपादक बने।1910 ई. में उन्हें ‘सर’ की उपाधि प्राप्त हुई ;1912 ई. में वे कैं ब्रिज विश्वविद्यालय में अंग्रेजी साहित्य के प्रोफेसर नियुक्त हुए और जीज़स कालेज के फेलो निर्वाचित हुए।1937 ई. में वे अपने नगर के मेयर चुने गए।

जब वे आकसफोर्ड में थे तभी उनकी ख्याति कवि के रूप में हो गई थी। उनकी अधिकांश कविताएँ1896 में ‘पोयम्स ऐंड बैलेड्स’ के नाम से प्रकाशित हुई हैं। वे आरंभ में अपने लिये केवल ‘क्यू’ अक्षर का प्रयोग करते थे। यह ‘क्यू’ इतना प्रचलित हुआ कि वे समालोचकों और लेखकों के बीच इसी अक्षर से ही जाने और पहचाने जाते हैं।

1895 में उन्होंने16वीं-17वीं शती के गीतकारों की रचनाओं का संग्रह ‘द गोल्डेन पाम्प’ प्रकाशन किया। उसके बाद विभिन्न कालों के अंग्रेजी कवियों की प्रतिनिधि रचनाओं का तीन संग्रह प्रकाशित किए। वे हैं--‘आक्सफोर्ड बुक ऑव इंगलिश वर्स’ (1900), ‘आक्सफोर्ड बुक ऑव बैलेड्स’ (1910) और ‘आक्सफोर्ड बुक ऑव विक्टोरियन वर्स’ (1913)।

1887 में उन्होंने अपना पहला उपन्यास ‘डेड मैंस राक’ प्रकाशित किया जो आर. एल. स्टीवेंसन की रोमांटिक कहानियों के ढ़ग पर लिखा गया था। ‘द एस्टानिशिंग हिस्ट्री ऑफ टोरी टाउन’ (1888), ‘द स्पैल्डिड स्पर’ (1889), ‘द शिप ऑव स्टार्स’ (1889) उनके अन्य प्रख्यात उपन्यास हैं। रोल काल ऑफ रीफ शीर्षक से उन्होंने भूतकथा भी लिखी है।

उनकी समालोचनाओं और निबंधों के अनेक संग्रह हैं। उनमें एडवेंचर्स इन क्रिटिसिज्म (1896), आन द आर्ट ऑफराइटिंग (1916), शेक्सपियर वर्क मैनशिप (1918), स्टडीज इन लिटरेचर (1918;1922), आन द आर्ट रीडिंग (1920), पेटर्निटी इन शेक्सपियर (1939), द पोयअ एज सिटिजन ऐंड अदर पेपर्स (1934) प्रख्यात हैं।12 मई,1944 ई. को फ्रावे (कार्नवाल ) में उनकी मृत्यु हुई।


टीका टिप्पणी और संदर्भ