महाभारत सभा पर्व अध्याय 51 भाग 2

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एकपंचाशत्तम (51) अध्‍याय: सभा पर्व (द्यूत पर्व)

महाभारत: सभा पर्व: एकपंचाशत्तम अध्याय: भाग 2 का हिन्दी अनुवाद

इसके सिवा, उन्होंने दूसरे भूपालों से दक्षिण समुद्र के निकट से सैंकड़ों उत्तरीय वस्त्र, शंख, रत्न तथा अन्य उपहार सामग्री लेकर पाण्डुनन्दन युधिष्ठिर को समर्पित की। पाण्ड्य नरेश ने मलय और दुर्दरपर्वत के श्रेष्ठ चन्दन के छियानवे भार युधिष्ठिर को भेंट किये। फिर उतने ही शंख भी समर्पित किये। चोल और केरल देश के नरेशों ने असंख्य चन्दन, अगुरु तथा मोती, वैदूर्य तथा चित्रक नामक रत्न धर्मराज युधिष्ठिर को अर्पित किये। राजा अश्मक ने बछड़ों सहित दस हजार दुधारू गौएँ भेंट कीं, जिनके सींगों में सोना मढ़ा हुआ था और गले में सोने के आभूषण पहनाये गये थे। उनके थन घड़ों के समान दिखायी देते थे। सिन्धु नरेश ने सवुर्ण मालाओं से अलंकृत पचीस हजार सिन्धुदेशीय घोड़े उपहार में दिये थे। सौवीरराज ने हाथी जुते हुए रथ प्रदान किये, जो तीन सौसे कम न रहे होंगे। उन रथों को सुवर्ण, मणि तथा रत्नों से सजाया गया था। वें दोपहर के सूर्य की भाँति जगमगा रहे थे। उनसे जो प्रभा फैल रही थी, उसकी कहीं भी उपमा न थी। इन रथों के सिवा, उन्होंने अन्य सब प्रकार की भी उपहार सामग्री युधिष्ठिर को भेंट की थी। नरश्रेष्ठ भरत नन्दन! अवन्ती नरेश नाना प्रकार के सहस्त्रों रत्न, हार, श्रेष्ठ अंगद (बाजूबंद), भाँति-भाँति के अन्यान्य आभूषण, दस हजार दासियों तथा अन्यान्य उपहार सामग्री साथ लेकर राजसभा के द्वार पर खड़े थे और भीतर जाकर युधिष्ठिर का दर्शन पाने के लिये उत्सुक हो रहे थे। दशार्ण नरेश, चेदिराज तथा पराक्रमी राजा शूरसेन ने सब प्रकार की उपहार सामग्री लाकर युधिष्ठिर को समर्पित की। राजन्! काशी नरेश ने भी बड़ी प्रसन्नता के साथ अस्सी हजार गौएं, आठ सौ गजराज तथा नाना प्रकार के रत्न भेंट किये। विदेहराज कृतक्षण तथा कोसल नरेश बृहद्वल ने चौदह-चौदर हजार उत्तम घोड़े दिये थे। वस आदि नरेशों सहित राजा शैब्य तथा मालवों सहित त्रिगर्तराज ने युधिष्ठिर को बहुत से रत्न भेंट किये, उनमें से एक-एक भूपाल ने असंख्य हार, श्रेष्ठ मोती तथा भाँति भाँति के आभूषण समर्पित किये थे। कार्पासिक देश में निवास करने वाली एक लाख दासियाँ उस यज्ञ में सेवा कर रही थीं। वे सब की सब श्यामा तथा तन्वंगी थीं। उन सबके केश बड़े-बड़े थे और वे सभी सोने के आभूषणों से विभूषित थीं। महाराज! भरुकच्छ (भड़ौच) निवासी शूद्र श्रेष्ठ ब्राह्मणों के उपयोग में आने योज्य रंकुमृग के चर्म तथा अन्य सब प्रकार की भेंट सामग्री लेकर उपस्थित हुए थे। वे अपने साथ गान्धारदेश के बहुत से घोड़े भी लाये थे। जो समुद्रतटवर्ती गृहोद्यान में तथा सिन्ध के उस पार रहते हैं, वर्धाद्वारा इन्द्र के पैदा किये हुए तथा नदी के जल से उत्पन्न हुए नाना प्रकार के धान्यों द्वारा जीवन निर्वाह करते हैं, वे वैराम, पारद, आभीर तथा कितव जाति के लोग नाना प्रकार के रत्न एवं भाँति भाँति की भेंट सामग्री- बकरी, भेड़, गाय, सुवर्ण, गधे, ऊँट, फल से तैयार किया हुआ मधु तथा अनेक प्रकार के कम्बल लेकर राज द्वार पर रोक दिये जाने के कारण (बाहर ही) खड़े थे और भीतर नहीं जाने पाते थे। प्राग्ज्यातिषपुर के अधिपति तथा म्लेच्छों के स्वामी शूरवीर एवं बलावान् महारथी राजा भगदत्त यवनों के साथ पधारे थे और वायु के समान वेग वाले अच्छी जाति के शीघ्रगामी घोड़े तथा सब प्रकार की भेंट सामगी लेकर राजद्वार पर खड़े थे। (अधिक भीड़ के कारण) उनका प्रवेश भी रोक दिया गया था।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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