महाभारत आदि पर्व अध्याय 79 श्लोक 13-14

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अष्टसप्ततितम (79) अध्‍याय: आदि पर्व (सम्भाव पर्व)

महाभारत: आदि पर्व: अष्टसप्ततितम अध्‍याय: श्लोक 13-14 का हिन्दी अनुवाद

इससे बढ़कर महान् दु:ख की बात मैं अपने लिये तीनों लोकों में और कुछ नहीं मानती हूं। इसमें संदेह नहीं कि कटुवचन मर्मस्‍थलों को विदीर्ण करेन वाला होता है। कटुवादी मनुष्‍यों से उनके सगे-सम्‍बन्‍धी और मित्र भी प्रेम नहीं करते हैं। जो श्रीहीन होकर शत्रुओं की चमकती हुई लक्ष्‍मी की उपासना करता है, उस मनुष्‍य का तो मर जाना ही अच्‍छा है; ऐसा विद्वान् पुरुष अनुभव करते हैं। नीच मनुष्‍यों के संग से मनुष्‍य धीरे-धीरे अपमानित हो जाता है। मुख से कटुवचनरूपी वाण छूटते हैं, उससे आहत होकर मनुष्‍य रात-दिन शोक में डूवा रहता है। शस्त्र, विष और अग्नि से प्राप्त होने वाला दु:ख शनै:-शनै: अनुभव में आता है (परंतु कटुवचन तत्‍काल ही अत्‍यन्‍त कष्ट देने लगता है )। अत: विद्वान् पुरुष को चाहिये कि वह दूसरों पर वाग्‍वाण न छोड़े । वाण से बिंधा हुआ वृक्ष और फरसे से काटा हुआ जंगल फिर पनप जाता है, परंतु वाणी द्वारा जो भयानक कटु वचन निकलता है, उससे घायल हुए हृदय का घाव फि‍र नहीं भरता।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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