कोर्ट मार्शल

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लेख सूचना
कोर्ट मार्शल
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3
पृष्ठ संख्या 171
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक सुधाकर पांडेय
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1976 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक जितेन्द्र कुमार मित्तल

कोर्ट मार्शल सैनिक न्यायालय जो स्थल, जल और वायुसेना के अनुशासन के विरूद्ध किए गए अपराधों की जाँच (ट्रायल) करती और अपराध सिद्ध होने पर यह अपराधी को दंड देती है। मार्शल लॉ की व्यवस्था भी कोर्ट मार्शल करती है। कोर्ट मार्शल करती है। कोर्ट मार्शल का मुख्य ध्येयसेना में अनुशासन कायम रखना है। कोर्ट मार्शल की एक विशेषता, जो सिविल कोर्ट में नहीं पाई जाती, यह है कि इसमें एक जज ऐडवोकेट होता है जिसका मुख्य कार्य प्रमाण को कोर्ट के समक्ष रखना और कोर्ट को कानूनी प्रश्नों से अवगत करना है। कोर्ट मार्शल के सदस्य प्राय: सेना के अधिकारी होते हैं।

संयुक्त राष्ट्र अमरीका के कोर्ट मार्शल को वहाँ के विधान द्वारा असाधारण क्षेत्राधिकार प्राप्त है। युनिफार्म ऑव मिलिटरी जस्टिस, 1950 में कोर्ट मार्शल की स्थापना और उनकी श्रेणियों आदि का विवरण है। इंग्लैंड में आर्मी ऐक्ट, नेवल डिसिप्लिन ऐक्ट, 1922 के द्वारा संशोधित नेवल डिसिप्लिन ऐक्ट 1866 और मैनुएल ऑव एयर फ़ोर्स में कोर्ट मार्शल की स्थापना का विधान है। भारत में आर्मी ऐक्ट, 1950, एयर फ़ोर्स ऐक्ट, 1950 और नेवी ऐक्ट, 1957 में कोर्ट मार्शल की स्थापना का विधान है। आर्मी ऐक्ट, 1950 के अंतर्गत चार प्रकार की कोर्ट मार्शल है :

जनरल कोर्ट मार्शल, डिस्ट्रिक्ट कोर्ट मार्शल, समरी जनरल कोर्ट मार्शल, समरी कोर्ट मार्शल,

एयर फ़ोर्स ऐक्ट 1950 में केवल प्रथम तीन प्रकार के और नेवी ऐक्ट, 1957 में केवल एक ही प्रकार के कोर्ट मार्शल का विधान है।

सभी अधिनियमों में कुछ उपबंधों को छोड़कर लगभग एक से ही उपबंध हैं। कोर्ट मार्शल के सदस्यों में से उच्चतर अधिकारी कोर्ट का प्रधान होता है। जज ऐडवोकेट से संबंधित उपबंध को छोड़कर अन्य अधिनियमों में कोर्ट मार्शल के संयोजन, रचना, अधिकार, स्थान आदि का विवरण है। इन अधिनियमों के उपबंधों को दृष्टिगत रखते हुए, कोर्ट मार्शल के समक्ष संपूर्ण कार्यवाही पर 1872 का एविडेंस ऐक्ट लागू होता है और बहुमत से निर्णय किया जाता है। बराबर मतों पर अभियुक्त के पक्ष में निर्णय पर ही मृत्यु दंड दिया जा सकता है। यदि कोर्ट के पाँच सदस्य हो तो चार सदस्यों के निर्णय पर ही मृत्यु दंड दिया जा सकता है।

आर्मी ऐक्ट और एयरफ़ोर्स ऐक्ट में कोर्ट मार्शल के निर्णय को अन्य अधिकारी द्वारा स्वीकृति करने अथवा पुन: विचार करने अथवा संशोधन करने के भी नियम हैं। ऐसे अधिकारी के समक्ष कोर्ट मार्शल के निर्णय के विरूद्ध प्रार्थनापत्र प्रस्तुत करने का अधिकार दंडित व्यक्ति को प्राप्त है। स्वीकृत निर्णय के विरूद्ध भी दंडित व्यक्ति भारतीय सरकार, सेनाध्यक्ष या अन्य मनोनीत अधिकारी को प्रार्थनापत्र दे सकता है। इन लोगों को कोर्ट मार्शल के समक्ष हुई संपूर्ण कार्यवाही को अवैधानिक और न्यायविरूद्ध घोषित करने का अधिकार है। नेवी ऐक्ट में जज ऐडवोकेट जनरल को न्यायिक समीक्षा (जुडिशल रिव्यू) का अधिकार दिया गया है। वह स्वयं अथवा प्रार्थनापत्र के आधार पर अपने इस अधिकार का प्रयोग कर सकता है। वह अपनी रिर्पोट जलसेनाध्यक्ष के पास भेजता है जो कुछ परिस्थितियों में सारी कार्यवाही को भारत सरकार के पास विचारार्थ भेज सकता है। इसके अतिरिक्त दंडित व्यक्ति को कोर्ट मार्शल के निर्णय के विरूद्ध जलसेनाध्यक्ष अथवा भारत सरकार के पास आवेदनपत्र देने का भी विधान है। सेनाध्यक्ष अथवा भारत सरकार आवेदन पर विचारकर समुचित आदेश दे सकती है।



टीका टिप्पणी और संदर्भ