महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 280 श्लोक 66-70

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अषीत्यधिकद्विशततम (280) अध्याय: शान्ति पर्व (मोक्षधर्म पर्व)

महाभारत: शान्ति पर्व: अषीत्यधिकद्विशततम अध्याय श्लोक 66-70 का हिन्दी अनुवाद


निष्पाप पितामह ! वह शुद्ध कुल में उत्पन्न हुआ था और स्वभाव से भी शुद्ध था। जान पड़ता है वह साध्य नामक देवता ही था; इसीलिये पुनः संसार में नही लौटा। वह पशु-पक्षियों की योनि तथा नरक से छुटकारा पा गया । पृथ्वीनाथ ! पीतवर्ण वाले देवसर्ग में तथा रक्तवर्ण वाले अनुग्रहसर्ग में विद्यमान प्राणी कभी तामस कर्मों से आवृत होकर तिर्यग्योनिका भी दर्शन कर सकता है । हमलोग तो और भी अधिक आपत्ति से घिरे हुए हैं। दुःख-सुख से मिश्रित भाव में अथवा केवल दुःखमय भाव में आसक्त हैं। ऐसी दशा में पता नहीं हमें किस गति की प्राप्ति होगी। हम नीलवर्ण वाली मानव योनि में पडे़ंगे या कृष्णवर्ण वाली स्थावर योनि से भी हीन दशा को जा पहुँचेंगे । भीष्मजी ने कहा-युधिष्ठिर ! तुम सभी पाण्डव विशुद्ध कुल से सम्पन्न और तीक्ष्ण व्रतों का भलीभाँति पालन करने वाले हो; अतः देवताओं के लोकों में विहार करके पुनः मनुष्य-शरीर को ही प्राप्त करोगे । तुम सब लोग यथासमय सुख से संतानोत्पादन करके देवलोकों में जाकर सुख भोगोगे। तत्‍पश्‍चात सुखपूर्वक सिद्धि प्राप्त करके सिद्धों में गिने जाओगे। तुम्हारे मन में दुर्गति का भय नहीं होना चाहिये; क्योंकि तुम सब लोग निर्मल एंव निष्पाप हो ।

इस प्रकार श्रीमहाभारत शान्तिपर्व के अन्‍तर्गत मोक्षधर्मपर्व में वृत्रगीताविषयक दो सौ अस्‍सीवॉं अध्‍याय पूरा हुआ ।



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