महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 115 श्लोक 23-42

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पञ्चदशाधिकशततम (115) अध्‍याय: भीष्म पर्व (भीष्‍मवध पर्व)

महाभारत: भीष्म पर्व: पञ्चदशाधिकशततम अध्याय: श्लोक 23-42 का हिन्दी अनुवाद

तदनन्तर आपके पुत्र की आज्ञा पाकर नाना देशों के स्वामी महाबली नरेशगण अपनी विशाल सेनासहित द्रोण तथा अश्वत्थामा के साथ अग्रसर हुए। उस समय वे सब वीर और समस्त भाइयों सहित बलवान दुःशासन समर भूमि में खड़े हुए भीष्म की रक्षा करने लगे। तदनन्तर आपके पक्ष के शूरवीर सैनिक महाव्रती भीष्म को आगे करके रणक्षेत्र में शिखण्डी आदि पाण्डव सैनिकों के साथ युद्ध करने लगे। वानरचिन्हित ध्वजा से विभूषित अर्जुन ने चेदि तथा पांचाल देश के वीरों के साथ शिखण्डी को आगे करके शान्तनुनन्दन भीष्म पर चढाई की। सात्यकि अश्वत्धामाके साथ, धृष्टकेतु पौरव के साथ तथा मन्त्रियों सहित दुर्योंधन के साथ अभिमन्यु युद्ध करने लगे। परंतप! सेनासहित विराटने सैनिकों सहित वृद्धक्षत्र के पुत्र जयद्रथ पर आक्रमण किया। युधिष्ठिर ने महाधनुर्धर शल्य तथा उनकी सेना पर धावा किया। सब ओर से सुरक्षित हुए भीमसेन हाथियों की सेना पर टूट पड़े। समस्त शस्त्रधारियों में श्रेष्ठ अनिवार्य और दुर्घर्ष वीर अश्वत्थामा पर भाइयों सहित धृष्टद्युम्न ने प्रयत्नपूर्वक आक्रमण किया। कर्णिकार के चिन्ह से युक्त ध्वज वाले सुभद्राकुमार अभिमन्युपर सिंह चिन्हित ध्वजा वाले शत्रुदमन राजकुमार वृहद्वल ने आक्रमण किया। शिखण्डी तथा पाण्डुपुत्र अर्जुन पर आपके पुत्रों ने समस्त राजाओं को साथ लेकर युद्धस्थल में आक्रमण किया। वे उन दोनों को मार डालना चाहते थे। इस प्रकार उन दोनों सेनाओं के वीर जब अत्यन्त भयानक पराक्रम प्रकट करने लगे और समस्त सैनिक इधर-उधर दौड़ने लगे, उस समय यह सारी पृथ्वी कांपने लगी। भारत! आपके और शत्रुपक्ष के सब सैनिक युद्ध में शान्तनुनन्दन भीष्म को देखकर विरोधी सैनिकों के साथ जमकर युद्ध करने लगे। भरतनन्दन! एक दूसरे पर धावा करने वाले उन संतप्त सैनिकों का महान कोलाहल सम्पूर्ण दिशाओं में व्याप्त हो गया। शंखों और दुन्दुभियों का गम्भीर घोष तथा हाथियों की गर्जना के साथ सैनिकों का सिंहनाद बड़ाभयंकर जान पड़ता था। समस्त राजाओं की चन्द्रमा और सूर्य के समान प्रकाशित होने वाली प्रभा वीरों के अंगद और किरीटों के सामने अत्यन्त फीकी पड़ गयी। धूल मेघों की घटा-सी छा गयी। उसमें अस्त्र-शस्त्रों की चमक बिजली की प्रभा के समान व्याप्त हो रही थी, धनुषों की टंकारध्वनि अत्यन्त भयंकर प्रतीत होने लगी। बाणों, शंखों तथा भेरियों के सम्मिलित शब्द जोर-जोर से सुनायी देने लगे। साथ ही दोनों सेनाओं में रथों की घरघराहट भी दूर तक फैलने लगी। दोनों सेनाओं के प्रास, शक्ति, ऋष्टि और बाणों के समुदायों से भरा हुआ वहां का आकाश प्रकाशहीन-सा जान पड़ता था। उस महासमर में रथी और घोड़े एक दूसरे पर टूटे पड़ते थे। हाथी हाथियों को और पैदल पैदल सिपाहियों को मार रहे थे। पुरूषसिंह! जैसे मांस के टुकडे़ के लिए दो श्येन पक्षीआपस में लड़ते हैं, उसी प्रकार वहां भीष्म के लिए कौरवों का पाण्डवों के साथ बड़ा भारी युद्ध हो रहा था। उस महासमर में एक दूसरे के वध के लिए एकत्र हुए विजयाभिलाषी सैनिकों का बड़ा भयंकर संग्राम हुआ।

इस प्रकार श्री महाभारत भीष्म पर्व के अन्तर्गत भीष्मवध पर्व में भीष्म का उपदेशविषयक एक सौ पंद्रहवां अध्याय पूरा हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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