महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 77 श्लोक 39-55

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सप्तसप्ततितम (77) अध्‍याय: भीष्म पर्व (भीष्‍मवध पर्व)

महाभारत: भीष्म पर्व: सप्तसप्ततितम अध्याय: श्लोक 39-55 का हिन्दी अनुवाद

महामना धृष्टद्युम्न ने तुरंत ही उन्हें अपने रथ पर बिठा लिया और उनके शरीर में धँसे हुए बाणों को निकाल दिया। शत्रुओं के बीच में ही भीमसेन को हृदय से लगाकर उन्हें पूर्णतः सान्त्वना दी। वह महान् संघर्घ आरम्भ होने पर आपका पुत्र दुर्योधन भाइयों के पास आकर बोला-यह दुरात्मा द्रुपदपुत्र आकर भीमसेन से मिल गया है। हम सब लोग बहुत बड़ी सेना के साथ इस पर आक्रमण करें,जिससे हमारा और तुम्हारा यह शत्रु हम लोगों की इस सेना को हानि पहुँचाने का विचार न कर सके। दुर्योधन का यह कथन सुनकर आपके सभी वीर पुत्र,जो धृष्टद्युम्न का आगमन नहीं सह सके थे,बड़े भाई की आशा से प्रेरित हो प्रलयकाल के भयंकर केतुओं की भाँति हाथ में आयुध लिये धृष्टद्युम्न के वध के लिये उन पर टूट पडे़। उन्होंने अपने हाथों में धनुष बाण ले रक्खे थे और वे रथ के पहियों की घरघराहट के साथ-साथ धनुष की प्रत्यन्चा को भी कँपाते हुए उसकी टंकार फैला रहे थे। जैसे मेघ पर्वत पर जल की बूँदें बरसाते हैं,उसी प्रकार वे द्रुपद पुत्र पर बाणों की वृष्टि करने लगे। परंतु विचित्र युद्ध करने वाले धृष्टद्युम्न उस समरागंण में अपने पैने बाणों द्वारा उन सबको अत्यन्त घायल करके स्वयं तनिक भी व्यथित नहीं हुए। युद्ध में सामने खड़े हुए आपके वीर पुत्रों को आगे बढ़ते और प्रचण्ड होते देख नवयुवक महारथी द्रुपदकुमार ने उनके वध के लिये भयंकर प्रमोहनास्त्रका प्रयोग किया। राजन्! जैसे युद्ध में देवराज इन्द्र दैत्यों पर कुपित होते हैं,उसी प्रकार आपके पुत्रों पर धृष्टद्युम्न का क्रोध बहुत बढ़ा हुआ था। उसके मोहनास्त्र के प्रयोगब से अपनी चेतना और धैर्य खोकर आपके नरवीर पुत्र रणभूमि में मोहित हो गये। आपके पुत्रों को मोह से युक्त एवं मरे हुए के समान अचेत हुआ देख समस्त कौरव-सैनिक हाथी,घोड़े तथा रथसहित सब ओर भाग चले। इसी समय दूसरी ओर शस्त्रधारियों में श्रेष्ठ द्रोणाचार्य ने द्रुपद के साथ जाकर उनको तीन भयंकर बाणों द्वारा बींध डाला। राजन! तब रणभूमि में द्रोण के द्वारा अत्यन्त घायल हो राजा दु्रपद पहले के वैर का स्मरण करते हुए वहाँ से दूर हट गये। द्रुपद को जीतकर प्रतापी द्रोणाचार्य ने अपना शंख बजाया। उस शंखनाद को सुनकर समस्त सोमक क्षत्रिय अत्यन्त भयभीत हो गये। तदनन्तर शस्त्रधारियों में श्रेष्ठ तेजस्वी द्रोणाचार्य ने सुना कि आपके पुत्र रणभूमि में प्रमोहनास्त्र से मोहित होकर पडे़ हैं। महाराज! यह सुनते ही महाधनुर्धर प्रतापी भारद्वाज-नन्दन द्रोणाचार्य तुरंत उस युद्धस्थल से चलकर वहाँ आ पहुँचे। आकर उन महारथी ने देखा कि धृष्द्युम्न और भीमसेन उस महायुद्ध में विचर रहे हैं और आपके पुत्र मोहाविष्ट होकर पडे़ हुए हैं। तब उन्होंने प्रज्ञास्त्र लेकर उसके द्वारा मोहनास्त्र का नाश कर दिया। इससे आपकेमहारथी पुत्रों में पुनः चेतनाशक्ति लौट आयी। वे समरभूमि में पुनः युद्ध के लिये भीमसेन और द्रुपद कुमार धृष्टद्युम्न की ओर चले। तब राजा युधिष्ठिर ने अपने सैनिकों को बुलाकर कहा-तुम लोग पूरी शक्ति लगाकर युद्धस्थल में भीमसेन और धृष्टद्युम्न के पथ का अनुसरण करो। अभिमन्यु आदि बारह वीर महारथी कवच आदि से सुसज्जित हो भीमसेन और धृष्टद्युम्न का समाचार प्राप्त करें। मेरा मन उनके विषय में निश्चिन्त नहीं हो रहा है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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