महाभारत वन पर्व अध्याय 280 श्लोक 49-64

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अशीत्यधिकद्वशततम (280) अध्‍याय: वन पर्व (रामोख्यान पर्व )

महाभारत: वन पर्व: अशीत्यधिकद्वशततम अध्यायः श्लोक 49-64 का हिन्दी अनुवाद

इस तरह कठोर वचनों द्वारा डराने-धमकाने वाली उन राक्षसियों से बार बार डरायी जाती हुई सीता पतिवियोग के शोक से संतप्त हो लंबी साँसें खंचती हुई बोलीं- ‘बहिनों ! तुम लोग शीघ्र मुझे मारकर खा जाओ। अब इस जीवन के लिये मुझे तनिक भी लोभ नहीं है। मैं काले घुघराले केश-कलाप से सुशोभित अपने स्वामी कमलनयन भगवान श्रीराम के बिना जीना ही नहीं चाहती। प्राणवल्लभ रघुनाथजी के दर्शन से वंचित होने के कारण निराहार ही रहकर ताड़ के पेड़ पर रहने वाली नागिन की तरह मैं अपने शरीर को सुखा डालूँगी; परंतु श्रीराम के सिवा दूसरे किसी पुरुष का सेवन कदापि नहीं करूँगी। मेरी इस बात को सत्य समझो और इसके बाद जो कुछ करना हो, करो। सीता की यह बात सुनकर कठोर बोली बोलने वाली वे राक्षसियाँराक्षसराज रावण को आदरपूर्वक वह सब समाचार निवेदन करने के लिये चली गयीं। वहाँ केवल धर्म को जानने वाली प्रियवादिनी त्रिजटा नो की राक्षसी रह गयी। अन्य सब राक्षसियों के चले जाने पर उसने सीता को सान्त्वना देते हुए कहा- ‘सखी सीते ! मैं तुमसे एक बात कहूँगी। तुम मुण्पर विश्वास करो। वामोरु ! तुम भय छोड़ो और मेरी यह बात सुनो। ‘यहाँ अविन्ध्य नाम से प्रसिद्ध एक बुद्धिमान्, वृद्ध और श्रेष्ठ राक्षस रहते हैं, जो सदा श्रीरामचन्द्रजी के हित का चिन्तन करते रहते हैं। उन्होंने तुमसे कहने के लिये मेरे द्वारा यह संदेश भेजा है। ‘उनका कहना है कि त्रिजटे ! तुम मेरी ओर से सीता को समझा-बुझाकर संतुष्ट करके यह कहना कि - ‘तुम्हारे स्वामी महाबली श्रीराम लक्ष्मण सहित सकुशल हैं। श्रीमान् रघुनाथजी ने इन्द्रतुल्य तेजस्वी वानरराज सुग्रीव के साथ मैत्री की है और तुम्हें यहाँ से छुड़ाने के लिये उद्योग आरम्भ कर दिया है; अतः भीरु! अब तुम्हें लोकनिन्दित रावण से तनिक भी भय नहीं करना चाहिये। नन्दिनी ! नलकूबर ने रावण को जो शाप दे रक्खा है, उसी से तुम सदा सुरक्षित रहोगी। कुछ समय पहले की बात है, इस पापी रावण ने नलकूबर की पत्नी एवं अपनी पुत्रवधू के तुल्य रम्भा का स्पर्श किया था, इसी से उसको शाप प्राप्त हुआ है। यद्यपि यह रावण जितेन्द्रिय नहीं है, तो भी किसी अवशा- स्वतन्त्रतापूर्वक उसे न चाहने वाली नारी के पास नहीं जा सकता है। सुग्रीव द्वारा सुरक्षित तुम्हारे स्वामी बुद्धिमान भगवान श्रीराम अपने भाई लक्ष्मण के साथ शीघ्र ही यहाँ आयेंगे और तुम्हें यहाँ से छुड़ा ले जायँगे’। (अविन्ध्य का संदेश सुनाकर फिर त्रिजटा ने अपनी ओर से कहा-) ‘सखी ! मैंने भी रात में बड़े भयंकर स्पप्न देखे हैं? जो इस पुलस्त्यकुल-घातक दुर्बुद्धि रावण के विनाश एवं अनिष्ट की सूचना देने वाले हैं’। ‘यह दारुण दुष्टात्मा तथा क्षुद्रकर्म करने वाला निशाचर अपने स्वभाव और शीलदोष से सब लोगों का भय बढ़ा रहा है’। ‘काल से इसकी बुद्धि मारी गयी है; अतः यह समस्त देचताओं से ईष्र्या रखता है। मैंने स्वप्न में जो कुद देखा है, चह सब इसके विनाश की सूचना दे रहा है’।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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