महाभारत वन पर्व अध्याय 270 श्लोक 14-21

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सप्‍तत्‍यधिकद्विशततम (270) अध्‍याय: वन पर्व (द्रोपदीहरण पर्व )

महाभारत: वन पर्व: सप्‍तत्‍यधिकद्विशततम अध्‍याय: श्लोक 14-21 का हिन्दी अनुवाद
द्रौपदी द्वारा जयद्रथ के सामने पाण्‍डवों के पराक्रम का वर्णन


जो समस्‍त धर्म ओर अर्थके निश्‍चयको जानते हैं, भयसे पीडित मनुष्‍योंका भय दूर करते हैं, जो परम बुद्धिमान् हैं, इस भूमण्‍डलमें जिनका रूप सबसे सुन्‍दर बताया जाता है, जो अपने बड़े भाइयोंकी सेवामें तत्‍पर रहनेवाले और उन्‍हें प्राणोंसे भी अधिक प्रिय हैं, समस्‍त पाण्‍डव जिनकी रक्षा करते हैं, वे ही ये मेरे वीर पति नकुल हैं ।जो खड्गद्वारा युद्ध करनेमें कुशल हैं, जनका हाथ बड़ी फुर्तीसे अद्भुत पैंतरे दिखाता हुआ चलता हैं, जो परम बुद्धिमान् और अद्वितीय वीर हैं, वे सहदेव मेरे पाँचवें पति हैं । जो मूढ़ प्राणी ! जैसे दैत्‍योंकी सेनामें देवराज इन्‍द्रका पराक्रम प्रकट होता है, उसी प्रकार युद्धमें तू आज सहदेवका महान पौरूष देखेगा । वे शौर्यसम्‍न्‍त्र, अस्‍त्रविद्याके विशेषज्ञ, बुद्धिमान मनस्‍वी तथा धर्मपुत्र राजा युधिष्ठिरका प्रिय करने वाले हैं । इनका तेज चन्‍द्रमा और सूर्यके समान है । ये पाण्‍डवोंमें सबसे छोटे और सबके प्रिय हैं । बुद्धिमें इनकी समानता करने वाला । दूसरा कोई नहीं है । ये अच्‍छे वक्‍ता और सत्‍पुरूषों की सभामें सिद्धान्‍तके ज्ञाता माने गये हैं । मेरे पति सहदेव शूरवीर, सदा ईर्ष्‍यारहित, बुद्धिमान् ओर विद्वान् हैं ।ये अपने प्राण छोड़ सकते हैं, प्रज्‍वलित अंगोंमें प्रवेश कर सकते हैं, परंतु धर्मके विरूद्ध कोई बात नहीं बोल सकते । नरवीर सहदेव सदा क्षत्रियधर्मके पालनमें तत्‍पर रहनेवाले और मनस्‍वी हैं । आर्या कुन्‍तीको ये प्राणोंसे भी बढ़कर प्रिय हैं । ( ओ मूढ़ ! ) रत्‍नोंसे लदी हुई नाव जैसे समुद्रके बीचमें जाकर किसी मगरमच्‍छकी पीठसे टकराकर टूट जाती है, उसी प्रकार पाण्‍डवलोग आज तेरे समस्‍त सैनिकोंका संहार करके तेरी इस सारी सेनाको छिन्‍त्र-भिन्‍त्र कर डालेंगे और तू अपनी आँखोंसे यह सब देखेगा । इस प्रकार मैंने तुझे इन पाण्‍डवोंका परिचय दिया है, जिनका अपमान करके तू मोहवश इस नीच कर्ममें प्रवृत्‍त हुआ है । यदि आज तू इनके हाथोंसे जीवित बच जाय और तेरे शरीरपर कोई आँच नहीं आये, तो तुझे जीते-जी यह दूसरा शरीर प्राप्‍त हो । वैशम्‍पायनजी कहते हैं-जनमेजय ! द्रौपदी यह बात कह ही रही थी कि पांच इन्‍द्रोंके समान पराक्रमी पाँचों पाण्‍डव भयभीत होकर हाथ जोड़नेवाले पैदल सैनिकोंको छोड़कर कुपित हो रथ, हाथी और घोड़ोंसे युक्‍त अवशिष्‍ट सेनाको सब ओरसे घेरकर खड़े हो गये और बाणोंकी ऐसी घनघोर वर्षा करने लगे कि चारों ओर अन्‍धकार छा गया ।

इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्वके अन्‍तर्गत द्रोपदीहरणपर्वमें द्रौपदीवचनविषयक दो सौ सत्‍तरवॉं अध्‍याय पूरा हुआ ।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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