महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 90 श्लोक 26-39

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नवतितम (90) अध्याय: कर्ण पर्व

महाभारत: कर्ण पर्व: नवतितम अध्याय: श्लोक 26-39 का हिन्दी अनुवाद

यह सुनकर वेगशाली सूतपुत्र कर्ण के नेत्र क्रोध से लाल हो गये। उसने मद्रराज से कहा-कर्ण दो बाण का संधान नहीं करता। मेरे-जैसे वीर कपटपूर्वक युद्ध नहीं करते हैं।। ऐसा कहकर कर्ण ने जिसकी वर्षों से पूजा की थी, उस बाण को प्रयन्तपूर्वक शत्रु की ओर छोड़ दिया और आक्षेप करते हुए उच्चस्वर से कहा अर्जुन ! अब तू निश्चय ही मारा गया। अग्नि और सूर्य के समान तेजस्वी वह अत्यन्त भयंकर बाण कर्ण की भुजाओं से प्रेरित हो उसके धनुष और प्रत्यंचा से छूटकर आकाश में जाते ही प्रज्वलित हो उठा। उस प्रज्वलित बाण को बडे वेग से आते देख भगवान् श्रीकृष्ण युद्धस्थल में खेल-सा करते हुए अपने उत्तम रथ को तुरंत ही पैर से दबाकर उसके पहियों का कुछ भाग पृथ्वी में घँसा दिया। साथ ही सोने के साज-बाज से ढके हुए चन्द्रमा की किरणों के समान श्वेतवर्ण वाले उनके घोडे़ भी धरती पर घुटने टेक झुक गये। उस समय आकाश में सब ओर महान् कोलाहल गूँज उठा । भगवान् मधुसूदन की स्तुति-प्रशंसा के लिये कहे गये दिव्य वचन सहसा सुनायी देने लगे। श्री मधुसूदन के प्रयत्न से उस रथ के धरती में घँस जाने पर भगवान् के ऊपर दिव्यपुष्पों की वर्षा होने लगी और दिव्य सिंहनाद भी प्रकट होने लगे।
बुद्धिमान अर्जुन के मस्तक को विभूषित करने वाला किरीट भूतल, अन्तरिक्ष, स्वर्ग और वरूणलोक में भी विख्यात था। वह मुकुट उन्‍हें इन्द्र ने प्रदान किया था। कर्ण का चलाया हुआ वह सर्पमुख बाण रथ नीचा हो जाने के कारण अर्जुन के उसी किरीट में जा लगा। सूतपुत्र कर्ण ने सर्पमुख बाण के निर्माण की सफलता, उत्तम प्रयत्न और क्रोध- इन सबके सहयोग से जिस बाण का प्रयोग किया था, उसके द्वारा अर्जुन के मस्तक से उस किरीट को नीचे गिरा दिया, जो सूर्य, चन्द्रमा और अग्नि के समान कन्तिमान् तथा सुवर्ण, मुक्ता, मणि एवं हीरों से विभूषित था। ब्रह्माजी तपस्या और प्रयत्न करके देवराज इन्द्र के लिये स्वयं ही जिसका निर्माण किया था, जिसका स्वरूप बहुमूल्य, शत्रुओं के लिये भयंकर, धारण करने वाले के लिये अत्यन्त सुखदायक तथा परम सुगन्धित था, दैत्यों के वध की इच्छा से किरीटधारी अर्जुन को स्वयं देवराज इन्द्र ने प्रसन्नचित्त होकर जो किरीट प्रदान किया था, भगवान शिव, वरूण, इन्द्र और कुबेर- ये देवेश्वर भी अपने पिनाक, पाश, वज्र और बाणरूप उत्तम अस्त्रों द्वारा जिसे नष्ट नहीं कर सकते थे, उसी दिव्य मुकुट को कर्ण ने अपने सर्पमुख बाण द्वारा बलपूर्वक हर लिया। मन में दुर्भाव रखने वाले उस मिथ्या प्रतिज्ञ तथा वेगशाली नाग ने अर्जुन के मस्तक से उसी अत्यन्त अद्भुत, बलुमूल्य और सुवर्णचित्रित मुकुट का अपहरण कर लिया था।
सोने की जाली से व्याप्त वह जगमगाता हुआ मुकुट धमाके की आवाज के साथ धरती पर जा गिरा। जैसे अस्ताचल से लाल रंग मण्डल वाला सूर्य नीचे गिरता है, उसी प्रकार पार्थ का वह प्रिय, उत्तम एवं तेजस्वी किरीट पूर्वोक्त श्रेष्ठ बाण से मथित और विषाग्नि से प्रज्वलित हो पृथ्वी पर गिरा पड़ा। उस नाग ने नाना प्रकार के रत्नों से विभूषित पूवोक्त किरीट को अर्जुन के मस्तक से उसी प्रकार बलपूर्वक हर लिया, जैसे इन्द्र का वज्र वृक्षों और लताओं के नवजात अंकुरों तथा पुष्पशाली वृक्षों से सुशोभित पर्वत के उत्तम शिखरों को नीचे गिरा देता है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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