महाभारत वन पर्व अध्याय 84 श्लोक 120-141

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चतुरशीतितम (84) अध्‍याय: वन पर्व (तीर्थयात्रा पर्व)

महाभारत: वन पर्व: चतुरशीतितम अध्याय: श्लोक 120-141 का हिन्दी अनुवाद

भरतकुलतिलक ! वहां तीर्थों की विख्यात श्रेणी को एक दुरात्मा असुर कुर्गरूप धारण करके हरकर लिये जाता था। राजन् ! यह देखकर सर्वशक्तिमान् भगवान् विष्णु ने उस तीर्थश्रेणी का उद्धार किया। युधिष्ठिर ! वहां उस तीर्थ कोटि में स्नान करना चािहये। ऐसा करनेवाले यात्री को पुण्डरीक यज्ञ का फल मिलता है और वह विष्णुलोक को जाता है। राजेन्द्र ! तदनन्तर नारायण स्थान को जाय। भरतनन्दन ! वहां भगवान् विष्णु सदा निवास करते हैं। ब्रह्मा आदि देवता, तपोधन ऋषि, आदित्य, वसु तथा रूद्र भी वहां रहकर जनार्दन की उपासना करते हैं। उस तीर्थ में अöुतकर्मा भगवान् विष्णु शालग्राम के नाम से प्रसिद्ध हैं। तीनों लोकों के स्वामी उन वरदायक अविनाशी भगवान् विष्णु के समीप जाकर मनुष्य अश्वमेध यज्ञ का फल पाता और विष्णुलोक में जाता है। धर्मज्ञ ! वहां एक कूप है, जो सब पापों को दूर करनेवाला है। उसमें सदा चारों समुद्र निवास करते हैं। राजेन्द्र ! उसमें निवास करने से मनुष्य कभी दुर्गति में नहीं पड़ता। सबको वर देनेवाले अविनाशी महादेव रूद्र के समीप जाकर मनुष्यों मेघों के आवरण से मुक्त हुए चन्द्रमा की भांति सुशाभित होता है। नरेश्वर ! वहीं जातिस्मर तीर्थ है; जिसमें स्नान करके मनुष्य पवित्र एवं शुद्धचित्त हो जाता है। अर्थात् उसके शरीर और मन की शुद्धि हो जाती है। उस तीर्थ में स्नान करने से पूर्वजन्म की बातों का स्मरण करने की शक्ति प्राप्त हो जाती है, इसमें संशय नहीं है। माहेश्वरपुर में जाकर भगवान् शंकर की पूजा और उपवास करने से मनुष्य सम्पूर्ण मनोवांछित कामनाओं को प्राप्त कर लेता है, इसमें तनिक भी संदेह नहीं है। तत्पश्चात् सब पापों को दूर करनेवाले वामनतीर्थ की यात्रा करके भगवान् श्रीहरि के निकट जाय। उनका दर्शन करने से मनुष्य कभी दुर्गति में नहीं पड़ता । इसके बाद सब पापों से छुड़ानेवाले कुशिका श्रम की यात्रा करे। वहीं बड़े-बडे़ पापों का नाश करनेवाली कौशिकी (कोशी) नदी है। उसके तटपर जाकर स्नान करे। ऐसा करनेवाला मानव राजसूर्ययज्ञ का फल पाता है। राजेन्द्र ! तदनन्तर उत्तम चम्पकारण्य (चम्पारन) की यात्रा करे। वहां एक बात निवास करने से तीर्थयात्री को सहस्त्र गोदान का फल मिलता है। तत्पश्चात् परम दुलर्भ ज्योष्ठिल तीर्थ में जाकर एक राज निवास करने में मानव सहस्त्र गोदान का फल पाता है। पुरूषरत्न ! वहां पार्वतीदेवी के साथ महातेजस्वी भगवान् विश्वेश्वर का दर्शन करने से तीर्थयात्री को मित्र और वरूण देवता के लोकों की प्राप्ति होती है वहां तीन रात उपवास करने से अग्निष्टोमयज्ञ का फल मिलता है। पुरूषश्रेष्ठ ! इसके बाद नियमपूर्वक नियमित भोजन करते हुए तीर्थयात्री को कन्यासंवेद्य नामक तीर्थ में जाना चाहिये। इससे वह प्रजापति मनु के लोक प्राप्त कर लेता है। भरतनन्दन ! जो लोग कन्यासंवेद्य तीर्थ में थोड़ा-सा भी दान देते हैं, उनके उस दान को उत्तम व्रत का पालन करनेवाले महर्षि अक्षय बताते हैं। तदनन्तर त्रिलोकविख्यात निंश्चीरा नदी की यात्रा करे। इससे अश्वमेधयज्ञ का फल प्राप्त होता है और तीर्थयात्री पुरूषभगवान् विष्णु के लोक में जाता है। नरश्रेष्ठ ! जो मानव निश्चीरा संगम में दान देते हैं, वे रोग शोक से रहित इन्द्रलोक में जाते हैं। वहीं तीनों लोकों में विख्यात वसिष्ठ-आश्रम है। वहां स्नान करनेवाला मनुष्य वाजपेययज्ञ का फल पाता है। तदनन्तर ब्रह्मर्षियों से सेवित देवकूट तीर्थ में जाकर स्नान करे। ऐसा करनेवाला पुरूष अश्वमेधयज्ञ का फल पाता और अपने कुल का उद्धार कर देता है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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