महाभारत आदि पर्व अध्याय 206 श्लोक 41-50

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षडधिकद्विशततम (206) अध्‍याय: आदि पर्व (विदुरागमन-राज्‍यलम्‍भ पर्व )

महाभारत: आदि पर्व: षडधिकद्विशततम अध्‍याय: श्लोक 41-50 का हिन्दी अनुवाद


जो आम, आमड़ा, कदम्‍ब, अशोक, चम्‍पा, पुत्राग, नागपुष्‍प, लकुच, कटहल, साल, ताल, तमाल, मौलसिरी और केवड़ा आदि सुन्‍दर फूलों से भरे और फलों के भार से झुके हुए मनोहर वृक्षों से सुशोभित थे। प्राचीन आंवले, लोध्र, खिले हुए अंकोल, जामुन, पाटल, कुब्‍जक, अतिमुक्‍तक लता, करवीर, पारिजात तथा अन्‍य नाना प्रकार के वृक्ष, जिनमें सदा फल और फूल लगे रहते थे और जिनके ऊपर भांति-भांति के सहस्‍त्रों पक्षी कलरव करते थे, उन उद्यानों की शोभा बढ़ा रहे थे। मतवाले मयूरों के केकारव तथा सदा उन्‍मत्‍त रहनेवाली कोकिलों कि काकली वहां गूंजती रहती थी। उन उद्यानों में दर्पण के समान स्‍वच्‍छ क्रीड़ा भवन तथा नाना प्रकार के लता मण्‍डप बनाये गये थे। मनोहर चित्रशालाओं तथा राजाओं की विहार यात्रा के लिये निर्मित हुए कृत्रिम पर्वतों से भी वे उद्यान बड़ी शोभा पा रहे थे। उत्‍तम जल से भरी हुई अनेक प्रकार की बावलियां तथा कमल और उत्‍पल की सुगन्‍ध से वासित अत्‍यन्‍त रमणीय सरोवर जहां हंस, कारण्‍डव तथा चक्रवाक आदि पक्षी निवास करते थे, उन उद्यानों की शोभा बढ़ा रहे थे। वहां वन से घिरी हुई भांति-भांति की रमणीय पुष्‍करिणियां और सुरम्‍य एवं विशाल बहुसंख्‍यक तड़ाग बड़े सुन्‍दर जान पड़ते थे। वह नगर चारों वर्णों के लोगों से ठसाठस भरा था। माननीय शिल्‍पी वहां निवास करते थे। वह पुरी उपभोग में आने वाली समस्‍त सामग्रियों से सम्‍पन्‍न थी। वहां सदा श्रेष्‍ठ पुरुष रहा करते थे। असंख्‍य नर-नारी उस नगर की शोभा बढ़ाते थे। वहां मतवाले हाथी, ऊंट, गायें, बैल, गदहे और बकरे आदि पशु भी सदा मौजूद रहते थे। विश्‍वकर्मा द्वारा बनायी हुई उस पुरी में सदा साधु-महात्‍माओं का समागम होता था। वह इन्‍द्रप्रस्‍थ नगर स्‍वर्ग के समान शोभा पाता था। राजन्, कौरवराज महातेजस्‍वी कुन्‍तीनन्‍दन युधिष्ठिर ने वेदों के पारंगत विद्वान् ब्राह्मणों द्वारा मंगल कृत्‍य कराकर द्वैपायन व्‍यास को आगे करके धौम्‍य मुनि की सम्‍मति के अनुसार भाइयों तथा भगवान् श्रीकृष्‍ण के साथ बत्‍तीस दरवाजों से युक्‍त तोरण द्वार के सामने आकर वर्धमान नामक नगर द्वार में प्रवेश किया। उस समय शंक्‍ख और नगारों की आवाज बड़े जोर-जोर से सुनायी देती थी। सहस्‍त्रों ब्राह्मणों के मुख से निकले हुए जय घोष का श्रवण होता था। मुनि तथा सूत, मागध और बन्‍दीजन राजा की स्‍तुती कर रहे थे। राजा युधिष्ठिर हाथी पर बैठे हुए थे। उन्‍होंने राजमार्ग को पार करके एक उत्‍तम भवन में प्रवेश किया, जहां मांगलिक कृत्‍य सम्‍पन्‍न किया गया था। उस भवन में प्रवेश करके भांति भांति के सत्‍कारों से सम्‍मानित हों राजा युधिष्ठिर ने भगवान् श्रीकृष्‍ण के साथ क्रमश: सभी शेष ब्राह्मणों का पूजन किया। तदनन्‍तर अगणित नर-नारियों से सुशोभित वह राष्‍ट्र और नगर गोधन से सम्‍पन्‍न हो गया और दिनों दिन खेती की वृद्धि होने लगी। महाराज ! पुण्‍यात्‍मा मनुष्‍यों ने भरे हुए उस महान् राष्‍ट्र में प्रवेश करने के बाद पाण्‍डवों की प्रसन्‍नता निरन्‍तर बढ़ती गयी। भीष्‍म तथा राजा धृतराष्‍ट्र द्वारा धर्मराज युधिष्ठिर को आधा राज्‍य देकर वहां से विदा कर देने पर समस्‍त पाण्‍डव खाण्‍डवप्रस्‍थ के निवासी हो गये।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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