महाभारत आदि पर्व अध्याय 6 श्लोक 1-14

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षष्‍ठ (6) अध्‍याय: आदि पर्व (पौलोम पर्व)

महाभारत: आदि पर्व: षष्‍ठ अध्याय: श्लोक 1-14 का हिन्दी अनुवाद

महर्षि च्यवन का जन्म, उनके तेज से पुलोमा राक्षस का भस्म होना तथा भृगु का अग्निदेव को शाप देना

उग्रश्रवाजी कहते हैं-- ब्रह्मन ! अग्नि का यह वचन सुनकर उस राक्षस ने वराह का रूप धारण करके मन और वायु समान वेग से उसका अपहरण किया। भृगुवंश शिरोमणि ! उस समय वह गर्भ जो अपनी माता की कुक्षि में निवास कर रहा था, अत्यन्त रोष के कारण योग बल से माता के उदर से च्युत होकर बाहर निकल आया च्युत होने के कारण ही उसका नाम च्यवन हुआ। माता के उदर से च्युत होकर गिरे हुए उस सूर्य के समान तेजस्वी गर्भ को देखते ही वह राक्षस पुलोमा को छोड़कर गिर पड़ा और तत्काल जलकर भसम हो गया। सुन्दर कटिप्रदेश वाली पुलोमा दुःख से मूर्च्छित हो गयी और किसी तरह सँभलकर भृगु कुल को आनन्दित करने वाले अपने पुत्र भार्गव च्यवन को गोद में लेकर ब्रह्माजी के पास चली गई। सम्पूर्ण लोकों के पितामह ब्रह्माजी ने स्वयं भृगु की उस पतिव्रता पत्नी को रोती और नेत्रों से आँसू बहाती देखा। तब पितामह भगवान ब्रह्मा ने अपनी पुत्रवधू को सान्त्वना दी, उसे धीरज बँधाया। उसके आँसुओं की बूँदों से एक बहुत बड़ी नदी प्रकट हो गयी। वह नही तपस्वी भृगु की उस पत्नी के मार्ग को आप्लावित किये हुए थी। उस समय लोक पितामह भगवान ब्रह्मा ने पुलोमा को मार्ग का अनुसरण करने वाली उस नदी को देखकर उसका नाम वसूधरा रख दिया, जो च्यवन के आश्रम के पास प्रवाहित होती है। इस प्रकार भृगुपुत्र प्रतापी च्यवन का जन्म हुआ। तदनन्तर पिता भृगु ने वहाँ अपने पुत्र च्यवन तथा पत्नी पुलोमा को देखा और सब बातें जानकर उन्होंने अपनी भार्या पुलोमा से कुपित होकर पूछा।

भृगु बोले— कल्याणी ! तुम्हे हर लेने की इच्छा से आये हुए उस राक्षस को किसने तुम्हारा परिचय दे दिया? मनोहर मुस्कान वाली मेरी पत्नी तुझ पुलोमा को वह राक्षस नहीं जानता था। प्रिये ! ठीक-ठीक बताओ। आज मैं कुपित होकर अपने उस आपराधी का शाप देना चाहता हूँ। कौन मेरे शाप से नहीं डरता हैं? किसके द्वारा यह अपराध हुआ है?

पुलोमा बोली—भगवन ! अग्निदेव ने उस राक्षस को मेरा परिचय दे दिया। इससे कुररी की भाँति विलाप करती हुई मुझ अबला को वह राक्षस उठा ले गया। आपके इस पुत्र के तेज से मैं उस राक्षस के चंगुल से छूट सकी हूँ। राक्षस मुझे छोड़कर गिरा और जलकर भस्म हो गया।

उग्रश्रवाजी कहते हैं— पुलोमा का यह वचन सुनकर परम क्रांधी महर्षि भृगु का क्रोध और भी बढ़ गया। उन्होंने अग्निदेव को शाप दिया-‘तुम सर्वभक्षी हो जाओगे।'



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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