महाभारत शल्य पर्व अध्याय 23 श्लोक 23-46

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दशम (23) अध्याय: शल्य पर्व (ह्रदप्रवेश पर्व)

महाभारत: शल्य पर्व: दशम अध्याय: श्लोक 23-46 का हिन्दी अनुवाद

चारों ओर नीचे बालू और कंकड़ बरसानेवाली हवाएँ चलने लगी। हाथी आँसू बहाने और थरथर काँपने लगे।। इन घोर एवं दारूण उत्पातों की अवहेलना करके क्षत्रिय वीर मन मैं व्यथा से रहित हो पुनः युद्ध के लिये तैयार हो गये और स्वर्ग मैं जाने की अभिलाषा ले रमणीय एवं पुण्यमय कुरूक्षेत्र में उत्साहपूर्वक डटे गये। तत्पश्चात् गान्धारराजा के पुत्र शकुनि ने कौरव योद्धाओं से कहा- वीरों ! तुम लोग सामने से युद्ध करो और में पीछे से पाण्डवों का संहार करता हूँ । इस सलाह के अनुसार जब हमलोग चले तो मद्रदेश के वेगशाली योद्धा तथा अन्य सैनिक हर्ष से उल्लसित हो किलकारियाँ भरने लगे। इतने ही में शत्रुओं ने वहाँ मद्रराज की सेना का संहार कर डाला। यह देख दुर्योधन की सेना पुनः पीठ दिखाकर भागने लगी।। तब बलवान् गान्धारराज शकुनि ने पुनः इस प्रकार कहा-अपने धर्म को न जानने वाले पापियो ! इस तरह तुम्हारे भागने से क्या होगा ? लौटा और युद्ध करो । भरतश्रेष्ठ ! उस समय गान्धारराज शकुनि के पास विशाल प्रास लेकर युद्ध करनेवाले घुड़सवारों की दस हजार सेना मौजूद थी। उसी को साथ लेकर वह उस जन-संहारकारी युद्ध में पाण्डव-सेना के पिछले भाग की ओर गया और वे सब मिलकर पैने बाणों से उस सेना पर चोट करने लगे।। महाराज ! जैसे वायु के वेग से मेंघों का दल सब ओर से छिन्न-भिन्न हो जाता है, उसी प्रकार इस आक्रमण से पाण्डवों की विशाल सेना का व्यूह भंग हो गया । तब युधिष्ठिर ने पास ही अपनी सेना में भगदड़ मची देख शांतभाव से महाबली सहदेव को पुकारा । और कहा-पाण्डनन्दन ! कवच धारण करके आया हुआ वह सुबलपुत्र शकुनि हमारी सेना के पिछले भा को पीड़ा देकर सारे सैनिकों का संहार कर रहा है ; इस दुर्बुद्धि को देखो तो सही । निष्पाप वीर ! तुम द्रौपदी को साथ लेकर जाओ और सुबलपुत्र शकुनि को मार डालो। मैं पांचाल योद्धाओं के साथ यहीं रहकर शत्रु की रथसेना को भस्म कर डालूँगा।। तुम्हारे साथ सभी हाथीसवार, घुड़सवार और तीन और हजार पैदल सैनिक भी जाय तथा उन सबसे घिरे रहकर तुम शकुनि का नाश करो । तदनन्तर धर्मराज की आज्ञा के अनुसार हाथ में धनुष लिये बैठे हुए सवारों से युक्त सात सौ हाथी, पांच हजार घुड़सवार, पराक्रमी सहदेव, तीन हजार पैदल योद्धा और द्रौपदी के सभी पुत्र- इन सबने रणभूमि में युद्ध-दुर्भद शकुनि पर धावा किया । राजन् ! उधर विजयाभिलाषी प्रतापी सुबलपुत्र शकुनि पाण्डवों का उल्लंघन करके पीछे की ओर से उनकी सेना का संहार कर रहा था । वेगशाली पाण्डवों के घुड़सवारों ने अत्यन्त कुपित होकर उन कौरव रथियों का उल्लंघन करके सुबलपुत्र की सेना में प्रवेश किया । वे शूरवीर घूड़सवार वहाँ जाकर रणभूमि के मध्यभाग में खडे़ हो गये और शकुनि की उस विशाल सेना पर बाणों की वर्षा करने लगे । राजन् ! फिर तो आपकी कुमन्त्रणा के फलस्वरूप वह महान् युद्ध आरम्भ हो गया, जो कायरों से नहीं, वीर पुरूषों से सेवित था। उस सयम सभी योद्धाओं के हाथों में गदा अथवा प्रास उठे रहते थे। धनुष की प्रत्यंचा के शब्द बंद हो गये। रथी योद्धा दर्शक बनकर तमाशा देखने लगे। उस समय अपने या शत्रुपक्ष के योद्धाओं में पराक्रम की दृष्टि से कोई अन्तर नहीं दिखायी देता था । भरतश्रेष्ठ ! शूरवीरों की भुजाओं से छूटी हुई शक्तियाँ शत्रुओं पर इस प्रकार गिरती थीं, मानों आकाश से तारे टूटकर पड़ रहे हों। कौरव-पाण्डव योद्धा ने इसे प्रत्यक्ष देखा था।। प्रजानाथ ! वहाँ गिरती हुई निर्मल ऋष्टियों से व्याप्त हुए आकाश की बड़ी शोभा हो रही थी ।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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