महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 137 श्लोक 1-19

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सप्तत्रिंशदधिकशतकम (137) अध्याय: द्रोण पर्व (जयद्रथवध पर्व)

महाभारत: द्रोण पर्व: सप्तत्रिंशदधिकशतकम अध्याय: श्लोक 1-19 का हिन्दी अनुवाद

भीमसेन और कर्ण का युद्ध तथा दुर्योधन के सात भाइयों का वध

संजय कहते हैं - राजन् ! भीमसेन के धनुष की टंकार सुनकर राधा नन्दन कर्ण उसे सहन न कर सका। जैसे मतवाला हाथी अपने प्रतिपक्षी गजराज की गर्जना को नहीं सहन कर पाता। उसने थोड़ी देर के लिये भीमसेन की दृष्टि से दूर हटने पर देखा के भीमसेन ने आपके पुत्रों को मार गिराया है। नरश्रेष्ठ ! उनकी वह अवस्था देखकर उस समय कर्ण को बहुत दुःख हुआ। उसका मन उदास हो गया। वह गरम - गरम लंबी साँस खींचता हुआ पुनः पाण्डु नन्दन भीमसेन के सामने आया। उसकी आँखें क्रोध से लाल हो रही थीं और वह फुफकारते हुए महान् सर्प के समान उच्छ्वास खींच रहा था। उस समय बाणों की वर्षा करता हुआ कर्ण अपनी किरणों का प्रसार करते हुए सूर्य देव के समान शोभा पा रहा था। भरतश्रेष्ठ ! जैसे सूर्य की किरणों से पर्वत ढक जाता है, उसी प्रकार कर्ण के धनुष से छूटे हुए बाणों द्वारा भीमसेन आच्छादित हो गये। कर्ण के धनुष से छूटे हुए वे मयूर पंखधारी बाण सब ओर से आकर भीमसेन के शरीर में उसी प्रकार घुसने लगे, जैसे पक्षी बसेरा लेने के लिये वृक्षों पर आ जाते हैं। कर्ण के धनुष से छूटकर इधर - उधर पड़ने वाले सुवर्ण पंख युक्त बाण श्रेणी बद्ध हंसों के समान शोभा पा रहे थे।
राजन् ! उस समय अधिरथ पुत्र कर्ण के बाण केवल धनुष से ही नहीं, ध्वज आदि अन्य समानों से, छत्र से, ईषादण्उ आदि से तथा रथ के जूए से भी प्रकट होते दिखायी देते थे। अधिरथ पुत्र कर्ण ने अन्तरिक्ष को व्याप्त करते हुए महान् वेगशाली, आकाश में विचरने वाले गृध्र के पंखों से युक्त और सुवर्ण के बने हुए विचित्र बाण चलाये। कर्ण को यमराज के समान आयास युक्त हो बाते देख भीमसेन प्राणों का मोह छोड़कर पराक्रम पूर्वक उसे पैने बाणों द्वारा बींधने लगे। पराक्रमी पाण्डु पुत्र भीम ने कर्ण के वेग को असह्य देखकर उसके महान् बाण समूहों का निवारण किया। पाण्डु कुमार भीम ने अधिरथ पुत्र के शर समूहों का निवारण करके शिला पर चढत्राकर तेज किये हुए बीस अन्य बाणों द्वारा कर्ण को घायल कर दिया। जैसे कर्ण ने अपने बाणों द्वारा भीमसेन को आच्छादित किया था, उसी प्रकार पाण्डु पुत्र भीम ने भी कर्ण को ढक दिया। भरतनन्दन ! युद्ध में भीमसेन का वह पराक्रम देखकर आपके योद्धाओं तथा चारणों पे भी प्रसन्न होकर उनका अभिनन्दन किया।
राजन् ! भूरिश्रवा, कृपाचार्य, अश्वत्थामा, मद्रराज शल्य, जयद्रथ, उत्तमौजा, युधामन्यु, सात्यकि, श्रीकृष्ण ‘साधु - साधु’ कहकर वेग पूर्वक सिंहनाद करने लगे। महाराज ! उस रोमांचकारी भयंकर याब्द के प्रकट होने पर आपके पुत्र राजा दुर्योधन ने बड़ी उतावली के साथ राजाओं, राजकुमारों और विशेषतः अपने भाइयों से कहा - ‘तुम्हारा कल्याण हो, तुम सब लोग भीमसेन से कर्ण की रक्षा करने के लिये जाओ। ‘कहीं ऐसा न हो कि भीमसेन के धनुष से छूटे हुए बाण राधा नन्दन कर्ण को पहले ही मार डालें। अतः महाधनुर्धर वीरों ! तुम सब लोग सूत पुत्र की रक्षा का प्रयत्न करो’।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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