महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 107 श्लोक 1-15

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सप्ताधिकशततम (107) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्मवध पर्व)

महाभारत: भीष्म पर्व: सप्ताधिकशततम अध्याय: श्लोक 1-15 का हिन्दी अनुवाद

नवें दिन के युद्ध की समाप्ति, रात में पाण्डवों की गुप्त मन्त्रणा तथा श्रीकृष्णसहित पाण्डवों का भीष्म से मिलकर उनके वध का उपाय जानना

संजय कहते है- राजन् ! कौरवों और पाण्डवों के युद्ध करते समय ही सूर्यदेव अस्ताचल को चले गये और भयंकर संध्याकाल आ गया। फिर हम लोगों ने युद्ध नहीं देखा। भरतनन्दन ! तत्पश्चात राजा युधिष्ठिर ने देखा कि संध्या हो गयी। भीष्म के द्वारा गहरी चोट खाकर मेरी सेना ने भय से व्याकुल हो हथियार डाल दिया है। किसी में लडने का उत्साह नहीं रह गया है। सारी सेना बाणों से क्षत विक्षत हो अत्यन्त पीडि़त हो गयी है। कितने ही सैनिक युद्ध से विमुख हो भागने लग गये है। उधर महारथी भीष्म क्रोध में भरकर युद्धस्थल में सबको पीडा दे रहे है। सोमकवंशी महारथी पराजित होकर अपना उतसाह खो बैठे है और घोररूप भयानक प्रदोषकाल आ पहुँचा है। इन सब बातों पर विचार करके राजा युधिष्ठिर ने सेना को युद्ध से लौटा लेना ही ठीक समझा। महान बल और पराक्रम से सम्पन्न भीष्म को हम किस प्रकार जीत सकेंगे, यही सोचते हुए राजा युधिष्ठिर ने अपने शिविर में जाने का विचार किया। इसके बाद महाराज युधिष्ठिर ने अपनी सेना को पीछे लौटा दिया। इसी प्रकार अपनी सेना भी उस समय युद्धस्थल से शिविर की ओर लौट चली। कुरूश्रेष्ठ ! इस प्रकार संग्राम में क्षत-विक्षत हुए वे सब महारथी सेना को लौटाकर शिविर में विश्राम करने लगे। पाण्डव भीष्म के बाणों से अत्यन्त पीडित हो रहे थे। उन्हें समरांगण में भीष्म के पराक्रम का चिन्तन करके तनिक भी शान्ति नहीं मिलती थी।
भारत भीष्म भी समर भूमि में सृंजयों तथा पाण्डवों को जीतकर आपकें पुत्रों द्वारा प्रशंसित और अभिवन्दित हो अत्यन्त हर्ष में हुए कौरवों कें साथ शिविर में गये। तत्पश्चात सम्पुर्ण भूतों को मोहमयी निद्रा में डालने वाली रात्री आ गयी उस भंयकर रात्री के आरम्भ काल में वृष्णि-वंशियों सहित दुर्घर्ष संजय और पाण्डव गुप्त मन्त्रणा के लिए एक साथ बैठे। उस समय वे समस्त महाबली वीर समयानुसार अपनी भलाई के प्रशन पर स्वस्थचित्त से विचार करने लगे। वे सभी लोग मन्त्रणा कर के किसी निश्चय पहुँच जाने में कुशल थे। उनमें यह विचार होने लगा कि हम भीष्म को कैसे मार सकेंगे और किस प्रकार इस पृथ्वी पर विजय प्राप्त करेगे। नरेश्वर ! उस समय राजा युधिष्ठिर ने दीर्घकाल तक गुप्त मन्त्राणा करने के पश्चात वमुदेवनन्दन भगवान् श्री कृष्ण की ओर देखकर यह बात कही- श्रीकृष्ण! देखिए, भयंकर पराक्रमी महात्मा भीष्म हमारी सेना का उसी प्रकार विनाश कर रहे है, जैसे हाथी सरकंडों के जंगलों को रौंद डालते हैं। माधव! इनके द्वारा जब हमारी सेनाएँ मारी जा रही हैं, उस अवस्था में इन दुर्घर्ष वीर भीष्म के साथ हम लोग कैसे युद्ध करगे। यहाँ जिस प्रकार हमारा भला हो, वह उपाय कीजिए। माधव ! आप ही हमारे आश्रय हैं।
हम दुसरे किसी का सहारा नहीं लेतें। हमें भीष्म जी के साथ युद्ध करना अच्छा नहीं लगता हैं। इधर महावीर भीष्म युद्ध स्थल में हमारी सेना का सहांर करते चले जा रहे हैं। ये प्रज्वलित अग्नि समान बाणों की लपटों से हमारी सेना में सबको चाटते (भस्म करते) जा रहे हैं, हम लोग इन महात्मा की ओर देख भी नहीं पा रहे हैं। जैसे महानाग तक्षक अपने प्रचण्ड विष के कारण भयंकर प्रतीत होता है, उसी प्रकार क्रोध में भरे हुए प्रतापी भीष्म युद्धस्थल में जब हाथ में धनुष लेकर पैने बाणों की वर्षा करने लगते है, उस समय अपने तीखे अस्त्र-शस्त्रों के कारण बड़े भयानक जान पड़ता है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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