महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 167 श्लोक 1-21

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सप्‍तटषष्‍टयधिकशततम (167) अध्‍याय: उद्योग पर्व (रथातिरथसंख्‍यान पर्व)

महाभारत: उद्योग पर्व: सप्‍तटषष्‍टयधिकशततम अध्याय: श्लोक 1-21 का हिन्दी अनुवाद

भीष्‍मने कहा—नरेश्‍वर ! यह तुम्‍हारा मामा शकुनि भी एक रथी है। यह पाण्‍डवोंसे वैर बाँधकर युद्ध करेगा, इसमें संशय नहीं है। युद्धमें डटकर शत्रुओंका सामना करनेवाले इस शकुनिकी सेना दुर्घर्ष है । इसका वेग वायुके समान है तथा यह विविध आकारवाले अनेक आयुधोंसे विभूषित है। महाधनुर्धर द्रोणपुत्र अश्‍वत्‍थामा तो सभी धनुर्धरोंसे बढकर है। वह युद्धमें विचित्र ढंगसे शत्रुओंका सामना करनेवाला, सुद्रढ तथा महारथी है । महाराज ! गाण्‍डीवधारी अर्जुनकी भांति इसके धनुषसे एक साथ छूटे हुए बहुत-से-बाण भी परस्‍पर सटे हुए ही लक्ष्‍यतक पहुँचते हैं। रथियोंमें श्रेष्‍ठ इस वीर पुरूषके महत्‍व की गणना नहीं की ाजा सकती। यह महारथी चाहे, तो तीनों लोकोंको दग्‍ध कर सकता है। इसमें क्रोध है, तेज है और आश्रमवासी महर्षियोंके योग्‍य तपस्‍या भी संचित है। इसकी बुद्धि उदार है। द्रोणाचार्यने सम्‍पूर्ण दिवयास्‍त्रोंका ज्ञान देकर इसपर महान्‍ अनुग्रह किया है । किंतु भ्‍रतश्रेष्‍ठ ! नृपशिरोमणे ! इसमें एक ही बहुत बडा दोष है, जिससे मैं इसे न तो अतिरथी मानता हूं और न रथी ही। इस ब्राह्रम्‍णको अपना जीवन बहुत प्रिय है, अत: यह सदा दीर्घायु बना रहना चाहता है (यही इसका दोष है) अन्‍यथा दोनों सेनाओंमें इसके समान शक्तिशाली कोई नहीं है । यह एकमात्र रथका सहारा लेकर देवताओंकी सेनाका भी संहार कर सकता है। इसका शरीर ह्रष्‍ट-पुष्‍ट एवं विशाल है। यह अपनी तालीकी आवाजसे पर्वतोंको भी विदीर्ण कर सकता है। इस वीरमें असंख्‍या गुण हैं। यह प्रहार करनेमें कुशल और भयंकर तेजसे सम्‍पन्‍न है; अत: दण्‍डधारी कालके समान असह्र होकर युद्धभूमिमें विचरण करेगा। क्रोधमें यह प्रलयकालकी अग्निके समान जान पडता है। इसकी ग्रीवा सिंहके समान है । यह महातेजस्‍वी अश्‍वत्‍थामा महाभारत-युद्धके शेषभागका शमन करेगा। अश्‍वत्‍थामाके पिता द्रोणाचार्य महान्‍ तेजस्‍वी है। ये बूढे होनेपर भी नवयुवकोंसे अच्‍छे हैं । इस युद्धमें ये अपना महान्‍ पराक्रम प्रकट करेंगे, इसमें मुझे संशय नहीं है। समरभूमिमें डटे हुए द्रोणाचार्य अग्नि के समान हैंा अस्‍त्रवेग रूपी वायुका सहारा पाकर ये उद्दीप्‍त होंगे और सेनारूपी घास-फूस तथा ईंधनोंको पाकर प्रज्‍जवलित हो उठेंगे। इस प्रकार ये प्रज्‍वलित होकर पाणडुपुत्र युधिष्ठिरकी सेनाओंको जलाकर भस्‍म कर डालेंगे। ये नरश्रेष्‍ठ भरद्वाजनन्‍दन रथयूथपतियोंके समुदायके भी यूथपति हैं। ये तुम्‍हारे हितके लिये तीव्र पराक्रम प्रकट करेंगे। सम्‍पूर्ण मूर्धाभिषिक्‍त राजाओंके ये आचार्य एवं वृद्ध गुरू हैं । ये सृंजयवंशी क्षत्रियोंका विनाश कर डालेंगे; परंतु अर्जुन इन्‍हें बहुत प्रिय है। महाधनुर्धर द्रोणाचार्य का समुज्‍जवल आचार्यभाव अर्जुनके गुणों द्वारा जीत लिया गया है । उसका स्‍मरण्‍ करके ये अनायास ही महान्‍ कर्म करनेवाले कुन्‍तीपुत्र अर्जुनको कदापि नहीं मारेंगे। वीर ! ये आचार्य द्रोण अर्जुनके गुणोंका विस्‍तारपूर्वक उल्‍लेख करते हुए सदा उनकी प्रशंसा करते हैं और उन्‍हें पुत्रसे भी अधिक प्रिय मानते हैं। प्रतापी द्रोणाचार्य एकमात्र रथका ही आश्रय ले रणभूमिमें एकत्र एवं एकीभूत हुए सम्‍पूर्ण देवताओं, गन्‍धर्वों और मनुष्‍योंको अपने दिव्‍यास्‍त्रों द्वारा नष्‍ट कर सकते हैं। राजन्‍ !तुम्‍हारी सेनामें जो नृपश्रेष्‍ठ पौरव हैं, वे मेरे मतमे रथियोंमें उदार महारथी हैं। ये विपक्षके वीररथियोंको पीडा देनेमें समर्थ हैं। राजा पौरव अपनी विशाल सेनाके द्वारा शत्रुवाहिनीको संतप्‍त करते हुए पांचालों को उसी प्रकार भस्‍म कर डालेंगे, जैसे आग घास-फूस को। राजन्‍ ! राजकुमार बृहद्वल भी एक रथी है। संसारमें उनकी लंबी कीर्तिका विस्‍तार हुआ है । वे तुम्‍हारे शत्रुओंकी सेनामें कालके समान विचरेंगे।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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