महाभारत वन पर्व अध्याय 58 श्लोक 1-14

अद्‌भुत भारत की खोज
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

अष्टपञ्चाशत्तम (58) अध्‍याय: वन पर्व (नलोपाख्यान पर्व)

महाभारत: वन पर्व: अष्टपञ्चाशत्तम अध्याय: श्लोक 1-14 का हिन्दी अनुवाद

देवताओं के द्वारा नल के गुणों का गान और उनके निषेध करने पर भी नल के विरूद्ध कलियुग का कोप

बृहदश्व मुनि कहते हैं-राजन् ! भीमकुमारी दमयन्ती द्वारा निषधनरेश नल का वरण हो जाने पर जब महातेजस्वी लोकपालगण स्वर्गलोक को जा रहे थे, उस समय मार्ग में उन्होंने देखा कि कलियुग के साथ द्वापर आ रहा है। कलियुग को देखकर बल और वृत्रासुर का नाश करनेवाले इन्द्र ने पूछा-‘कले ! बताओं तो सही द्वापर के साथ कहां जा रहे हो ? तब कलिने इन्द्र से कहा-‘देवराज ! मैं दमयन्ती के स्वयंवर जाकर उसका वरण करूंगा; क्योंकि मेरा मन उसके प्रति आसक्त हो गया है’। तब इन्द्र ने हंसकर कहा-‘वह स्वयंवर तो हो गया। हमारे समीप ही दमयन्ती ने राजा नल को अपना पति चुन लिया। इन्द्र के ऐसा कहने पर कलियुग को क्रोध चढ़ गया और उसी समय उसने उन सब देवताओं को सम्बोधित करके यह बात कही- ‘दमयन्ती ने देवताओं के बीच में मनुष्य का पतिरूप में वरण किया है। अतः उसे बड़ा भारी दण्ड देना उचित प्रतीत होता है’। कलियुग के ऐसा कहने पर देवताओं ने उत्तर दिया-‘दमयन्ती ने हमारी आज्ञा लेकर नल का वरण किया है। ‘राजा नल सर्वगुणसम्पन्न है। कौन स्त्री उनका वरण नहीं करेगी ? जिन्होंने भलीभांति ब्रह्मचर्यव्रत का पालन करके चारों वेदों तथा पंचम वेद समस्त इतिहास पुराण का भी अध्ययन किया है, जो सब धर्मो को जानते हैं, जिनके घरपर पंचयज्ञों में धर्म के अनुसार सम्पूर्ण देवता नित्य तृप्त होते हैं, जो अहिंसापरायण, सत्यवादी तथा दृढ़तापूर्वक व्रत का पालन करनेवाले हैं, जिन नरश्रेष्ठ लोकपाल सदृश तेजस्वी नल में दक्षता, धैर्य, ज्ञान, तप, शौच, शम और दम आदि गुण नित्य निवास करते हैं। कले ! ऐसे राजा नलको जो मूढ़ शाप देने की इच्छा रखता है, वह मानो अपने को ही शाप देता है। अपने द्वारा अपना ही विनाश करता है। ‘ऐसे सöुणसम्पन्न महाराज नल को शाप देने की कामना करेगा, वह कष्ट से भरे हुए अगाध एवं विशाल नरककुण्ड में निमग्न होगा ।’ कलियुग और द्वापर से ऐसा कहकर देवतालोग स्वर्ग में चले गये। तदनन्तर देवताओं के चले जाने पर कलियुग ने द्वापर से कहो-‘द्वापर ! मैं अपने क्रोध का उपसंहार नहीं कर सकता। नल के भीतर निवास करूंगा और उन्हें राज्य से वंचित कर दूंगा। जिससे वे दमयन्ती रमण नहीं सकेंगे। तुम्हें भी जूए के पासों में प्रवेश करके मेरी सहायता करनी चाहिये’।

इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्व के अन्तर्गत नलोपाख्यानपर्व में कलि-देवता संवाद विषयक अठावनवां अध्याय पूरा हुआ।


« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

साँचा:सम्पूर्ण महाभारत अभी निर्माणाधीन है।