महाभारत शल्य पर्व अध्याय 39 श्लोक 21-38

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एकोनचत्वारिंश (39) अध्याय: शल्य पर्व (गदा पर्व)

महाभारत: शल्य पर्व: एकोनचत्वारिंश अध्याय: श्लोक 21-38 का हिन्दी अनुवाद

संकट से मुक्त हुए उन महातपस्वी मुनि ने अपने पवित्र आश्रम पर जाकर वहां रहने वाले पवित्रात्मा ऋषियों से अपना सारा वृत्तान्त कह सुनाया । मानद ! तदनन्तर वहां आये हुए महर्षियों ने महोदर मुनि की बात सुनकर उस तीर्थ का नाम कपालमोचन रख दिया । इसके बाद महर्षि महोदर पुनः उस श्रेष्ठ तीर्थ में गये और वहां का प्रचुर जल पीकर उत्तम सिद्धि को प्राप्त हुए । वृष्णिवंशावतंस बलरामजी ने वहां ब्राह्मणों की पूजा करके उन्हें बहुत धन का दान किया। इसके बाद में रुषंगु मुनि के आश्रम पर गये । भरतनन्दन ! वहीं आष्र्टिषेण मुनि ने घोर तपस्या की थी और वहीं महामुनि विश्वामित्र ने ब्राह्मणत्व प्राप्त किया था । प्रभो ! वह महान् आश्रम सम्पूर्ण मनोवान्छित वस्तुओं से सम्पन्न है। वहां बहुत से मुनि और ब्राह्मण सदा निवास करते हैं । राजेन्द्र ! तत्पश्चात् श्रीमान् हलधर ब्राह्मणों से घिर कर उस स्थान पर गये, जहां रुषंगु ने अपना शरीर छोड़ा था । भारत ! बूढ़े ब्राह्मण रुषंगु सदा तपस्या में संलग्न रहते थे। एक समय उन महातपस्वी रुषंगु मुनि ने शरीर त्याग देने का विचार करके बहुत कुछ सोच कर अपने सभी पुत्रों को बुलाया और उनसे कहा-‘मुझे पृथूदक तीर्थ में ले चलो’ । उन तपस्वी पुत्रों ने तपोधन रुषंगु को अत्यन्त वृद्ध जानकर उन्हें सरस्वती के उस उत्तम तीर्थ में पहुंचा दिया । राजन् ! नरव्याघ्र ! वे पुत्र जब उन बुद्धिमान मुनि को ब्राह्मण समूहों से सेवित तथा सैकड़ों तीर्थो से सुशोभित पुण्य सलिला सरस्वती के तट पर ले आये, तब वे महातपस्वी महर्षि वहां विधिपूर्वक स्नान करके तीर्थ के गुणों को जानकर अपने पास बैठे हुए सभी पुत्रों से प्रसन्नतापूर्वक बोले- ‘जो सरस्वती के उत्तर तट पर पृथूदक तीर्थ में जप करते हुए अपने शरीर का परित्याग करता है, उसे भविष्य में पुनः मृत्यु का कष्ट नहीं भोगना पड़ता’ । धर्मात्मा विप्रवत्सल हलधर बलरामजी ने उस तीर्थ में स्नान करके ब्राह्मणों को बहुत धन का दान किया । कुरुवंशी नरेश ! तत्पश्चात् बलवान् एवं प्रतापी बलभद्रजी उस तीर्थ में आ गये, जहां लोक पितामह भगवान ब्रह्मा ने सृष्टि की थी, जहां कठोर व्रत का पालन करने वाले मुनि श्रेष्ठ आष्र्टिषेण ने बड़ी भारी तपस्या करके ब्राह्मणत्व पाया था तथा जहां राजर्षि सिन्धुद्वीप, महान् तपस्वी देवापि और महायशस्वी, उग्रतेजस्वी एवं महातपस्वी भगवान विश्वामित्र मुनि ने भी ब्राह्मणत्व प्राप्त किया था ।

इस प्रकार श्रीमहाभारत शल्य पर्व के अन्तर्गत गदा पर्व में बलदेवजी की तीर्थ यात्रा के प्रसंग में सार स्वतोपाख्यान विषयक उन्तालीसवां अध्याय पूरा हुआ ।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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