महाभारत वन पर्व अध्याय 82 श्लोक 64-87

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द्वयशीतितम (82) अध्‍याय: वन पर्व (तीर्थयात्रा पर्व)

महाभारत: वन पर्व: द्वयशीतितम अध्याय: श्लोक 64-87 का हिन्दी अनुवाद

युधिष्ठिर ! यह वह स्थान है, जहां मुनिवर दुर्वासा ने श्रीकृष्ण को वरदान दिया था। वरदानतीर्थ में स्नान करने से मानव सहस्त्र गोदान का फल पाता है। वहां से तीर्थयात्राी को द्वार का जाना चाहिये। वह नियम से रहे और नियमित भोजन करे। पिण्डारकतीर्थ में स्नान करने से मनुष्य को अधिकाधिक सुर्वण की प्राप्ति होती है। महाभाग ! उस तीर्थ में आज भी कमल के चिन्हों से चिन्हित सुर्वणमुद्राएं देखी जाती हैं। शत्रुदमन ! यह एक अद्भुत बात है। पुरूषरत्न कुरूनन्दन ! जहां त्रिशूल से अंकित कमल दृष्टिगोचर होते हैं। वहीं महादेवजी का निवास है। भारत ! सागर और सिन्धु नदी में संगम मं जाकर वरूण तीर्थ के स्नान करके शुद्धचित्त हो देवताओं, ऋषियों तथा पितरों का तर्पण करे। भरतकुलतिलक ! ऐसा करने से मनुष्य दिव्य दीप्ति देदीप्यमान वरूणलोक को प्राप्त करता है।। युधिष्ठिर ! वहां अंकुकर्णेश्वर शिव की पूजा करने से मनीषी पुरूष अश्वमेध से दस गुने पुण्यफल की प्राप्ति बताते हैं। भरतवंशावंतस कुरूश्रेष्ठ ! उनकी परिक्रमा करके त्रिभुवन-विख्यात ‘दमी’ नामक तीर्थ में जाय, जो सब पापों का नाश करनेवाला है। वहां ब्रह्म आदि देवता भगवान् महेश्वर की उपासना करते हैं। वहां स्नान, जलपान और देवताओं से घिरे हुए रूद्रदेव का दर्शन पूजन करने से स्नानकर्ता पुरूष के जन्म से लेकर वर्तमान समय तक के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। नरश्रेष्ठ ! भगवान् दमी का सभी देवता स्तवन करते हैं। पुरूषसिंह ! वहां स्नान करने से अश्वमेधयज्ञ के फल की प्राप्ति होती है। महाप्राज्ञ नरेश ! सर्वशक्तिमान् भगवान् विष्णु ने पहले दैत्यों-दानवों का वध करके इसी तीर्थ में जाकर (लोकसंग्रह के लिये) शुद्धि की थी। धर्मज्ञ ! वहां से वसुधारातीर्थ में जाय, जो सबके द्वारा प्रशंसित है। वहां जानेमात्र से अश्वमेधयज्ञ का फल मिलता है। कुरूश्रेष्ठ ! वहां स्नान करके शुद्ध और समाहितचित्त होकर देवताओं और पितरों का तर्पण करने से मनुष्य विष्णुलोक में प्रतिष्ठित है। भरतश्रेष्ठ ! उस तीर्थ में वसुओं का पवित्र सरोवर है। उसमें स्नान और जलपान करने से मनुष्य वसु देवताओं का प्रिय होता है। नरश्रेष्ठ ! वहीं सिन्धूत्तम नाम से प्रसिद्ध तीर्थ है , जो सब पापों कानाश करनेवाला है। उसमें स्नान करने से प्रचुर स्वर्णराशि की प्राप्ति होती है। भद्रतुंगतीर्थ में जाकर पवित्र एवं सुशील पुरूष ब्रह्मलोक में जाता और वहां उत्तम गति पाता है। शक्रकुमाररिका तीर्थ सिद्ध पुरूषोंद्वारा सेवित है। वहां स्नान करके मनुष्य शीघ्र ही स्वर्गलोक प्राप्त कर लेता है। वहीं सिद्धसेवित रेणुका तीर्थ है, जिसमें स्नान करके ब्राह्मण चन्द्रमा के समान निर्मल होता है। तदनन्तर शौच-संतोष आदि नियमों का पालन और नियमित भोजन करते हुए पंचनद तीर्थ में जाकर मनुष्य पंचमहायज्ञों का फल पाता है जो शास्त्रों में क्रमशः बतलाये गये हैं। राजेन्द्र ! वहां से भीमा के उत्तम स्थान की यात्रा करे ! भरतश्रेष्ठ ! वहां योनितीर्थ मे स्नान करके मनुष्य देवी का पुत्र होता है। उसकी अंगकान्ति तपाये हुए सुवर्णकुण्डल के समान होती है। राजन् ! उस तीर्थ के सेवन से मनुष्य को सहस्त्र गोदान का फल मिलता है। त्रिभुवनविख्यात श्रीकुण्ड में जाकर ब्रह्मजी को नमस्कार करने से सहस्त्र गोदान का फल प्राप्त होता है। धर्मज्ञ ! वहां से परम उत्तम विमलतीर्थ की यात्रा करे, जहां आज भी सोने और चांदी के रंग की मछलियां दिखायी देती थी।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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