"महाभारत अादि पर्व अध्याय 1 श्लोक 43-58" के अवतरणों में अंतर

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कोई-कोई इस ग्रन्थ का आरम्‍भ ‘नारायण’ ‘नमस्‍कृत्‍य’ से मानते हैं और कोई-कोई आस्‍तीक पर्व से। दूसरे विद्वान [[ब्राह्मण]] उपचिर वसु की कथा से इसका विधिपूर्वक पाठ प्रारम्‍भ करते हैं। विद्वान पुरूष इस भारत संहिता के ज्ञान को विविध प्रकार से प्रकाशित करते हैं। कोई–कोई ग्रन्‍थ की व्‍यवस्था करके समझाने में कुशल होते हैं तो दूसरे विद्वान अपनी तीक्ष्‍ण मेधाशक्ति के द्वारा इन ग्रन्‍थों को धारण करते हैं। [[सत्‍यवती|सत्‍यवतीनन्‍दन]] [[व्‍यास|भगवान व्‍यास]] ने अपनी तपस्‍या एवं ब्रह्मचर्य की शक्ति से सनातन वेद का विस्‍तार करके इस लोक पावन पवित्र इतिहास का निर्माण किया है। प्रशस्‍त व्रतधारी, निग्रहानुग्रह-समर्थ, सर्वज्ञ पराशरनन्‍दन ब्रह्मर्षि [[श्रीकृष्‍ण द्वैपायन]] इस इतिहास शिरोमणि महाभारत की रचना करके यह विचार करने लगे कि अब शिष्‍यों को इस ग्रन्‍थ का अध्‍ययन कैसे कराऊँ? जनता में इसका प्रचार कैसे हो। द्वैपायन ऋषि का यह विचार जानकर लोकगुरू [[ब्रह्मा|भगवान ब्रह्मा]] उन महात्‍मा की प्रसन्‍न्‍ता तथा लोक कल्याण की कामना से स्‍वयं ही व्‍यास जी के आश्रम पर पधारे।  
 
कोई-कोई इस ग्रन्थ का आरम्‍भ ‘नारायण’ ‘नमस्‍कृत्‍य’ से मानते हैं और कोई-कोई आस्‍तीक पर्व से। दूसरे विद्वान [[ब्राह्मण]] उपचिर वसु की कथा से इसका विधिपूर्वक पाठ प्रारम्‍भ करते हैं। विद्वान पुरूष इस भारत संहिता के ज्ञान को विविध प्रकार से प्रकाशित करते हैं। कोई–कोई ग्रन्‍थ की व्‍यवस्था करके समझाने में कुशल होते हैं तो दूसरे विद्वान अपनी तीक्ष्‍ण मेधाशक्ति के द्वारा इन ग्रन्‍थों को धारण करते हैं। [[सत्‍यवती|सत्‍यवतीनन्‍दन]] [[व्‍यास|भगवान व्‍यास]] ने अपनी तपस्‍या एवं ब्रह्मचर्य की शक्ति से सनातन वेद का विस्‍तार करके इस लोक पावन पवित्र इतिहास का निर्माण किया है। प्रशस्‍त व्रतधारी, निग्रहानुग्रह-समर्थ, सर्वज्ञ पराशरनन्‍दन ब्रह्मर्षि [[श्रीकृष्‍ण द्वैपायन]] इस इतिहास शिरोमणि महाभारत की रचना करके यह विचार करने लगे कि अब शिष्‍यों को इस ग्रन्‍थ का अध्‍ययन कैसे कराऊँ? जनता में इसका प्रचार कैसे हो। द्वैपायन ऋषि का यह विचार जानकर लोकगुरू [[ब्रह्मा|भगवान ब्रह्मा]] उन महात्‍मा की प्रसन्‍न्‍ता तथा लोक कल्याण की कामना से स्‍वयं ही व्‍यास जी के आश्रम पर पधारे।  
  
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==

०७:१०, १८ जुलाई २०१५ का अवतरण

प्रथम (1) अध्‍याय: आदि पर्व (अनुक्रमणिका पर्व)

महाभारत: अादि पर्व: प्रथम अध्याय: श्लोक 43-58

पूर्वकाल में दिव:पुत्र, वृहत, भानु, चक्षु, आत्मा, विभावसु, सविता, ऋचीक, अर्, भानु, आशा तथा रवि ये सब शब्द विवस्वान के बोधक माने गये हैं, इन सबमें जो अन्तिम ‘रवि’ हैं वे ‘मह्य’ (मही-पृथ्वी में गर्भ स्थापन करने वाले एवं पूज्य) माने गये हैं। इनके तनय देवभ्राट हैं और देवभ्राट के तनय सुभ्राट माने गये हैं। सुभ्राट के तीन पुत्र हुए, वे सबके सब संतानवान और बहुश्रुत (अनेक शास्त्रों के) ज्ञाता हैं। उनके नाम इस प्रकार हैं-दशज्योति, शतज्योति तथा सहस्त्र ज्योति। महात्मा दशज्योति के दस हजार पुत्र हुए। उनसे भी दस गुने अर्थात् एक लाख पुत्र यहाँ शतज्योति के हुए। फिर उनसे भी दस गुने अर्थात् दस लाख पुत्र सहस्त्र ज्योति के हुए। उन्हीं से यह कुरूवंश, यदुवंश, भरतवंश, ययाति और इक्ष्वाुकु वंश तथा अन्य राजर्षियों के सब वंश चले। प्राणियों की सृष्टि परम्परा और बहुत से वंश भी इन्हीं से प्रकट हो विस्तार को प्राप्त हुए हैं।

परमेष्‍ठी ब्रह्मा जी की आज्ञा से वे उनके आसन के पास ही बैठ गये। उस समय व्‍यास जी के हृदय में आनंद का समुद्र उमड़ रहा था और मुख पर मन्‍द-मन्‍द पवित्र मुस्‍कान लहरा रही थी। परम तेजस्‍वी व्‍यास जाने परमेष्‍ठी ब्रह्माजी से निवेदन किया ‘भगवन! मैंने यह सम्‍पूर्ण लोकों से अत्‍यन्‍त पूजित एक महाकाव्‍य की रचना की है। ब्रह्मन! मैंने इस महाकाव्‍य में सम्‍पूर्ण वेदों का गुप्‍ततम रहस्‍य तथा अन्‍य सब शास्‍त्रों का सार संकलित करके स्‍थापित कर दिया है। केवल वेदों का ही नहीं, उनके अगं एवं उपनिषदों का भी इसमें विस्‍तार से निरूपण किया है।

भगवान वेदव्‍यास, ने अपनी ज्ञानदृष्टि से सम्‍पूर्ण प्राणियों के निवास स्‍थान, धर्म, अर्थ और काम के भेद से त्रिविध रहस्‍य, कर्मोपासना ज्ञान रूप वेद, विज्ञान सहित योग, धर्म, अर्थ एवं काम; इन धर्म, काम और अर्थरूप तीन पुरुषार्थों के प्रतिपादन करने वाले विविध शास्‍त्र, लोक व्‍यवहार की सिद्धि के लिये आयुर्वेद, धनुर्वेद, स्‍थापत्‍यवेद, आदि लौकिक शास्‍त्र सब उन्‍हीं दश्‍ज्‍योति आदि से हुए हैं- इस तत्‍व को और उनके स्‍वरूप को भली- भाँति अनुभव किया। उन्‍होंने ही इस महाभारत ग्रन्‍थ में, व्‍याख्‍या के साथ इतिहास का तथा विविध प्रकार की श्रुतियों के रहस्‍य आदि का पूर्ण रूप से निरूपण किया है और इस पूर्णता को ही इस ग्रन्थ का लक्षण बताया गया है। म‍हर्षि ने इस महान ज्ञान का संक्षेप और विस्‍तार दोनों ही प्रकार से वर्णन किया है; क्‍योंकि संसार में विद्वान पुरूष संक्षेप और विस्‍तार दोनों ही रीतियों को पसंद करते हैं।

कोई-कोई इस ग्रन्थ का आरम्‍भ ‘नारायण’ ‘नमस्‍कृत्‍य’ से मानते हैं और कोई-कोई आस्‍तीक पर्व से। दूसरे विद्वान ब्राह्मण उपचिर वसु की कथा से इसका विधिपूर्वक पाठ प्रारम्‍भ करते हैं। विद्वान पुरूष इस भारत संहिता के ज्ञान को विविध प्रकार से प्रकाशित करते हैं। कोई–कोई ग्रन्‍थ की व्‍यवस्था करके समझाने में कुशल होते हैं तो दूसरे विद्वान अपनी तीक्ष्‍ण मेधाशक्ति के द्वारा इन ग्रन्‍थों को धारण करते हैं। सत्‍यवतीनन्‍दन भगवान व्‍यास ने अपनी तपस्‍या एवं ब्रह्मचर्य की शक्ति से सनातन वेद का विस्‍तार करके इस लोक पावन पवित्र इतिहास का निर्माण किया है। प्रशस्‍त व्रतधारी, निग्रहानुग्रह-समर्थ, सर्वज्ञ पराशरनन्‍दन ब्रह्मर्षि श्रीकृष्‍ण द्वैपायन इस इतिहास शिरोमणि महाभारत की रचना करके यह विचार करने लगे कि अब शिष्‍यों को इस ग्रन्‍थ का अध्‍ययन कैसे कराऊँ? जनता में इसका प्रचार कैसे हो। द्वैपायन ऋषि का यह विचार जानकर लोकगुरू भगवान ब्रह्मा उन महात्‍मा की प्रसन्‍न्‍ता तथा लोक कल्याण की कामना से स्‍वयं ही व्‍यास जी के आश्रम पर पधारे।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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