ज़ौक

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ज़ौक शेख मुहम्मद इब्राहीम का जन्म सन्‌ १७९० ईo में दिल्ली में हुआ था। इनकी शिक्षा हाफ़िज गुलाम रसूल 'शौक' के यहाँ हुई। उनके यहाँ हर समय काव्यचर्चा हुई करती थी, इससे इन्हें भी कविता करने की प्रबल इच्छा हुई तथा यह कविता करने लगे। इन्होंने अपने गुरु के ही उपनाम के वजन पर अपना 'ज़ौक' रखा। पहले तो ये शौक से ही परामर्श लिया करते थे, पर बाद में शाह नसीर से संशोधन कराने लगे। शिष्य की प्रतिभा, भावगांभीर्य तथा शब्दयोजना देखकर शाह नसीर को बड़ी ईर्ष्या हुई जिससे ये वहाँ से हट गए। क्रमश: इनका अभ्यास बहुत बढ़ गया तथा यह युवराज 'अबू जफ़र' की कविता ठीक करने लगे। कुछ दिनों बाद इन्हें 'खाकानिए हिंद' की पदवी मिली। जब जफ़र बादशाह हुए तब इनका वेतन अच्छा हो गया और सुखपूर्वक रहते हुए सन्‌ १८५५ ईo में इनकी मृत्यु हुई।

ज़ौक स्वभावत: सहृदय तथा सुशील थे और इन्होंने ज्योतिष, हकीमी तथा गानविद्या में भी अच्छी योग्यता प्राप्त की थी। ये अध्ययनशील थे और काव्यकला का इन्हें पूर्ण ज्ञान था। इनकी प्रसिद्धि का मुख्य आधार इनके कसीदे हैं। कसीदों में वस्तुत: दो ही कवि प्रसिद्ध हैं, एक सौदा और दूसरे ज़ौक। गजलों में भी ज़ौक का नाम मोमिन तथा ग़्ाालिब के साथ लिया जाता है। ज़ौक में भाषासौष्ठव, मुहावरों के सुप्रयोग तथा कलापूर्ण योजनाएँ अवश्य हैं और उनका पांडित्य भी प्रकट करते हैं पर गजलों में जो वेदना, वक्रता तथा प्रसाद गुण होने चाहिए उनका ज़ौक की गजलों में उतना परिपाक नहीं हो पाया है। इसका कारण इनकी प्रकृति है, जो अधिकतर धर्मभीरु थी। इनमें यह स्वच्छंद मस्ती नहीं है जिसके बिना गजल में हृदय को स्पर्श करने की शक्ति नहीं आती।


टीका टिप्पणी और संदर्भ