महाभारत वन पर्व अध्याय 84 श्लोक 1-22

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चतुरशीतितम (84) अध्‍याय: वन पर्व (तीर्थयात्रा पर्व)

महाभारत: वन पर्व: चतुरशीतितम अध्याय: श्लोक 47-71 का हिन्दी अनुवाद

नाना प्रकार के तीर्थों की महिमा

पुलस्त्यजी कहते हैं-महाराज! तदनन्तर परम उत्तम धर्मतीर्थ की यात्रा करे, जहां महाभाग धर्म ने उत्तम तपस्या की थी। राजन् ! उन्होंने ही अपने नाम से विख्यात पुण्य तीर्थ की स्थापना की है। वहां स्नान करने से मनुष्य धर्मशील एवं एकाग्रचित होता है और अपने कुलकी सावतीं पीढ़ी तक के लोगों को पवित्र कर देता है; इसमें संशय नहीं है। राजेन्द्र ! तदनन्तर उत्तम ज्ञानपावन तीर्थ में जाय। वहां जाने से मनुष्य अग्निष्टोमयज्ञ का फल पाता और मुनिलोक में जाता है। राजन् ! तत्पश्चात् मानव सौगन्धिक वन में जाय। वहां ब्रह्मा आदि देवता, तपोधन ऋषि, सिद्ध, चारण, गन्धर्व, किन्नर और बड़े-बड़े नाग निवास करते हैं। उस वन में प्रवेश करते ही मानव सब पापों से मुक्त हो जाता है। उससे आगे सरिताओं में श्रेष्ठ और नदियों में उत्तम नदी परम पुण्यमयी सरस्वती देवी का उदग्‍म स्थान है, जहां वे प्लक्ष (पकड़ी) नामक वृक्ष की जड़ से टपक रही हैं। राजन् ! वहां बांबी से निकल हुए जंल में स्नान करना चाहिये। वहां देवताओं तथा पितरों की पूजा करने से मनुष्य को अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है। वहीं ईशनाध्युषित नामक परम दुर्लभ तीर्थ है। जहां बांबी का जल है, वहां से इसकी दूरी छः शम्यानिपात है। यह निश्चित माप बताया गया है। नरश्रेष्ठ ! उस तीर्थ में स्नान करने से मनुष्य को सहस्त्र कपिलदान और अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है; इसे प्राचीन ऋषियों ने प्रत्यक्ष अनुभव किया है। भारत ! पुरूषरत्न ! सुगन्धा, शतकुम्भा तथा पंचयज्ञा तीर्थ में जाकर मानव स्वर्गलोक में प्रतिष्ठित होता है। भरतकुलतिलक ! वहीं त्रिशूलखात नामक तीर्थ है; वहां जाकर स्नान करे और देवताओं तथा पितरों की पूजा में लग जाय। ऐसा करनेवाला मनुष्य देहत्याग के अनन्तर गणपति-पद प्राप्त कर लेता है, इसमें संशय नहीं है। राजेन्द्र ! वहां से परमदुर्लभ देवीस्थान की यात्रा करे, वह देवी तीनों लोकों में शाकम्भरी नाम से विख्यात है। नरेश्वर ! कहते हैं उत्तम व्रत का पालन करने वाली उस देवी ने एक हजार दिव्य वर्षोतक एक एक महीने पर केवल शाक का आहार किया था। देवी की भक्ति से प्रभावित होकर बहुत-से तपोधन महर्षि वहां आये। भारत ! उस देवी ने उस महर्षियों का आतिथ्य-सत्कार भी शोक में ही किया था। भारत ! तब से उस देवी का ‘शाकम्भरी’ ही नाम से प्रसिद्ध हो गया। शकम्भरी के समीप जाकर मनुष्य ब्रह्मचर्यपालनपूर्वक एकाग्रचित और पवित्र हो वहां तीन रात तक शाक खाकर रहे तो बारह वर्षो तक शाकाहारी मनुष्य को पुण्य प्राप्त होता है, वह उसे देवी की इच्छा से (तीन ही दिनों में) मिल जाता है। तदनन्तर त्रिभुवनविख्यात सुवर्णतीर्थ की यात्रा करे। वहां पूर्वकाल में भगवान् विष्णु ने रूद्रदेव की प्रसन्नता के लिये उसकी अराधना की और उनसे अनेक देवदुर्लभ उत्तम वर प्राप्त किय। भारत ! उस समय संतुष्टचित्त त्रिपुरारि शिव ने श्रीविष्णु से कहा-श्रीकृष्ण ! तुम मुझे लोक में अत्यन्त प्रिय होओगे। संसार में सर्वत्र तुम्हारी ही प्रधानता होगी, इसमें संशय नहीं है।’ राजेन्द्र ! उस तीर्थ मे जाकर भगवान् शंकर की पूजा करने से मनुष्य अश्वमेधयज्ञ का फल पाता और गणपति पद प्राप्त कर लेता है। वहां से मनुष्य धूमावतीतीर्थ को जाय और तीन रात उपवास करे। इससे वह निःसंदेह मनोवांछित कामनाओं को प्राप्त कर लेता है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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