घाट

अद्‌भुत भारत की खोज
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
लेख सूचना
घाट
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 4
पृष्ठ संख्या 115
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक फूलदेव सहाय वर्मा
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1964 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक प्रमिला वर्मा

घाट (पूर्वी तथा पश्चिमी) भारत के दक्षिण के पठार के पूर्वी एवं पश्चिमी किनारे पूर्वी घाट तथा पश्चिमी घाट के नाम से विख्यात हैं। भूगर्भशास्त्रियों के मतानुसार पठार का पश्चिमी भाग टूटकर अरब सागर में डूब गया तथा उसका किनारा प्रपाती ढलान के रूप में कन्याकुमारी तक फैला है। ताप्तो के दक्षिण में लगभग २५०-३०० मील तक इसकी औसत ऊँचाई ३००० फुट से ४००० फुट है जब कि चोटियाँ ४,५००-५,००० फुट तक पहुंच जाती हैं। इस भाग में कटाफटा प्रपाती ढलान है जो सँकरे कोंकण तट में समाप्त होता है। गोआ के निकट घाट दीवार के समान खड़ा है जिससे होकर नदियों ने सँकरी एवं गहरी घाटियाँ बनाई हैं। गोआ के दक्षिण में लगभग २०० मील तक घाट ३,००० फुट से नीचा है किंतु नीलगिरि में पुन: उसक ऊँचाई ८,७६० फुट तक पहुँच जाती है। लगभग ८०० मील की लंबाई में केवल तीन दर्रे- भोर घाट, थार घाट तथा पाल घाट- हैं, जिनसे होकर यातायात मार्ग तट तक जाते हैं। इनमें पालघाट सबसे चौड़ा है।

पूर्वी घाट नदियों की घटियों के बीच टुकड़ों के रूप में है तथा इसकी औसत ऊँचाई कहीं भी ३,००० फुट से अधिक नहीं है। गोदावरी और कृष्णा के बीच लगभग १०० मील तक पूर्वी घाट नहीं है। उत्तर में महानदी एवं गोदावरी के बीच में प्राचीन चट्टानों के कटे फटे प्रदेश हैं। मध्य में कृष्णा तथा कावेरी के बीच नल्लमलै, वेल्लीकोंडा तथा पालकोंडा नाम की प्राचीन पर्वतशृंखलाओं के अवशेष हैं तथा दक्षिण में शेवारॉय तथा पांचमलाई के रूप में नाइस (gneiss) चट्टानों के भाग हैं। उड़ीसा के पूर्वी घाट सघन वनों से ढका पिछड़ा हुआ प्रदेश है। अन्य भागों में यद्यपि ऊँचाई अधिक नहीं है, तथापि कुछ भागों में अत्यधिक कटा फटा होने के कारण यातायात असंभव है।


टीका टिप्पणी और संदर्भ