महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 25 श्लोक 25-49

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पञ्चविंश (25) अध्‍याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)

महाभारत: अनुशासन पर्व: पञ्चविंश अध्याय: श्लोक 25-49 का हिन्दी अनुवाद

जो कृतिकाश्रममें स्नान करके पितरोंका तर्पण करता है और महादेवजीको संतुष्ट करता है, वह पापमुक्त होकर स्वर्गलोक में जाता है। महापुरतीर्थमें स्नान करके पवित्रापूर्वक तीन रात उपवास करनेसे मनुष्य चराचर प्राणियों तथा मनुष्योंसे प्राप्त होने वाले भयको त्याग देता है। जो देवदारूवनमें स्नान करके तर्पण करता है, उसके सारे पाप धूल जाते हैं तथा जो वहां सात राततक निवास करता है, वह पवित्र हो मृत्युके पश्चात् देवलोकमें जाता है।। जो शरस्तम्ब, कुशस्तम्ब और द्रोणषर्मपदतीर्थके झरनोंमें स्नान करता है वह स्वर्गमें अप्सराओं द्वारा सेवित होता है। जो चित्रकूटमें मन्दाकिनीके जलमें तथा जनस्थानमें गोदावरीके जलमें स्नान करके उपवास करता है वह पुरूष राजलक्ष्मीसे सेवित होता है। श्याश्रममें जाकर वहां स्नान, निवास तथा एक पक्षतक उपवास करने वाला पुरूष अन्तर्धान के फलको प्राप्त कर लेता है। जो कौशिकी नदीमें स्नान करके लोलुपता त्यागकर इक्कीस रातोंतक केवल हवा पीकर रह जाता है वह मनुष्य स्वर्गको प्राप्त होता है। जो मतंगवापी तीर्थमें स्नान करता है, उसे एक रातमें सिद्धि प्राप्त होती है। जो अनालम्ब, अन्धक और सनातन तीर्थमें गोता लगाता है तथा नैमिषारणयके स्वर्गतीर्थमें स्नान करके इन्द्रिय-संयमपूर्वक एक मासतक पितरोंको देता है उसे पुरूषेमधयज्ञका फल प्राप्त होता है। गंगा-यमुनाके संगमतीर्थमें तथा कालंजरतीर्थमें एक मासतक स्नान और तर्पण करनेसे दस अश्वमेघ यज्ञोंका फल प्राप्त होता है। भरतश्रेष्ठ! षष्टिहद नामक तीर्थमें स्नान करनेसे अन्नदानसे भी अधिक फल प्राप्त होता है। माघ-मासकी अमावस्याको प्रयागराजमें तीन करोड़ दस हजार अन्य तीर्थोंका समागम होता है। भरतश्रेष्ठ! जो नियमपूर्वक उत्‍तम व्रतका पालन करते हुए माघके महीनेमें प्रयागमें स्नान करता है वह सब पापोंसे मुक्त होकर स्वर्गमें जाता है। जो पवित्र भावसे मरूद्गण तीर्थ, पितरोंके आश्रम तथा वैवस्वततीर्थमें स्नान करता है, वह मनुष्य स्वयं तीर्थरूप हो जाता है। जो ब्रह्मासरोवर (पुष्करतीर्थ) और भागीरथी गंगामें स्नान करके पितरोंका तर्पण करता और वहां एक मासतक निराहर रहता है उसे चन्द्रलोककी प्राप्ति होती है।

उत्पातक तीर्थ में स्नान और अष्टावक्र तीर्थ में तर्पण करके बारह दिनों तक निराहार रहने से नरमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है। गया में अश्मपृष्ठ (प्रेतशिला)-पर पितरों को पिण्ड देनेसे पहली, निरविन्द पर्वत पर पिण्डदान करने से दूसरी तथा क्रौंचपदी नामक तीर्थ में पिण्ड अर्पित करने से तीसरी ब्रह्महत्या को दूर करके मनुष्य सर्वथा शुद्ध हो जाता है। कलविंग तीर्थ में स्नान करने से अनेक तीर्थों में गोते लगाने का फल मिलता है। अग्निपुर तीर्थ में स्नान करने से अग्निकन्यापुर का निवास प्राप्त होता है। करवीरपुर में स्नान, विशाला में तर्पण और देवहद में मंजन करने से मनुष्य ब्रह्म रूप हो जाता है। जो सब प्रकार की हिंसा का त्याग करके जितेन्द्रिय-भाव से आवर्तनन्दा और महानन्दा तीर्थ का सेवन करता है उसकी स्वर्गस्थ नन्दनवन में अप्सराएं सेवा करती हैं। जो कार्तिक की पूर्णिमा को कृतिका का योग होने पर एकाग्रचित हो उर्वशी तीर्थ और लौहित्य तीर्थ में विधिपूर्वक स्नान करता है उसे पुण्डरीक यज्ञ का फल मिलता है। रामहद (परशुराम-कुण्ड)-में स्नान और बिपाशा नदी में तर्पण करके बारह दिनों तक उपवास करने वाला पुरुष सब छूट जाता है। महाहद में स्नान करके यदि मनुष्य शुद्ध चित से वहां एक मास तक निराहार रहे तो उसे जमदग्नि के समान सदगति प्राप्त होती है। जो हिंसा का त्याग करके सत्यप्रतिज्ञ होकर विन्ध्याचल में अपने शरीर को कष्ट दे विनीत भाव से तपस्या का आश्रय लेकर रहता है उसे एक महीने में सिद्धि प्राप्त हो जाती है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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