अमरदास गरु
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अमरदास गरु
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1 |
पृष्ठ संख्या | 189 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पाण्डेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1964 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | श्री नागेंन्द्रनाथ उपाध्याय |
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अमरदास गुरु सिक्खों के तीसरे। अमृतसर से कुछ दूर बसरका गाँव में खत्रियों की भल्ला शाखा के तेजभान नामक व्यक्ति के सबसे बड़े पुत्र अमरू या अमरदास का जन्म वैशाख शुक्ल 14, सं. 1536 (सन् 1479 ई.) को हुआ। खेती और व्यापार इनकी जीविका थी। प्रारंभ में ये वैष्णव संप्रदायानुयायी थे किंतु असंतोष की स्थिति में गुरु नानक का एक पद सुनकर ये उन्हीं के शिष्य तथा सिक्खों के दूसरे गुरु अंगद से मिलने गए और उनके शिष्य हो गए। गुरु की आज्ञा से ये व्यास नदी के किनारे बसाए गए एक नए नगर के एक भवन में रहने लगे। यह नगर बाद में गोइंदवाल के नाम से प्रसिद्ध हुआ। गुरु अंगद ने अपने अंतिम समय में भाई बुड्ढा द्वारा अभिषिक्त करवाकर 73 वर्ष की आयु में इन्हें गुरुपद प्रदान किया। गुरु अंगद के देहांत के बाद उनके पुत्र दातू द्वारा अपमानित होकर भी अपनी क्षमाशीलता, सहनशीलता और विनय का परिचय देते हुए ये अपनी जन्मभूमि बसरका चले गए। अपने इन चारित्रिक गुणों के कारण ही इनकी सिक्ख मत में विशेष महिमा है। इनका देहांत सं. 1631 की भाद्रपद पूर्णिमा को हुआ। इनकी सर्वाधिक प्रसिद्ध रचना 'आनंद' है जो उत्सवों पर गाई जाती है। इनके कुछ पद, बार एवं सलोक ग्रंथसाहब में संगृहीत हैं। इन्हीं के शिष्य तथा सिक्ख मत के चौथे गुरु रामदास ने इनके आदेश से अमृतसर के पास 'संतोषसर' नाम का एक तालाब बनवाया जो आगे चलकर गुरु अमरदास के ही नाम पर अमृतसर के रूप में प्रसिद्ध हुआ।
टीका टिप्पणी और संदर्भ