महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 170 श्लोक 40-57

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सप्तत्यधिकशततम (170) अध्याय: द्रोणपर्व (घटोत्‍कचवध पर्व )

महाभारत: द्रोणपर्व: सप्तत्यधिकशततम अध्याय: श्लोक 40-57 का हिन्दी अनुवाद

तब महारथी वृषसेन को मारा गया मानकर कर्ण पुत्र शोक से संतप्त हो सात्यकि को पीड़ा देने लगा। कर्ण से पीड़ित होते हुए महारथी युयुधान बड़ी उतावली के साथ कर्ण को अपने बहुसंख्यक बाणों द्वारा बारंबार बींधने लगे।। सात्वतवंशी सात्यकि ने कर्ण को दस और वृषसेन को सात बाणों से घायल करके उन दोनों के दस्ताने और धनुष काट दिये। तब उन दोनों ने दूसरे शत्रु-भयंकर धनुषों पर प्रत्यन्चा चढ़ाकर सब ओर से तीखे बाणों द्वारा युयुधान को बींधना आरम्भ किया। राजन्! जब बड़े-बड़े वीरों का विनाश करने वाला वह संग्राम चल रहा था, उसी समय वहाँ गाण्डीव धनुष की गम्भीर टंकार-ध्वनि बड़े जोर-जोर से सुनायी देने लगी । नरेश्वर! अर्जुन के रथ का गम्भीर घोष और गाण्डीव धनुष की टंकार सुनकर सूतपुत्र कर्ण ने दुर्योधन से इस प्रकार कहा- ‘राजन्! ये महाधनुर्धर कुन्तीकुमार अर्जुन हमारी सारी सेना का संहार और मुख्य-मुख्य कुरूवंशी श्रेष्ठ पुरूषों का वध करके अपने उत्तम धनुष की टंकार करते हुए विजयी हो रहे हैं। उधर गाण्डीव धनुष का महान् घोष तथा गरजते हुए मेघ के समान पार्थ के रथ की घोर घर्घराहट सुनायी दे रही है। ‘इससे स्पष्ट जान पडत्रता है कि अर्जुन वहाँ अपने अनुरूप् पुरूषार्थ कररहे हैं। राजन्! भरतवंशियों की इस सेना को वे अनेक भागों में विदीर्ण (विभक्त) किये देते हैं। ‘उनके द्वारा तितर-बितर किये हुए हमारे बहुत से सैन्यदल कहीं भी ठहर नहीं पाते हैं। जैसे हवा घिरे हुए बादलों को छिन्न-भिन्न कर देती है, उसी प्रकार अर्जुन के सामने पड़कर अपनी सारी सेना अनेक टुकड़ियों में बँटकर भागने लगी है। उसकी अवस्था समुद्र में फटी हुई नौका के समान हो रही है। ‘राजन्! गाण्डीव धनुष से छूटे हुए बाणों द्वारा बिद्धहोकर भागते हुए सैकड़ों मुख्य-मुख्य योद्धाओं का वह महान् आर्तनाद सुनायी पड़ता है। ‘नृपश्रेष्ठ! इस रात्रि के समय आकाश में मेघ की गर्जना के समान जो अर्जुन के रथ के समीप नगाड़ों की ध्वनि हो रही है, उसे सुनो। ‘अर्जुन के रथ के आसपास जो भाँति-भाँति के हाहाकार, बारंबार सिंहनाद तथा अनेक प्रकार के और भी बहुत से शब्द हो रहे हैं, उनको भी श्रवण करो।‘ये सात्वतशिरोमणि सात्यकि इस समय हम लोगों के बीच में खडे़ हैं। यदि यहाँ इन्हें हम अपने बाणों का निशाना बना सकें तो निश्चय ही सम्पूर्ण शत्रुओं पर विजय पा सकेंगे। ‘ये पान्चालराज दु्रपद के पुत्र धृष्टद्युम्न, जो आचार्य द्रोण के साथ जूझ रहे हैं, हमारे रथियों में श्रेष्ठतम शूरवीर योद्धाओं द्वारा चारों ओर से घिर गये हैं। ‘महाराज! यदि हम सात्यकि तथा द्रुपदकुमार धृष्टद्युम्न को मार डालें तो हमारी स्थायी विजय होगी, इसमें संदेह नहीं है।‘राजेन्द्र! अतः हम लोग सुभद्राकुमार अभिमन्यु के समान वृष्णिवंश तथा पार्षतकुल के इन दोनों महारथी वीरों को सब ओरसे घेरकर मार डालने का प्रयत्न करें। ‘भारत! सात्यकि को बहुत से प्रधान कौरव वीरों के साथ उलझा हुआ जानकर सव्यसाची अर्जुन सामने से द्रोणाचार्य की सेना की ओर आ रहे हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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