महाभारत आश्‍वमेधिक पर्व अध्याय 92 वैष्णवधर्म पर्व भाग-14

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द्विनवतितम (92) अध्याय: आश्‍वमेधिक पर्व (वैष्णवधर्म पर्व)

महाभारत: आश्‍वमेधिक पर्व: द्विनवतितम अध्याय: भाग-14 का हिन्दी अनुवाद

तब वहां यमराज की आज्ञा से टेढ़ी चोंच वाले बड़े – बड़े बलवान् पक्षी आकर क्षणभर में उन पापियों की आंखे निकाल लेते हैं। जो मनुष्‍य ब्राह्मण को पीटता है, उसके शरीर से खून निकाल देता है, उसकी हड्डी तोड़ ड़ालता है अथवा उसके प्राण ले लेता है, वह क्रमश: इक्‍कीस नरकों में अपने पाप का फल भोगता है। पहले वह शूल पर चढ़ाया जाता है। फिर मस्‍तक नीचे करके उसे आग में लटका दिया जाता है और वह हजारों वर्षों तक उसमे पकता रहता है । वह दुष्‍ट – बुद्धिवाला पुरुष उस दारूण यातना से तब तक छुटकारा नहीं पाता, जब तक की उसके पाप का भोग समाप्‍त नहीं हो जाता। ब्राह्मण का अपमान करने के विचार से अथवा उनको मारने की इच्‍छा से जो उन पर आक्रमण करते हैं, वे एक लाख वर्ष तक तामिस्‍त्र नरक में पकाये जाते हैं। इसलिये ब्राह्मणों के प्रति कभी अमंगल सूचक वचन न कहें, उसने रूखी और कठोर बात न बोलें तथा कभी उनका अपमान न करें। जो श्रेष्‍ठ मनुष्‍य ब्राह्मणों की मधुर वाणी से पूजा करते हैं, उनके द्वारा नि:संदेह मेरी ही पूजा और स्‍तुति – क्रिया सम्‍पन्‍न हो जाती है। भारत ! जो ब्राह्मणों को फटकारते और गालियां सुनाते हैं, वे मुझे ही गाली देते और मुझे ही फटकारते हैं । इसमें कोई संशय नहीं है। युधिष्‍ठिर ने पूछा – दैत्‍यों का विनाश करने वाले देवदेवेश्‍वर ! मेरे मन में सुनने की बड़ी उत्‍कंठा है । मैं आपका भक्‍त हूं । केशव ! आप सर्वज्ञ हैं, इसलिये बतलाइये, मनुष्‍य लोक के और यम लोक के बीच की दूरी कितनी है ? सर्वश्रेष्‍ठ देव ! जब जीव पांच भौतिक शरीर से अलग होकर त्‍वचा, हड्डी और मांस से रहित हो जाता है, उस समय उसे समस्‍त सुख – दु:ख का अनुभव किस प्रकार होता है ? सुना जाता है कि मनुष्‍य लोक में जीव अपने शुभाशुभ कर्मों से बंधा हुआ है । उसे मरने के बाद यमराज की आज्ञा से भयंकर, दुर्धर्ष और घोर पराक्रमी यमदूत कठिन पाशों से बांधकर मारते – पीटते हुए ले जाते हैं । वह इधर – उधर भागने की चेष्‍ठा करता है। वहां पुण्‍य – पाप करने वाले सब तरह के सुख – दु:ख भोगते हैं ; अत: बतलाइये, मरे हुए प्राणी को दुर्धर्ष यमदूत किस प्रकार ले जाते हैं ? केशव ! यमलोक में जाते समय जीव का निश्‍चित रूप – रंग कैसा होता है ? और उसका शरीर कितना बड़ा होता है ? ये सब बातें बताइये। श्रीभगवान् ने कहा – राजन् ! नरेश्‍वर ! तुम मेरे भक्‍त हो, इसलिये जो कुछ पूछते हो, वह सब बात यथार्थ रूप से बता रहा हूं ; सुनो। युधिष्‍ठिर ! मनुष्‍यलोक और यमलोक में छियासी हजार योजन का अन्‍तर है। युधिष्‍ठिर ! इस बीच में मार्ग में न वृक्ष की छाया है, न तालाब है, न पोखरा है, न बावड़ी है और न कुआं ही है। युधिष्‍ठिर ! उस मार्ग में कहीं कोई भी मण्‍डप, बैठक, प्‍याऊ, घर, पर्वत, नदी, गुफा, गांव, आश्रम, बगीचा, वन अथवा ठहरने का दूसरा कोई स्‍थान भी नहीं है। जब जीव का मृत्‍यु काल उपस्‍थित होता है और वह वेदना से अत्‍यन्‍त छटपटाने लगता है, उस समय कारण – तत्‍व शरीर का त्‍याग कर देते हैं, प्राण कण्‍ठ तक आ जाते हैं और वायु के वश में पड़े हुए जीव को बरबस इस शरीर से निकलकर वायु रूप धारी जीव एक दूसरे अदृश्‍य शरीर में प्रवेश करता है ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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