महाभारत शल्य पर्व अध्याय 55 श्लोक 21-40

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पन्चपन्चाशत्तम (55) अध्याय: शल्य पर्व (गदा पर्व)

महाभारत: शल्य पर्व: पन्चपन्चाशत्तम अध्याय: श्लोक 21-40 का हिन्दी अनुवाद

महाराज ! रणमण्डल के बीच में खड़े हुए ये दोनों नरश्रेष्ठ भ्राता उदित हुए चन्द्रमा और सूर्य के समान शोभा पा रहे थे । राजन् ! क्रोध में भरे हुए दो गजराजों के समान एक दूसरे के वध की इच्छा रखने वाले वे दोनों वीर परस्पर इस प्रकार देखने लगे, मानो नेत्रों द्वारा एक दूसरे को भस्म कर डालेंगे । नरेश्वर ! तदनन्तर शक्तिशाली कुरुवंशी राजा दुर्योधन प्रसन्नचित्त हो गदा हाथ में ले क्रोध से लाल आंखें करके गलफरों को चाटता और लंबी सांसें खींचता हुआ भीमसेन की ओर देखकर उसी प्रकार ललकारने लगा, जैसे एक हाथी दूसरे हाथी को पुकार रहा हो । उसी प्रकार पराक्रमी भीमसेन ने लोहे की गदा लेकर राजा दुर्योधन को ललकारा, मानो वन में एक सिंह दूसरे सिंह को पुकार रहा हो । दुर्योधन और भीमसेन दोनों की गदाएं ऊपर को उठी थीं। उस समय रणभूमि में वे दोनों शिखरयुक्त दो पर्वतों के समान प्रकाशित हो रहे थे । दोनों ही अत्यन्त क्रोध में भरे थे। दोनों भयंकर पराक्रम प्रकट करने वाले थे और दोनों ही गदायुद्ध में बुद्धिमान रोहिणीनन्दन बलरामजी के शिष्य थे । महाराज ! शत्रुओं को संताप देने वाले वे दोनों महाबली वीर यमराज, इन्द्र वरुण, श्रीकृष्ण, बलराम, कुबेर, मधु, कैटभ, सुन्द, उपसुन्द, राम, रावण तथा बाली और सुग्रीव के समान पराक्रम दिखाने वाले थे तथा काल एवं मृत्यु के समान जान पड़ते थे । जैसे शरद् ऋतु में मैथुन की इच्छा वाली हथिनी से समागम करने के लिये दो मतवाले हाथी मदोन्मत्त होकर एक दूसरे पर धावा करते हों, उसी प्रकार अपने बल का गर्व रखने वाले वे दोनों वीर एक दूसरे से टक्कर लेने को उद्यत थे। शत्रुओं का दमन करने वाले वे दोनों योद्धा दो सर्पो के समान प्रज्वलित क्रोधरूपी विष का वमन करते हुए एक दूसरे को रोषपूर्वक देख रहे थे । भरतवंश के वे विक्रमशाली सिंह दो जंगली सिंहों के समान दुर्जय थे और दोनों ही गदायुद्ध के विशेषज्ञ माने जाते थे । पन्चों और दाढ़ों से प्रहार करने वाले दो व्याघ्रों के समान उन दोनों वीरों का वेग शत्रुओं के लिये दुःसह था। प्रलय काल में विक्षुब्ध हुए दो समुद्रों के समान उन्हें पार करना कठिन था। वे दोनों महारथी क्रोध में भरे हुए दो मंगल ग्रहों के समान एक दूसरे को ताप दे रहे थे । जैसे वर्षा ऋतु में पूर्व और पश्चिम दिशाओं में स्थित दो वृष्टिकारक मेघ भयंकर गर्जना कर रहे हो, उसी प्रकार शत्रुओं का दमन करने वाले वे दोनों वीर एक दूसरे को देखते हुए भयानक सिंहनाद कर रहे थे । महामनस्वी महाबली कुरुश्रेष्ठ दुर्योधन और भीमसेन प्रखर किरणों से युक्त, प्रलयकाल में उगे हुए दो दीप्तिशाली सूर्यो के समान दृष्टिगोचर हो रहे थे । रोष में भरे हुए दो व्याघ्रों, गरजते हुए दो मेघों और दहाड़ते हुए दो सिंहों के समान वे दोनों महाबाहु वीर हर्षो त्फुल्ल हो रहे थे । वे दोनों महामनस्वी योद्धा परस्पर कुपित हुए दो हाथियों, प्रज्वलित हुई दो अग्नियों और शिखरयुक्त दो पर्वतों के समान दिखायी देते थे । उन दोनों के ओठ रोष से फड़क रहे थे। वे दोनों नरश्रेष्ठ एक दूसरे पर दृष्टिपात करते हुए हाथ में गदा ले परस्पर भिड़ने के लिये उद्यत थे ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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