क्रिस्मस

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लेख सूचना
क्रिस्मस
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3
पृष्ठ संख्या 209
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक सुधाकर पांडेय
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1976 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक कामिल बुल्के

क्रिस्मस (बड़ा दिन)। ईसामसीह के जन्म के स्मरणार्थ ईसाइयों द्वारा 25 दिसंबर को मनाया जानेवाला त्योहार। प्रारंभ में ईसाइयों का कोई अपना पर्वचक्र नही था; सभी यहूदियों के प्रमुख त्योहार पास्का के अवसर पर ईसा के पुनरुत्थान का उत्सव मनाते थे (दे. पुनरुत्थान)। लगभग 200 ई. में एपिफानी पर्व का प्रचलन हुआ (दे. प्रभुप्रकाश); बाद में संभवत: चौथी शताब्दी के प्रारंभ में, ईसा के जन्म के समादर में 25 दिसंबर को रोम में नया पर्व मनाया जाने लगा। उस समय तक ईसा की जन्मतिथि विषयक कोई प्रामाणिक पंरपरा नहीं थी; तीसरी शताब्दी ई. में सूर्योपासना रोमन साम्राज्य का प्रधान धर्म बना था तथा रोम में 25 दिसंबर को शिशिर अनयांत (Solstice ) के अवसर पर अजेय सूर्य का त्योहार बनाया जाता था। उसी दिन 25 दिसंबर को ईसाइयों ने भी अपने उपास्य के जन्मोत्सव के लिये स्वीकृत कर लिया और यह पर्व पुनरुत्थान की तरह ही बड़े समारोह के साथ मनाया जाने लगा। रोम से यह प्रथा धीरे धीरे सर्वत्र फैली। इतिहास इसका साक्षी है कि चौथी शताब्दी के अंत तक 25 दिसंबर का पर्व अंतिओक तथा कोंस्तांतिनस में मनाया जाता रहा।

क्रिस्मस का अर्थ है ्ख्राीस्त (ईसा) का मिस्सा (बलि अथवा यज्ञ)। लगभग पाचँवी शताब्दी के उस दिन तीन बार मिस्सा चढ़ाया जाता था- रात में, उषा के समय और दिन में। आजकल भी प्रत्येक पुरोहित उस दिन तीन बार मिस्सा चढ़ाता है। उस पर्व के अवसर पर गिरजाघरों में बालक ईसा की मूर्ति को एक चरणी में लिटाकर जनता को स्मरण कराया जाता है कि ईसा का जन्म गुफा में हुआ था। यह प्रथा फ्रांसीसी साधुओं की प्रेरणा से सर्वत्र फैली। ईसाई देशों में अन्य अनेक प्रकार के रिवाज प्रचलित हैं जिनकी उत्पत्ति प्राय: अज्ञात है और उस दिन बरते जाते हैं। अंग्रेजी भाषाभाषियों के यहाँ इस अवसर पर एक दूसरे को उपहार देने तथा शुभ कामनाएँ भेजने का रिवाज है।


टीका टिप्पणी और संदर्भ