महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 111 श्लोक 1-20

अद्‌भुत भारत की खोज
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

एकादशाधिकशततम (111) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्मवध पर्व)

महाभारत: भीष्म पर्व: एकादशाधिकशततम अध्याय: श्लोक 1-20 का हिन्दी अनुवाद

कौरव-पाण्डव पक्ष के प्रमुख महारथियों के द्वन्द्वयुद्ध का वर्णन संजय कहते है- राजन् ! युद्धस्थल में कवचधारी सात्यकि को भीष्म से युद्ध करने के लिये उद्यत देख महाधनुर्धर राक्षस अलम्बुष ने आकर उन्हें रोका। राजन् ! भरतनन्दन ! यह देख सात्यकि ने अत्यन्त कुपित हो उस रणक्षेत्र में राक्षस अलम्बुष को हँसते हुए से नौ बाण मारे। राजेन्द्र ! तब उस राक्षस ने भी अत्यन्त कुपित होकर मधुवंशी सात्यकि को नौ बाणों से पीडि़त किया। तब शत्रुवीरों का संहार करने वाले मधुवंशी सात्यकि का क्रोध बहुत बढ गया और समरभूमि में उन्होंने राक्षस पर बाण समूहों की वर्षा प्रारम्भ कर दी। तदनन्तर राक्षस ने सत्यपराक्रमी महाबाहु सात्यकि को तीखे सायकों से बींध डाला और सिंह के समान गर्जना की। उस समय राक्षस के द्वारा रणक्षेत्र में रोके जाने और अत्यन्त घायल होने पर भी मधुवंशी तेजस्वी सात्यकि हँसने और गर्जना करने लगे। तब क्रोध में भरे हुए भगदत्त ने पैने बाणों द्वारा मधुवंशी सात्यकि को समरभूमि में उसी प्रकार पीडित किया, जैसे महाबत अंकुशों द्वारा महान गजराज को पीडा देता है। तब रथियों में श्रेष्ठ सात्यकि ने युद्ध में उस राक्षस को छोडकर प्राग्ज्योतिषपुरनरेश भगदत्त पर झुकी हुई गाँठवाले बहुत से बाण चलाये। यह देख प्राग्ज्योतिषपुरनरेश भगदत्त सात्यकि के विशाल धनुष को एक सिद्धहस्त योद्धा की भाँति सौ धारवाले भल्ल के द्वारा काट डाला। तब शत्रुवीरों का हनन करने वाले सात्यकि ने दूसरा वेग वान धनुष लेकर पैने बाणों द्वारा युद्ध में क्रुद्व हुए भगदत्त को बींध डाला।। इस प्रकार अत्यन्त घायल होने पर महाधनुर्धर भगदत्त अपने मुँह के दोनों कोने चाटने लगे।
फिर उन्होंने उस महायुद्ध में कनक और वैदूर्य मणियों से विभूषित लोहे की बनी हुई सुदृढ़ एवं यमदण्ड के समान भयंकर शक्ति चलायी। उनके बाहुबल से प्रेरित होकर समरभूमि में सहसा अपने ऊपर गिरती हुई उस शक्ति के सात्यकि ने बाणों द्वारा दो टुकडे कर दिये। तब वह शक्ति प्रभाहीन हुई बहुत बडी उल्का के समान सहसा भूमि पर गिर पडी। प्रजानाथ ! भगदत्त की शक्ति को नष्ट हुई देख आपके पुत्र ने विशाल रथ सेना के साथ आकर सात्यकि को रोका। वृष्णिवंशी महारथी सात्यकि को रथ सेना से घिरा हुआ देख दुर्योधन ने अत्यन्त कुपित होकर अपने समस्त भाइयों से कहा- कौरवों ! तुम ऐसा प्रयत्न करो, जिससे इस समरांगण में आये हुए सात्यकि हमारे इस महान रथसमुदाय से जीवित न निकलने पावें। सात्यकि केे मारे जाने पर मैं पाण्डवों की विशाल सेना को मरी हुई ही मानता हूँ। दुर्योधन की इस बात को मानकर कौरव महारथियों ने रणभूमि में भीष्म का सामना करने के लिये उद्यत हुए सात्यकि से युद्ध आरम्भ किया।
इसी प्रकार भीष्म का वध करने के लिए उद्यत होकर आते हुए अर्जुनकुमार अभिमन्यु को बलवान काम्बोजराज ने युद्ध के मैदान में आगे बढने से रोक दिया। राजन् ! नरेश्वर ! काम्बोजराज ने झुकी हुई गाँठवाले अनके बाणों द्वारा अभिमन्यु को घायल करके पुनः चैसठ बाणों से मारकर उन्हें गहरी चोट पहुँचायी। तदनन्तर समरागण में भीष्म के जीवन की रक्षा चाहने वाले काम्बोजराज सुदक्षिण ने अभिमन्यु को पुनः पाँच बाण मारे और नौ बाणों द्वारा उनके सारथि को भी घायल कर दिया।


« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

साँचा:सम्पूर्ण महाभारत अभी निर्माणाधीन है।