महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 62 श्लोक 13-18

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द्विषष्टितम (62) अध्याय: उद्योग पर्व (यानसंधि पर्व)

महाभारत: उद्योग पर्व: द्विषष्टितम अध्याय: श्लोक 13-18 का हिन्दी अनुवाद

मैं अपने अस्‍त्र-शस्‍त्र रख देता हूं। अब कभी पितामह मुझे इस सभा में अथवा युद्धभूमि में नहीं देखेंगे। भीष्‍म! आपके शांत हो जाने पर ही समस्‍त भूपाल रणभूमि में मेरा प्रभाव देखेंगे।

वैशम्‍पायनजी कहते हैं-जनमेजय! ऐसा कहकर महाधनुर्धर कर्ण सभा त्‍यगकर अपने धर चला गया। उस समय भीष्‍म ने कौरवासभा में उसकी हंसी उड़ाते हुए दुर्योधन से कहा-। ‘सूतपुत्र कर्ण जैसा सत्‍यप्रतिज्ञ निकला (पहले पाण्‍डवों-को जीतने की प्रतिज्ञा करके अब युद्धसे मुंह मोड़कर भाग गया), भला वैसा महान् भार वह कैसे संभाल सकता था? अब तुम लोग पाण्‍डव सेना के व्‍यूह का सामना करने के लिये अपनी सेना का भी व्‍यूह बनाकर युद्ध करो और परस्‍पर एक दूसरे के मस्‍तक काटकर भीमसेन के हाथों सारे संसार का संहार देखो। (कर्ण कहता था)-अवन्‍तीनरेश, कलिङ्गराज, जयद्रथ, चेदिश्रेष्‍ठ वीर तथा बाह्लिक के रहते हुए भी मैं सदा अकेला ही शत्रुओं के सहस्‍त्र-सहस्‍त्र एंव अयुत-अयुत योद्धओं का संहार कर डालूंगा। ‘जिस समय अनिंदनीय भगवान् परशुराम जी के समीप कर्ण ने अपने को ब्राह्मण बताकर ब्रह्मास्‍त्र की शिक्षाली, उसी समय उस नराधम सूतपुत्र के धर्म और तपका नाश हो गया’। जनमेजय! जब भीष्‍म जी ने ऐसी बात कही और कर्ण हथियार फेंककर चला गया, उस समय मन्‍दबुद्धि धृतराष्‍ट्रपुत्र दुर्योधन ने शांतनुनंदन भीष्‍म से इस प्रकार कहा।

इस प्रकार श्रीमहाभारत उद्योगपर्व के अंतर्गत यानसधिपर्व में कर्ण और भीष्‍म के वचन विषयक बासठवां अध्‍याय पूरा हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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