महाभारत वन पर्व अध्याय 188 श्लोक 43-68

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अष्टाशीत्यधिकशततम (188) अध्‍याय: वन पर्व (मार्कण्डेयसमस्या पर्व)

महाभारत: वन पर्व: अष्टाशीत्यधिकशततम अध्‍याय: श्लोक 43-68 का हिन्दी अनुवाद

जनेश्वर! युगान्तरकालमें गायोंके थनोंमें बहुत कम दूध होगा। वृक्षपर फल और फूल बहुत कम होंगे और उनपर ( अच्छे पक्षियोंकी अपेक्षा ) कौए ही अधिक बसेरे लेंगे। भूपाल! ब्राह्मणलोग ( लोभवश ) ब्रह्माहत्या-जैसे पापोंसे लिप्त और मिथ्यावादी नरेशोंसे ही दान-दक्षिणा लेंगे।। राजन्! वे ब्राह्मण लोभ और मोहमें फंसकर झूठेअट्टमन्नं शिवो वेदो ब्राह्मणाश्च चतुष्पथाः केशो भगं समाख्यातं शूलं तद्विक्रयं विदुः।। ( नीलकण्ठ टीका ) धर्मका ढोंग रचनेवाले होंगे, इतना ही नहीं, वे भिक्षाके लिये सारी दिशाओंके लोगोंको पीडि़त करते रहेंगे। गृहस्थलोग करके भारसे डरकर लुटेरे बन जायंगे। ब्राह्मण मुनियों-जैसी कपटपूर्ण आकृति धारण किये वैश्यवृतिसे जीविका चलायेंगे और झूठे दिखावेके लिये नख तथा दाढ़ी-मूछ धारण करेंगे। नरश्रेष्ठ! धनके लोभसे ब्रह्मचारी भी आश्रमोंमें दम्भपूर्ण आचारको अपनायंगे और मद्यपान करके गुरूपत्नीगमन करेंगे। लोग अपने शरीरके मांस और रक्त बढ़ानेवाले इहलौकिक कर्मोंमें ही लगे रहेंगे। नरश्रेष्ठ! युगान्तरकालमें सभी आश्रम अनेक प्रकारके पाखण्डोंसे व्याप्त और दूसरोंसे मिले हुए भोजनका ही गुणगान करनेवाले होंगे। भगवान् इन्द्र भी ठीक वर्षाऋतुके समय जलकी वर्षा नहीं करेंगे। भारत! भूमिमें बोये हुए सभी बीज ठीकसे नहीं जमेंगे। कलियुगमें सब लोग हिंसामें ही सुख माननेवाले तथा अपवित्र रहेंगे। निष्पाप! उस समय अधर्मका फल बहुत अधिक मात्रामें मिलेगा। भूपाल! उस समय जो भी धर्ममें तत्पर रहेगा, उसकी आयु बहुत थोड़ी देखनेमें आयेगी; क्योंकि उस समय कोई भी धर्म टिक नहीं सकेगा। लोग बाजारमें झूठे माप-तौल बनाकर बहुत-सा माल बेचते रहेंगे। नरश्रेष्ठ! उस समयके बनिये भी बहुत माया जाननेवाले ( धूर्त ) होंगे। धर्मात्मा पुरूष हानि उठाते दीखेंगे और बड़े-बड़े पापी लौकिक दृष्टिसे उन्नतिशील होंगे। धर्मका बल घटेगा और अधर्म बलवान् होगा। युगान्तरकालमें धर्मिष्ठ मानव अल्पायु तथा दरिद्र देखे जायंगे और अधर्मीं मनुष्य दीर्घायु तथा समृद्धिशाली देखे जायंगे। युगान्तरके समय नगरोंके उद्यानोंमें पापी पुरूष अड्डा जमायेंगे और पापपूर्ण उपायोंद्वारा प्रजाके साथ दुव्र्यवहार करेंगे। राजन्! थोड़ेसे धनका संग्रह हो जानेपर लोग धनाढ्यता के मदसे उन्मत्त हो उठेंगे। यदि किसीने विश्वास करके अपने धनको धरोहर के रूपमें रख दिया तो अधिकांश पापचारी और निर्लज्ज मनुष्य उस धरोहरको हड़प लेनेकी चेष्टा करेंगे और उससे साफ कहे देंगे कि हमारे यहां तुम्हारा कुछ भी नहीं हैं। मनुष्यका मांस खानेवाले हिंसक जीव तथा पशु-पक्षी नागरिकोंके बगीचों और देवालयोंमें भी शयन करेंगे। राजन्! युगान्तरकालमें सात-आठ वर्षकी स्त्रियां गर्भ धारण करेंगी और दस-बारह वर्षकी अवस्थावाले पुरूषोंके भी पुत्र होंगे। सोलहवें वर्षमें मनुष्योंके बाल पक जायंगे और उनकी आयु शीघ्र ही समाप्त हो जायगी। महाराज! उस समयके तरूणोंकी आयु क्षीण होगी और उनका शील-स्वभाव बूढ़ोंका सा हो जायगा और तरूणोंका जो शील-स्वभाव होना चाहिये, वह बूढ़ों में प्रकट होगा। उस समयकी विपरीत स्वभाववाली स्त्रियां अपने योग्य पतियोंको भी धोखा देकर बुरे शील-स्वभाव की हो जायंगी और सेवकों तथा पशुओंके साथ भी व्यभिचार करेंगी। राजन्! वीर पुरूषोंकी पत्नियां भी परपुरूषों का आश्रय लेंगी और पतिके जीते हुए भी दूसरोंसे व्यभिचार करेंगी। महाराज! इस प्रकार आयुको क्षीण करनेवाले सहस्त्र युगोंके अन्तिम भागकी समाप्ति होनेपर बहुत वर्षोंतक वृष्टि बंद हो जाती हैं। पृथ्वीपते! तदनन्तर प्रचण्ड तेजवाले सात सूर्य उदित होकर सरिताओं और समुद्रोंका सारा जल सोख लेते हैं। भरतकुलभूषण! उस समय जो भी तृण-काष्ठ अथवा सूखे-गीले पदार्थ होते हैं, वे सभी भस्मीभूत दिखायी देने लगते हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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