महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 284 श्लोक 101-114

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चतुरशीत्‍यधिकद्विशततम (284) अध्याय: शान्ति पर्व (मोक्षधर्म पर्व)

महाभारत: शान्ति पर्व: चतुरशीत्‍यधिकद्विशततम अध्याय श्लोक 101-114 का हिन्दी अनुवाद

आप फल के भीतर के गुद्देूरूप मांस के प्रलोभी श्रृगालरूप हैं। आप ही सबको तारने वाले तथा तरण-तारण के साधन हैं। आप ही यज्ञ और आप ही यजमान हैं। आप ही हुत (हवन) और आप ही प्रहुत (अग्नि) हैं। आपको नमस्‍कार है । आप ही यज्ञ के निर्वाहक अथवा उसे सब देवताओं तक पहुँचाने वाले अग्निदेव हैं। आप मन और इन्द्रियों को वश में रखने वाले हैं। आप ही भक्‍तों का कष्‍ट देखकर संतप्‍त होने वाले तथा शत्रुओं को संताप देने वाले हैं। आप ही तट हैं। आप ही तटवर्ती नदी आदि हैं तथा आप ही तटों के पालक हैं। आपको नमस्‍कार है । आप ही अन्‍नदाता, अन्‍नपति और अन्‍न के भोक्‍ता हैं। आपके सहस्‍त्रों मस्‍तक और सहस्‍त्रों चरण हैं। आपको बारंबार प्रणाम है । आप अपने सहस्‍त्रों हाथों में सहस्‍त्रों शूल लिये रहते हैं। आपके सहस्‍त्रों नेत्र हैं। आपकी अंगकान्ति प्रात: कालीन सूर्य के समान देदीप्‍यमान है। आप बालकरूप धारण करने वाले हैं। आपको नमस्‍कार है । आप श्रीकृष्‍ण रूप से संगी-साथी बालकों के रक्षक तथा बालकों के साथ खेल करने वाले हैं। आप सबकी अपेक्षा वृद्ध हैं। भक्ति और प्रेम के लोभी हैं। दुष्‍टों के पापाचार से क्षुब्‍ध हो उठते हैं और दुराचारियों को क्षोभ में डालने वाले हैं। आपको नमस्‍कार है । आपके केश गंगा के तरंगों से अंकित तथा मुञ्ज के समान हैं। आपको नमस्‍कार है। आप ब्राह्मणों के छ: कर्म-अध्‍ययन-अध्‍यापन, यजन-याजन तथा दान और प्रतिग्रह से संतुष्‍ट रहते हैं; स्‍वयं यजन, अध्‍ययन और दानरूप तीन कर्मों में ही तत्‍पर रहते हैं। आपको प्रणाम है । आप वर्ण और आश्रमों के भिन्‍न-भिन्‍न कर्मों का विधिवत विभाग करने वाले, जपनीय मन्‍त्ररूप, घोषस्‍वरूप तथा कोलाहलमय हैं। आपको बारंबार नमस्‍कार है । आपके नेत्र श्‍वेत पिंगलवर्ण के हैं, काले और लाल रंग के हैं। आप प्राणवायु (श्‍वास) को जीतने वाले, दण्‍ड (आयुध) रूप, ब्रह्माण्‍डरूपी घट को फोड़ने वाले तथा कृश-शरीरधारी हैं। आपको नमस्‍कार है । धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष देने के विषय में आपकी कीर्तिकथा वर्णन करने के योग्‍य है। आप सांख्‍यस्‍वरूप, सांख्‍ययोगियों में प्रधान तथा सांख्‍यशास्‍त्र को प्रवृत करने वाले हैं। आपको प्रणाम है । आप रथ पर बैठकर तथा बिना रथ के भी घूमने वाले हैं। जल, अग्नि, वायु तथा आकाश –इन चारों मार्गों पर आपकी गति है। आप काले मृगचर्म को दुपट्टे की भाँति ओढने वाले तथा सर्पमय यज्ञोपवीत धारण करने वाले हैं। आपको प्रणाम है । ईशान ! आपका शरीर वज्र के समान कठोर है। हरिकेश ! आपको नमस्‍कार है। व्‍यक्‍ताव्‍यक्‍त स्‍वरूप परमेश्‍वर ! आप त्रिनेत्रधारी तथा अम्बिका के स्‍वामी हैं। आपको नमस्‍कार है । आप कामस्‍वरूप, कामनाओं को पूर्ण करने वाले, कामदेव के नाशक, तृप्‍त और अतृप्‍त का विचार करने वाले, सर्वस्‍वरूप, सब कुछ देनेवाले, सबके संहारक और संध्‍याकाल के समान रंगवाले हैं। आपको प्रणाम है । महाबल! महाबहो ! महासत्‍व ! महाद्युते ! आप महान मेघों की घटा के समान रंगवाले महाकालस्‍वरूप हैं। आपको नमस्‍कार है । आपका श्रीविग्रह स्‍थूल और जीर्ण है। आप जटाधारी हैं। वल्‍कल और मृगचर्म धारण करते हैं। देदीप्‍यमान सूर्य और अग्नि के समान ज्‍योतिर्मयी जटा से सुशोभित हैं। वल्‍कल और मृगचर्म ही आपके वस्‍त्र हैं। आप सहस्‍त्रों सूर्यों के समान प्रकाशमान और सदा तपस्‍या में संलग्‍न रहने वाले हैं। आपको नमस्‍कार है ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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