गणधर

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लेख सूचना
गणधर
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3
पृष्ठ संख्या 356
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक सुधाकर पांडेय
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1976 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक परमेश्वरीलाल गुप्त

गणधर जैन धर्मानुयायियों में प्रचलित एक उपाधि। जो अनुत्तर, ज्ञान और दर्शन आदि धर्म के गण को धारण करता है वह गणधर कहा जाता है। इसको तीर्थंकर के शिष्यों के अर्थ में ही विशेष रूप से प्रयोग किया जाता है। गणधर को द्वादश अंगों में पारंगत होना आवश्यक है। प्रत्येक तीर्थंकर के अनेक गणधर कहे गए है। महावीर के 11 गणधर थे। उनके नाम, गोत्र और निवासस्थान इस प्रकार हैं------

1. इंद्रभूति गोतम गोर्वरग्राम

2.अग्निभूति गोतम गोर्वरग्राम

3.वायुभूति गोतम गोर्वरग्राम

4. व्यक्त भारद्वाज कोल्लक सन्निवेश

5. सुधर्म अग्निवेश्यायन कोल्लक सन्निवेश

6. मंडिकपुत्र वाशिष्ठ मौर्य सन्निवेश

7.भौमपुत्र कासव मौर्य सन्निवेश

8. अकंपित गोतम मिथिला

9. अचलभ्राता हरिभाण कोसल

10.मेतार्य कौंडिन्य तुंगिक सन्निवेश

11.प्रभास कौंडिन्य राजगृह

ये सभी ब्राह्मण थे। इससे ऐसा जान पड़ता है कि महावीर के समय में ब्राह्मणों में ही वैचारिक क्रांति का आरंभ हुआ था।


टीका टिप्पणी और संदर्भ