महाभारत शल्य पर्व अध्याय 25 श्लोक 21-44

अद्‌भुत भारत की खोज
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

पञ्चविंश (25) अध्याय: शल्य पर्व (ह्रदप्रवेश पर्व)

महाभारत: शल्य पर्व: पञ्चविंश अध्याय: श्लोक 21-44 का हिन्दी अनुवाद

दुर्योधन के प्रहार से अत्यन्त घायल हुए महाधनुर्धर धृष्‍टधुम्न अंकुश से पीड़ित हुए हाथी के समान कुपित हो उठे और उन्होंने अपने बाणों द्वारा उसके चारों घोड़ों को मौत के हवाले कर दिया तथा एक भल्ल से उसके सारथि का भी सर धड़ से काट दिया । इस प्रकार रथ के नष्ट हो जाने पर शत्रुदमन राजा दुर्योधन एक घोड़े की पीठपर सवार हो वहाँ से कुछ दूर हट गया।। महाराज ! अपनी सेना का पराक्रम नष्ट हुआ देख आपका महाबली पुत्र दुर्योधन वहीं चला गया, जहाँ सुबलपुत्र शकुनि खड़ा था । रथसेना के भंग हो जाने पर तीन हजार विशालकाय गज- राजों ने समस्त पाण्डव रथियों को चारों ओर से घेर लिया।। भरतनन्दन ! महाराज ! समरांगण में गजसेना से घिरे हुए पाँचों पाण्डव मेंघों से आवृत हुए पांच ग्रहों के समान शोभा पाते थे । राजेन्द्र ! तब भगवान् श्रीकृष्ण जिनके सारथि हैं, वे श्वेतवाहन महाबाहु अर्जुन अपने बाणों का लक्ष्य पाकर रथ के द्वारा आगे बढ़े । उन्हें चारों ओर से पर्वताकार हाथियों ने घेर रखा था। वे तीखी धारवाले निर्मल नाराचों द्वारा उस गजसेना के साथ युद्ध करने लगे । वहाँ हमने देखा कि सव्यसाची अर्जुन के एक ही बाण की चोट खाकर बडे़-बडे़ हाथियों के शरीर विदीर्ण होकर गिर गये हैं और लगातार गिराये जा रहे हैं । मतवाले हाथी के समान पराक्रमी बलवान् भीमसेन उन गजराजों को आते देख तुरन्त ही रथ से कूदकर हाथ में विशाल गदा लिये दण्डधारी यमराज के समान उन पर टूट पडे़ । पाण्डव महारथी भीमसेन को गदा उठाये देख आपके सैनिक भय से थर्रा उठे और मल-मूत्र करने लगे । भीमसेन के गदा हाथ में लेते ही सारी कौरव सेना उद्विग्न हो उठी। हमने देखा, भीमसेन की गदा से उन धूलिधूसर पर्वताकार हाथियों के कुम्भस्थल फट गये हैं और वे इधर-उधर भाग रहे हैं । भीमसेन की गदा से घायल हो वे हाथी भाग चले और आर्तनाद करके पंख कटे हुए पर्वतों के समान पृथ्वी पर गिर पड़े। कुम्भस्थल फट जाने के कारण इधर-उधर भागते और गिरते हुए बहुत-से हाथियों को देखकर आपके सैनिक संत्रस्त हो उठे । युधिष्ठिर तथा माद्रीकुमार पाण्डुपुत्र नकुल-सहदेव भी अत्यन्त कुपित हो गीध की पाँखों से युक्त पैने बाणोंद्वारा उन हाथियों को यमलोक भेजने लगे । उधर धृष्‍टधुम्न ने समरांगण में राजा दुर्योधन को पराजित कर दिया था। महाराज ! जब आपका पुत्र घोड़े की पीठ पर सवार हो वहाँ ये भाग गया, तब समस्त पाण्डवों को हाथियों से घिरा हुआ देखकर धृष्‍टधुम्न ने सहसा उस गजसेना पर धावा किया। पांचाल राज के पुत्र धृष्‍टधुम्न उन हाथियों को मार डालने के लिये वहाँ से चल दिये । इधर रथसेना में शत्रुदमन दुर्योधन को न देखकर अश्वत्थामा, कृपाचार्य और सात्वतवंशी कृतवर्मा ने समस्त क्षत्रियों से पूछा-राजा दुर्योधन कहाँ चले गये ? वर्तमान जलसंहार में राजा को न देखकर वे महारथी आप के पुत्र को मारा गया मान बैठे और मुँह उदास करके सब से आपके पुत्र का पता पुछने लगे । कुछ लोगों ने कहा-सारथि के मारे जाने पर पांचालराज की उस दुःसह सेना को त्यागकर राजा दुर्योधन वहीं रह गये हैं, जहाँ शकुनि हैं। दूसरे अत्यन्त घायल हुए क्षत्रिय वहाँ इस प्रकार कहने लगे-अरे ! दुर्योधन से यहाँ क्या काम है ? यदि वे जीवित होंगे तो तुम सब लोग उन्हें देख ही लोगे। इस समय तो सब लोग एक साथ होकर केवल युद्ध करो। राजा तुम्हारी क्या (सहायता) करेंगे ।


« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

साँचा:सम्पूर्ण महाभारत अभी निर्माणाधीन है।