फ्रेडरिक जोलिओ क्यूरी

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फ्रेडरिक जोलिओ क्यूरी महान्‌ भौतिकविद् का जन्म पैरिस में १९ मार्च, १९०० ई. को हुआ। इनके पिता का नाम हेनरी जोलिओं और इनकी माता का नाम एमिली था। फ्रेडरिक जोलिओ की शिक्षा का प्रारंभ अपने नगर के माध्यमिक विद्यालय लैसी लेकेनाल में हुआ (सन्‌ १९०८-१९१७)। यहाँ इन्हें रसायन शास्त्र में विशेष रूचि हो गई। सन्‌ १९१७ में लैव्वॉज़िए के नाम पर स्थापित म्यूनिसिपल स्कूल में ये भरती हुए और फिर पैरिस नगर में 'इकोल डि फिज़ीक एट किमी इंडस्ट्रियेल' (भौतिकी और उद्योग रसायन विद्यालय) में शिक्षा प्राप्त की। निर्धन परिस्थितियों में जोलिओ ने प्रतिभा का प्रदर्शन किया। सन्‌ १९२३ में इन्होंने इंजीनियरिंग में डिप्लोमा लिया। कुछ दिनों सेना विभाग में भी कार्य किया और फिर पौल लांजेवाँ के परामर्श से मैडेम पीरे क्युरी के नवस्थापित रेडियम इंस्टिट्यूट में कार्य आरंभ किया। (सन्‌ १९२५-१९३०)। यहीं इन्होंने डाक्टर की उपाधि ली। मैडेम क्यूरी की पुत्री आइरीन क्यूरी से जोलिओ का यहीं परिचय हुआ। दोनों सन्‌ १९२६ में विवाहसूत्र में आबद्ध हो गए। जोलिओ ने यहां अनेक क्षेत्रों में कार्य किया। १९३०-१९३२ ई. के बीच जोलिओं ने बेरीलियम पर ऐल्फ़ा कणों के प्रभाव का अध्ययन किया और नए प्रकार की प्रतिभेदकारी किरणों की ओर जनता का ध्यान आकर्षित किया। चैडविक ने बताया कि ये किरणें न्यूट्रॉन कणों के पुंज हैं। न्यूट्रॉन के आविष्कार का श्रेय चैडविक का मिला। जोलिओ और आइरीन ने और उत्साह से कार्य प्रारंभ किया तथा शीघ्र ही कृत्रिम रेडियसक्रियता का अनुसंधान किया। इस अनुसंधान के निमित्त आइरीन और जोलिओं दोनों को १९३५ ई. में नोबुल पुरस्कार मिला। मैडेम क्यूरी के परिवार में यह तीसरा नोबुल पुरस्कार था। जोलिओ की प्रतिष्ठा विश्वव्याप्त थी। वे युद्ध के विरोधी और शांति के प्रचारकों तथा नि:शस्त्रीकरण के पक्षपातियों में थे। वे पैरिस के 'कॉलेज डि फ्रांस' में नाभिक रसायन के प्रधानाचार्य रहे। एक बार वे अपनी पत्नी सहित भारत भी आए थे। आइरीन की मृत्यु १९५६ ई. में हो गई थी। १४ अगस्त, १९५८ ई. को जोलिओ का भी सेंट ऐंटाइने चिकित्सालय में देहावसान हो गया।

टीका टिप्पणी और संदर्भ