महाभारत वन पर्व अध्याय 243 श्लोक 13-22

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त्रिचत्‍वारिंशदधिकद्विशततम (243) अध्‍याय: वन पर्व (घोषयात्रा पर्व )

महाभारत: वन पर्व: त्रिचत्‍वारिंशदधिकद्विशततम अध्‍याय: श्लोक 13-22 का हिन्दी अनुवाद
युधिष्ठिरका भीमसेनको गन्‍धर्वोके हाथसे कौरवोंको छुडानेका आदेश और इसके लिये अर्जुनकी प्रतिज्ञा

‘पाण्‍डवो ! वरदान, राज्‍यप्रदान पुत्रकी प्राप्ति कराना तथा शत्रुका संकटसे उद्धार करना-इन चार वस्‍तुओंमेसे प्रारम्‍भके तीन और अन्‍त का एक समान हैं । ‘तुम्‍हारे लिये इससे बढ़कर आनन्‍दकी बात और क्‍या होगी कि दुर्योधन विपत्तिमें पड़कर तुम्‍हारे बाहुबलके भरोसे अपने जीवनकी रक्षा करना चाहता है ? ‘वीर भीमसेन ! यदि मेरा यह यज्ञ प्रारम्‍भ न हो गया होता, तो मैं स्‍वयं ही दुर्योधनको छुड़ानेके लिये दौड़ा जाता । इस विषय में मेरे लिये कोई दूसरा विचार करना उचित नहीं है । ‘कुरूनन्‍दन भीम ! शान्तिपूर्ण ढंगसे समझा-बुझाकर जिस तरह भी दुर्योधनको छुडा सको, सभी उपायोंसे वैसा ही प्रयत्‍न करना । ‘यदि समझाने-बुझानेसे वह गन्‍धर्वराज चित्रसेन तुम्‍हारी बात न माने, तो कोमलतापूर्ण पराक्रमके द्वारा दुर्योधनको छुडानेकी चेष्‍टा करना । ‘भीम ! यदि कोमलतापूर्ण युद्धसे भी वह कौरवोंको न छोड़े, तो तुम सभी उपायोंसे उन लुटेरे गन्‍धर्वोको कैद करके कौरवोंको छुड़ाना । ‘भरतनन्‍दन वृकोदर ! इस समय मेरा यह यज्ञकर्म चालू है; अत: ऐसी स्थितिमें मैं तुम्‍हें इतना ही संदेश दे सकता हूँ’ । वैशम्‍पायनजी कहते हैं - जनमेजय ! अजातशत्रु युधिष्ठिरका उपर्युक्‍त वचन सुनकर अर्जुनने अपने बड़े भाईकी आज्ञाके अनुसार कौरवोंको छुडानेकी प्रतिज्ञा की । अर्जुन बोले – यदि गन्‍धर्वलोग समझाने-बुझानेसे कौरवोंको नहीं छोड़ेगे, तो यह पृथ्‍वी आज गन्‍धर्वराजका रक्‍त पीयेगी । राजन् ! सत्‍यवादी अर्जुनकी वह प्रतिज्ञा सुनकर कौरवोंके जीमें जी आया ।

इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्वके अन्‍तर्गत घोषयात्रापर्वमें दुर्योधनको छुड़ानेकी आज्ञाविषयक दो सौ तैंतालीसवां अध्‍याय पूरा हुआ ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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