महाभारत सौप्तिक पर्व अध्याय 17 श्लोक 1-16

अद्‌भुत भारत की खोज
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

सप्‍तदश (17) अध्याय: सौप्तिक पर्व

महाभारत: सौप्तिक पर्व: सप्‍तदश अध्याय: श्लोक 1-16 का हिन्दी अनुवाद

अपने समस्‍त पुत्रों और सैनिकों के मारे जाने के विषय में युधिष्ठिर का श्रीकृष्‍ण से पूछना और उत्तर में श्रीकृष्‍ण के द्वारा महादेव जी की महिमा का प्रतिपादन

वैशम्‍पायनजी कहते हैं–राजन् ! रात को सोते समय उन तीन महारथियों ने पाण्‍डवों की सारी सेनाओं का जो संहार कर डाला था, उसके लिये शोक करते हुए राजा युधिष्ठिर ने दशार्हनन्‍दन भगवान् श्रीकृष्‍ण से इस प्रकार कहा–‘श्रीकृष्‍ण ! नीच एवं पापत्‍मा द्रोणकुमार ने कोई विशेष तप या पुण्‍य कर्म भी तो नहीं किया था, जिससे उसमें अलौकिक शक्ति आ जाती । फिर उसने मेरे सभी महारथी पुत्रों का वध कैसे कर डाला? ‘द्रुपद के पुत्र तो अस्‍त्र–विद्या के पूरे पण्डित, पराक्रमी तथा लाखों योद्धाओं के साथ युद्ध करने में समर्थ थे तो भी द्रोण पुत्र ने उन्‍हें मार गिराया, वह कितने आश्र्चर्य की बात है? ‘महाधनुर्धरद्रोणाचार्य युद्ध में जिसके सामने मुँह नहीं दिखाते थे, उसी रथियों में श्रेष्‍ठ धृष्‍टद्युम्‍न को अश्र्वत्‍थामा ने कैसे मार डाला? ‘नरश्रेष्‍ठ ! आचार्य पुत्र ने ऐसा कौन–सा उपयुक्त कर्म किया था, जिससे उसनेअकेले ही समरान्‍ङ्रण में हमारे सभी सैनिकों का वध कर डाला’।
श्रीभगवान् बोले–राजन् ! निश्र्चय ही अश्र्वत्‍थामाने ईश्र्वरों के भी ईश्र्वर देवाधिदेव अविनाशी भगवान् शिव की शरण ली थी, इसीलिये उसने अकेले ही बहुत–से वीरों का विनाश कर डाला। पर्वत पर शयन करने वाले महादेव जी तो प्रसन्न होने पर अमरत्‍व भी दे सकते हैं । वे उपासक को इतनी शक्ति दे देते हैं,जिससे वह इन्‍द्रको भी नष्‍ट कर सकता है। भरतश्रेष्‍ठ ! मैं महादेव जी को यथा‍र्थय्‍प से जानता हूँ । उनके जो नाना प्रकार के प्राचनी कर्म हैं, उसने भी मैं पूर्ण परिचित हूँ। भरतनन्‍दन ! ये भगवान् शिव सम्‍पूर्ण भूतों के आदि,मध्‍य और अन्‍त हैं । उन्‍हीं के प्रभाव से यह सारा जगत् भाँति–भाँति की चेष्‍ठाएँ करता है। प्रभावशाली ब्रह्माजी ने प्राणियों की सृष्टि करने की इच्‍छा से सबसे पहले महादेव जी को ही देखा था । तब पितामह ब्रह्मा ने उनसे कहा–‘प्रभो ! आप अविलम्‍ब सम्‍पूर्ण भूतों की सृष्टि कीजिये’। यह सुन महादेवजी ‘तथास्‍तु’कहकरभूतगणों के नाना प्रकार के दोष देख जल में मग्‍न हो गये और महान् तप का आश्रय ले दीर्घकाल तक तपस्‍या करते रहे। इधर पितामह ब्रह्मा ने सुदीर्घ काल तक उनकी प्रतीक्षा करके अपने मानसिक संकल्‍प से दूसरे सर्वभूतस्त्रष्‍टा को उत्‍पन्न किया।
उस विराट् पुरुष या स्त्रष्‍टा ने महादेव जी को जल में सोया देख अपने पिता ब्रह्मा जी से कहा–‘यदि दूसरा कोई मुझसे ज्‍येष्‍ठ न हो तो मैं प्रजाकी सृष्टि करुँगा’। यह सुनकर पिता ब्रह्मा ने स्त्रष्टा से कहा–‘तुम्‍हारे सिवा दूसरा कोई अग्रज पुरुष नहीं है । ये स्‍थाणु (शिव) हैं भी तो पानी में डूबे हुए हैं; अत: निश्चिन्‍त होकर सृष्टि का कार्य आरम्‍भ करो’। तब स्त्रष्‍टा ने सात प्रकार के प्राणियों और दक्षआदि प्रजापतियों को उत्‍पन्न किया जिनके द्वारा उन्‍होंने इस चार प्रकार के समस्‍त प्राणि समुदाय का विस्‍तार किया। राजन् ! सृष्टि होते ही समस्‍त प्रजा भूख से पीड़ित हो प्रजापति को ही खा जाने की इच्छा से सहसा उनके पास दौड़ी गयी।


« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

साँचा:सम्पूर्ण महाभारत अभी निर्माणाधीन है।