मार्कस आंतोनियस

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लेख सूचना
मार्कस आंतोनियस
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1
पृष्ठ संख्या 328
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक सुधाकर पाण्डेय
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1964 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक डॉ. भगवतशरण उपाध्याय


आंतोनियस, मार्कस (ल.83-30 ई.पू.) इसी नाम के पिता का पुत्र और पितामह का पौत्र था। वह रोम के प्रसिद्ध जनरल जूलियस सीज़र का बड़ा प्रिय और विश्वासपात्र था। वह स्वयं रणकुशल सेनापति और असाधारण योद्धा था। दो-दो बार सीज़र की अनुपस्थिति में वह इटली का उपशासक (डेपुटी गवर्नर) हुआ । वह पहलेे त्रिब्युन, फिर सीज़र के साथ काँसुल रहा। जब षडयंत्रकारियों ने सिनेट में सीज़र को मार डाला और अब शक्ति उसके और सीज़र के मनोनीत अधिकारी ओक्तावियन के हाथ आ गई।

पर दोनों में खूब संघर्ष चला। परिणामत: आँतोनी को गॉल भगना पड़ा, पर वहाँ से वह लेपिदस के साथ एक बड़ी सेना लेकर रोम पर चढ़ आया। जो नया समझौता हुआ उससे गॉल आंतोनी को मिला, स्पेन लेपिदस का एवं अफ्रीका, सिसिली और सार्दीनिया ओक्तावियन को। फिलिप्पी की लड़ाई में उसने ब्रूतस और प्रजातंत्रवादियों का बल नष्ट कर दिया। अब आँतोनी ग्रीस और लघुएशिया की ओर बढ़ा, इसी यात्रा में वह मिस्र की आकर्षक ग्रीक रानी क्लियोपात्रा के प्रणय के वशीभूत हो गया। जब होश में आकर वह रोम लौटा, तब उसने देखा कि साम्राज्य का स्वामी ओक्तावियन हो गया है। वैमनस्य पर्याप्त बढ़ा, पर ओक्तावियन ने अपनी बहन का उससे विवाह कर मित्रता पर पैबंद लगाया। अब साम्राज्य का बँटवारा नए सिरे से हुआ-ओक्तावियन पश्चिम का स्वामी हुआ, आँतोनी पूर्व का। वह फिर क्लियोपात्रा के पास लौटा और विलास में खो गया। उधर ओक्तावियन ने उसपर चढ़ाई की और जब आक्यितम के युद्ध में हारकर आँतोनियस मिस्र भागा तब पहली बार शत्रु ने उसकी पीठ देखी। अंत में उसने इस धोखे में कि क्लियोपात्रा ने आत्महत्या कर ली है, स्वयं उससे पहले ही आत्महत्या कर ली। वह साहित्कारों के लिए बड़ा प्रिय नायक हो गया है।



टीका टिप्पणी और संदर्भ