महाभारत आदि पर्व अध्याय 91 श्लोक 14-18

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एकनवतितम (91) अध्‍याय: आदि पर्व (सम्भाव पर्व)

महाभारत: आदि पर्व: एकनवतितम अध्‍याय: श्लोक 14-18 का हिन्दी अनुवाद

जो मुनि सम्‍पूर्ण कामनाओं को छोड़कर कर्मों को त्‍याग चुका है और इंद्रिय-संयमपूर्वक सदा मौन में स्थित हैं, ऐसा संन्‍यासी लोक में परम सिद्धि को प्राप्त होता है। जिसके दांत शुद्ध और साफ है, जिसके नख (और केश) कटे हुए हैं, जो सदा स्नान करता है तथा यम-नियमादि से अलंकृत ( है, उन्‍हें धारण किये हुए ) है, शीतोष्‍ण को सहने से जिसका शरीर श्‍याम पड़ गया है, जिसके आचरण उत्तम हैं- ऐसा संन्‍यासी किस के लिये पूजनीय नहीं है? तपस्‍या से मांस, हड्डी तथा रक्त के क्षीण हो जाने पर जिसका शरीर कृश और दुर्बल हो गया है, वह (वानप्रस्‍थ) मुनि इस लोक को जीतकर परलोक पर भी विजय पाता है। जब ( वाणप्रस्‍थ ) मुनि सुख-दु:ख, राग-द्वेष आदि द्वन्‍द्वों से रहित एवं भली-भांति मौनावलम्‍बी हो जाता है, तब वह इस लोक को जीतकर परलोक पर भी विजय पाता है। जब संन्‍यासी मुनि गाय-बैलों की तरह मुख से ही आहार ग्रहण करता है, हाथ आदि का भी सहारा नहीं लेता, तब उसके द्वारा ये सब लोक जीत लिये गये समझे जाते हैं और वह मोक्ष की प्राप्ति के लिये समर्थ समझा जाता है। 


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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