फ्रांज़ कीलहॉर्न

अद्‌भुत भारत की खोज
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
  • कीलहॉर्न, फ्रांज़ का जन्म 1840 ई. जर्मनी के प्रसिद्ध प्राच्यविद्या विशारद।
  • कीलहॉर्न यूरोप के प्रख्यात संस्कृतज्ञों से संस्कृत की शिक्षा प्राप्त कर पूना के डेकन कालेज में प्राच्य भाषाओं के अध्यापक नियुक्त हुए।
  • यहाँ रहकर इन्होंने संस्कृत भाषा में श्लाघनीय पांडित्य प्राप्त किया और पाणिनीय व्याकरण का गंभीर अध्ययन किया तथा प्राचीन शिलालेखों का प्रौढ़ विश्लेषण किया।
  • उन्होंने नागेश भट्ट के परिभाषेंदुशेखर नामक पांडित्यपूर्ण ग्रंथ का विस्तृत टिप्पणियों के साथ अंग्रेजी अनुवाद प्रस्तुत किया है।
  • कीलहॉर्न का पतंजलि महाभाष्य का निर्दिष्ट पाठसंशोधन तथा संस्करण उनके गंभीर व्याकरण ज्ञान क परिचायक है।
  • यह संस्करण वैज्ञानिक दृष्टि से बेजोड़ माना जाता है।
  • उन्होंने अनेक वर्षों तक प्राचीन शिलालेखों के पढ़ने तथा उनके विश्लेषण में अपना समय लगाया।
  • इस कार्य के लिए वे गवर्नमेंट एपिग्राफ़िस्ट के पद पर नियुक्त किए गए थे।
  • सैकड़ों प्राचीन शिलालेखों का पढ़ना तथा इतिहास की गुत्थियाँ सुलझाना इनकी इतिहाससमर्मज्ञता का प्रमाण है।
  • भारत में अवकाश लेने पर यह जर्मनी के विख्यात विश्वविद्यालय गार्टिजन में संस्कृत के अध्यापक नियुक्त हुए थे।
  • अनेक विश्वविद्यालयों में इन्हें समानसूचक उपाधियों से अलंकृत किया था।

टीका टिप्पणी और संदर्भ