महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 123 श्लोक 17-22
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त्रयोविंशत्यधिकशततम (123) अध्याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)
स्वामी के बाहर चले जाने पर मैं आँखों में आँजन लगाना ललाट में गोरोचन का तिलक करना तैलाभ्यंगपूर्वक स्नान करना फूलों की माला पहननाए अंगों में अंगराग लगाना तथा श्रृंगार करना पंसद नहीं करती थी। जब स्वामी सुखपूर्वक सो जाते उस समय आवश्यक कार्य आ जाने पर भी मैं उन्हें कभी नहीं जगाती थी । इससे मेरे मन को विशेष संतोष प्राप्त होता था। परिवार के पालन.पोषण के कार्य के लिये भी मैं उन्हें कभी नहीं तंग करती थी । घर की गुप्त बातों को सदा छिपाये रखती और घर.आँगन को सदा झड़ बुहारकर साफ रखती थी। जो स्त्री सदा सावधान रहकर इस धर्ममार्ग का पालन करती है वह नारियों में अरून्धती के समान आदणीय होती है और स्वर्गलोक में भी उसकी विशेष प्रतिष्ठा होती है। भीष्मजी कहते हैं युधिष्ठिर ! सुमना को इस प्रकार पातिव्रत्य धर्म का उपदेश देकर तपस्विनी महाभागा शाण्डिली देवी तत्काल वहाँ अदृश्य हो गयीं। पाण्डुनन्दन ! जो प्रत्येक पर्व के दिन इस आख्यान का पाठ करता है वह देवलोक में पहुँचकर नन्दवन में सुखपूर्वक निवास करता है ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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