महाभारत वन पर्व अध्याय 291 श्लोक 57-70

अद्‌भुत भारत की खोज
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

एकनवत्यधिकद्विशततम (291) अध्याय: वन पर्व (रामोख्यानपर्व)

महाभारत: वन पर्व: एकनवत्यधिकद्विशततमोऽध्यायः 57-70 श्लोक का हिन्दी अनुवाद


विभीषण और सुग्रीव के साथ पुष्पक विमान द्वारा विदेहकुमारी सीता को वन की शोभा दिखाते हुए योद्धाओं में श्रेष्ठ श्रीरामचन्द्रजी ने किष्किन्धा मे पहुँचकर अंगद को, जिन्होंने लंका के युद्ध में महसन! पराक्रम दिखाया था, युवराज पद पर अभिषिक्त किया। इसके बाद लक्ष्मण तथा सुग्रीव आदि के साथ श्रीरामचन्द्रजी जिस मार्ग से आये थे, उसी के द्वारा अपनी राजधानी अयोध्या की ओर प्रस्थित हुए । तत्पश्चात् अयोध्यापुरी के निकट पहुँचकर राष्ट्रपति श्रीराम ने हनुमान् को दूत बनाकर भरत के पास भेजा। जब वायुपुत्र हनुमान्जी भरत की सारी चेष्टाओं को लक्ष्य करके उन्हें श्रीरामचन्द्रजी के पुनरागमन का प्रिय समाचार सुनाकर लौट आये, तब श्रीरामचन्द्रजी नन्दिग्राम में आये । वहाँ आकर श्रीराम ने देखा, भरत चीरवस्त्र पहने हुए हैं, उनका शरीर मैल से भरा हुआ है और वे मेरी चरण-पादुकाएँ आगे रखकर कुशासन पर बैइे हैं । युधिष्ठिर ! लक्ष्मण सहित पराक्रमी श्रीरामचन्द्रजी भरत तथा शत्रुघ्न से मिलकर बहुत प्रसन्न हुए । भरत और शत्रुघ्न को भी उस समय बड़े भाई से मिलकर तथा विदेहकुमारी सीता का दर्शन करके महान् हर्ष प्राप्त हुआ । फिर भरतजी ने बड़ी प्रसन्नता के साथ अयोध्या पधारे हुए भगवान श्रीराम को अपने पास धरोहर के रूप में रखा हुआ (अयोध्या का) राज्य अत्यन्त सत्कारपूर्वक लौटा दिया।

तत्पश्चात् विष्णुदेवता सम्बन्धी श्रवण नक्षत्र का पुण्य दिवस आने पर वसिष्ठ और वामदेव दोनों ऋषियों ने मिलकर शूरशिरोमणि भगवान राम का राज्याभिषेक किया। राज्याभिषेक का कार्य सम्पन्न हो जाने पर श्रीरामचन्द्रजी ने सुहृदों सहित सुग्रीव को तथा पुलत्स्यकुलनन्दन विभीषण को अपने-अपने घर लौटने की आज्ञा दी । श्रीराम ने भाँति-भाँति के भोग अर्पित करके उन दोनों का सत्कार किया। इससे वे बड़े प्रसन्न और आनन्दमग्न हो गये। तदनन्तर उन दोनों को कर्तव्य की शिक्षा देकर रघुनाथजी ने उन्हें बड़े दःख से विदा किया । इसके बाद उस पुष्पक विमान की पूजा करके रघुनन्दन श्रीराम ने उसे कुबेर को ही प्रेमपूर्वक लौटा दिया । तदनन्तर देवर्षियों सहित गोमती नदी के तट पर जाकर श्रीरघुनाथजी ने दस अश्वमेघ यज्ञ किये, जो स्तुमि के योग्य थे और जिमें अन्न आदि की इच्छा से आने वाले याचकों के लिये कभी द्वार बंद नहीं होता था ।

इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्व के अनतर्गत रामोख्यान पर्व में श्रीरामाभिषेक विषयक दो सौ इक्यानवेवाँ अध्याय पूरा हुआ।


« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

साँचा:सम्पूर्ण महाभारत अभी निर्माणाधीन है।