"महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 30 श्लोक 13-29" के अवतरणों में अंतर

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==अष्‍टाविंश (28) अधयाय: उद्योग पर्व (संजययान पर्व)==
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==त्रिंश (30) अधयाय: उद्योग पर्व (संजययान पर्व)==
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: उद्योग पर्व: अष्‍टाविंश अधयाय: श्लोक 30-49 का हिन्दी अनुवाद</div>
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<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: उद्योग पर्व: त्रिंश अधयाय: श्लोक 13-29 का हिन्दी अनुवाद</div>
  
जो अद्वितीय वीर एकमात्र रथ की सहायता से अजेय पाण्‍डवों को भी जीतने का उत्साह रखता है तथा जो मोह में पडे़ हुए घृतराष्‍ट्र के पुत्रों को और भी मोहित करने वाला है, उस वैकर्तन कर्ण की भी कुशल पूछना। अगाधबुद्धि दूरदर्शी विदुरजी हम लोगों के प्रेमी, गुरू, पालक, पिता-माता और सुहृद हैं, वे ही हमारे मन्त्री भी हैं। संजय! तुम मेरी ओर से उनकी भी कुशल पूछना। संजय! राजघरों में जो सद्ग्रणवती वृद्धा स्त्रियां हैं, वे सब हमारी माताएं लगती हैं। उन सब वृद्धा स्त्रियों से एक साथ मिलकर तुम उनसे हमारा प्रणाम निवेदन करना। संजय! उन बड़ी-बूढी़ स्त्रियों से इस प्रकार कहना- माताओं! आपके पुत्र आपके साथ उत्तम बर्ताव करते हैं न? उनमें क्रूरता तो नहीं आ गयी है? उन सबके दीर्घायु पुत्र हो गये हैं न?’ इस प्रकारकहकर पीछे यह बताना कि आपका बालक अजातशत्रु युधिष्ठिर पुत्रों सहित सकुशल है। तात संजय! हस्तिनापुर में हमारे भाइयों की जो स्त्रियां हैं, उन सबको तो तुम जानते ही हो। उन सबकी कुशल पूछना और कहना क्या तुम लोग सर्वथासुरक्षित रहकर निर्दोष जीवन बिता रही हो? तु्म्हें आवश्‍यक सुगन्ध आदि प्रसाधन-सामग्रियों प्राप्त होती हैं न? तुम घर में प्रमादशून्य होकर रहमी हो न? भद्र महिलाओं! क्या तुम अपने श्र्वशुरजनों के प्रति क्रूरतारहित कल्याणकारी बर्ताव करती हो तथा जिस प्रकार तुम्हारे पति अनुकूल बने रहें, वैसे व्यवहार और सभ्‍दाव को अपने हृदय में स्थान देती हो? <br />
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जो वेदाध्‍ययन सम्पन्न तथा सदाचारयुक्त हैं, जिन्होंने चारों पादों से युक्त अस्त्रविद्या की शिक्षा पायी हैं, जो गन्धर्वकुमार के समान वेगशाली वीर हैं, उन आचार्यपुत्र अश्‍वत्थामाका भी कुशल-समाचार पूछना। संजय! तदनन्तर आत्मावेत्ताओं में श्रेष्‍ठ महारथी कृपाचार्य-के घर जाकर बारंबार मेरा नाम लेते हुए अपने हाथ से उनके दोनों चरणों का स्पर्श करना। जिनमें वीरत्व, दया, तपस्या, बुद्धि, शील, शास्त्रज्ञान, सत्त्व और धैर्य आदि सद्गुण विद्यमान हैं, उन कुरूश्रेष्‍ठ पितामह भीष्‍म के दोनों चरण पकड़कर मेरा प्रणाम निवेदन करना। संजय! जो कौरवगणों के नेता, अनेक शास्त्रों के ज्ञाता, बडे़ बूढो़ के सेवक और बुद्धिमान हैं, उन वृद्ध नरेश प्रज्ञाचक्षु घृतराष्‍ट्र को मेरा प्रणाम निवेदन करके यह बताता कि युधिष्ठिर नीरोग और सकुशल है। तात संजय! जो घृतराष्‍ट्र का ज्येष्‍ठ पुत्र, मन्दबुद्धि, मूर्ख, शठ और पापचारी है तथा जिसकी निन्दा सारी पृथ्‍वी में फैल रही हैं, उस सुयोधन से भी मेरी ओर से कुशल-मड़्गल पूछना। तात संजय! जो दुर्योधन का छोटा भाई है तथा उसी के समान मूर्ख और सदा पाप में संलग्न रहने वाला हैं, कुरूकुल के उस महाधनुर्धर एवं विख्‍यात वीर दु:शासन से भी कुशल पूछकर मेरा कुशल-समाचार कहना। संजय! भरतवंशियों में परस्पर शान्ति बनी रहे, इसके सिवा दूसरी कोई कामना जिनके हृदय में कभी नहीं होती है, जो बाह्लीकवंश के श्रेष्‍ठ पुरूष हैं, उन साधु स्वभाव वाले बुद्धिमान बाह्लीक को भी तुम मेरा प्रणाम निवेदन करना। <br />
संजय! तुम वहां उन सि्त्रयों को भी जानते हो, जो हमारी पुत्रवधुएं लगती हैं, जो उत्तम कूलों से आयी हैं तथा सर्वगुण सम्पन्न और संतानवती हैं। वहां जाकर उनसे कहना, बहुओं! युधिष्ठिर प्रसन्न होकर तुम लोगों का कुशल-समाचार पूछते थे’। संजय! राजमहल में जो छोटी-छोटी बालिकाएं हैं, उन्हें हृदय से लगाना और मेरी ओर से उनका आरोग्य-समाचार पूछकर उन्हें कहना- ‘पुत्रियों! तुम्हें कल्याणकारी पति प्राप्त हों और वे तुम्हारे अनुकूल बने रहें। साथ ही तुम भी पतियों के अनुकूल बनी रहो’। तात संजय! जिनका दर्शन मनोहर और बातों मन को प्रिय लगने वाली होती हैं, जो वेश-भूषा से अलङ्कृत, सुन्दर वस्त्रों से सुशोभित, उत्तम सुगन्ध धारण करने वाली, घृणित व्यवहार से रहित, सुखशालिनी और भोग-सामग्री से सम्पन्न हैं, उन वेश (श्रृगांर) धारण कराने वाली स्त्रियों की भी कुशल पूछना। कौरवों के जो दास-दासियों हों तथा उनके आश्रित जो बहुत से कुबडे़ और लंगडे़ मनुष्‍य रहते हों, उन सबसे मुझे सकुशल बताकर अन्त में मेरी ओर से उनकी भी कुशल पूछना। (और कहना-) क्या राजा घृतराष्‍ट्र दयावश जिन अङगहीनों, दीनों और बौने मनुष्‍यों का पालन करते हैं, उन्हें दुर्योधन भरण-पोषण की सामग्री देता है? क्या वह उनकी प्राचीन जीविका-वृत्तिका निर्वाह करता है? यद्यपि दुर्योधन ने जिन योद्धाओं का संग्रह किया है, वैसे वीर इस भूमण्‍डल में दूसरे नहीं हैं, तथापि धर्म ही नित्‍य है और मेरे पास शत्रुओं का नाश करने के लिये धर्म काही सबसे महान् बल है। संजय! दुर्योधन को तुम मेरी यह बात पुन: सुना देना-'तुम्‍हारे शरीर के भीतर मन में जो यह अभिलाषा उत्‍पन्‍न हुई है कि मैं कौरवों का निष्‍कण्‍टक राज्‍य करूं, वह तुम्‍हारे हृदय को पीड़ामात्र दे रही है। उसकी सिद्धिका कोई उपाय नहीं है। हम ऐसे पौरूषहीन नहीं है कि तुम्‍हारा यह प्रिय कार्य होने दें। भरतवंश के प्रमुख वीर! तुम इन्‍द्रप्रस्‍थपुरी फिर मुझे ही लौटा दो अथवा युद्ध करो।
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जो अनेक श्रेष्‍ठ गुणों से विभूषित और शानवान् हैं, जिनमें निष्‍ठुरता का लेशमात्र भी नहीं है, जो स्नेहवश सदा ही हम लोगों का क्रोध सहन करते रहते हैं, वे सोमदत्त भी मेरे लिये पूजनीय हैं। संजय! सोमदत्त के पुत्र भूरिश्रवा कुरूकुल में पूज्यतम पुरूष माने गये हैं। वे हम लोगों के निकट सम्बन्धी और मेरे प्रिय सखा हैं। रथी वीरों में उनका बहुत ऊंचा स्थान है। वे महान् धनुर्धर तथा आदरणीय वीर हैं। तुम मेरी ओर से मन्त्रियों सहित उनका कुशल-समाचार पूछना। संजय! इनके सिवा और भी जो कुरूकुल के प्रधान नवयुवक हैं, जो हमारे पुत्र, पौत्र और भाई लगते हैं, इनमें से जिस-जिसको तुम जिस व्यवहार के योग्य समझों, उससे वैसी ही बात कहकर उन सबसे बताना कि पाण्‍डव-लोग स्वस्थ और सानन्द हैं। दुर्योधन ने हम पाण्‍डवों के साथ युद्ध करने के लिये जिन-जिन राजाओं को बुलाया है। वे वशाति, शाल्व, केकय, अम्बष्‍ठ तथा त्रिगर्तदेश के प्रधान वीर, पूर्व उत्तर, दक्षिण और पश्चिम दिशा के शौर्यसम्पन्न योद्धा तथा समस्त पर्वतीय नरेश वहां उपस्थित हैं। वे लोग दयालु तथा शील और सदाचार से सम्पन्न हैं। संजय! तुम मेरी ओर से उन सबका कुशल-मड़्गल पूछना। जो हाथीसवार, रथी, घुड़सवार, पैदल तथा बडे़-बडे़ सज्जनों के समुदाय वहां उपस्थित हैं, उन सबसे मुझे सकुशल बताकर उनका भी आरोग्य-समाचार पूछना। जो राजा के हितकर कार्यों में लगे हुए मन्त्री, द्वारपाल, सेनानायक, आय-व्ययनिरीक्ष‍क तथा निरन्तर बडे़-बडे़ कार्यों एवं प्रश्‍नों पर विचार करने वाले हैं, उनसे भी कुशल-समाचार पूछना। तात! जो समस्त कौरवों में श्रेष्‍ठ, महाबुद्धिमान, ज्ञानी तथा सब धर्मों से सम्पन्न है, जिसे कौरव और पाण्‍डवों का युद्ध कभी अच्छा नहीं लगता, उस वैश्‍यापुत्र युयुत्सुकाभी मेरी ओर से कुशल-मग्ड़ल पूछना।
  
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">इस प्रकार श्रीमहाभारत उद्योगपर्व के अंतर्गत संजययानपर्व में युधिष्ठिरसदेशविषयक तीसवां अध्‍याय पूरा हुआ।</div>
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{{लेख क्रम |पिछला=महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 30 श्लोक 1-12|अगला=महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 30 श्लोक 28-49}}
 
 
{{लेख क्रम |पिछला=महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 29 श्लोक 13-29|अगला=महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 31 श्लोक 1-7}}
 
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
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०७:२७, १५ अगस्त २०१५ का अवतरण

त्रिंश (30) अधयाय: उद्योग पर्व (संजययान पर्व)

महाभारत: उद्योग पर्व: त्रिंश अधयाय: श्लोक 13-29 का हिन्दी अनुवाद

जो वेदाध्‍ययन सम्पन्न तथा सदाचारयुक्त हैं, जिन्होंने चारों पादों से युक्त अस्त्रविद्या की शिक्षा पायी हैं, जो गन्धर्वकुमार के समान वेगशाली वीर हैं, उन आचार्यपुत्र अश्‍वत्थामाका भी कुशल-समाचार पूछना। संजय! तदनन्तर आत्मावेत्ताओं में श्रेष्‍ठ महारथी कृपाचार्य-के घर जाकर बारंबार मेरा नाम लेते हुए अपने हाथ से उनके दोनों चरणों का स्पर्श करना। जिनमें वीरत्व, दया, तपस्या, बुद्धि, शील, शास्त्रज्ञान, सत्त्व और धैर्य आदि सद्गुण विद्यमान हैं, उन कुरूश्रेष्‍ठ पितामह भीष्‍म के दोनों चरण पकड़कर मेरा प्रणाम निवेदन करना। संजय! जो कौरवगणों के नेता, अनेक शास्त्रों के ज्ञाता, बडे़ बूढो़ के सेवक और बुद्धिमान हैं, उन वृद्ध नरेश प्रज्ञाचक्षु घृतराष्‍ट्र को मेरा प्रणाम निवेदन करके यह बताता कि युधिष्ठिर नीरोग और सकुशल है। तात संजय! जो घृतराष्‍ट्र का ज्येष्‍ठ पुत्र, मन्दबुद्धि, मूर्ख, शठ और पापचारी है तथा जिसकी निन्दा सारी पृथ्‍वी में फैल रही हैं, उस सुयोधन से भी मेरी ओर से कुशल-मड़्गल पूछना। तात संजय! जो दुर्योधन का छोटा भाई है तथा उसी के समान मूर्ख और सदा पाप में संलग्न रहने वाला हैं, कुरूकुल के उस महाधनुर्धर एवं विख्‍यात वीर दु:शासन से भी कुशल पूछकर मेरा कुशल-समाचार कहना। संजय! भरतवंशियों में परस्पर शान्ति बनी रहे, इसके सिवा दूसरी कोई कामना जिनके हृदय में कभी नहीं होती है, जो बाह्लीकवंश के श्रेष्‍ठ पुरूष हैं, उन साधु स्वभाव वाले बुद्धिमान बाह्लीक को भी तुम मेरा प्रणाम निवेदन करना।
जो अनेक श्रेष्‍ठ गुणों से विभूषित और शानवान् हैं, जिनमें निष्‍ठुरता का लेशमात्र भी नहीं है, जो स्नेहवश सदा ही हम लोगों का क्रोध सहन करते रहते हैं, वे सोमदत्त भी मेरे लिये पूजनीय हैं। संजय! सोमदत्त के पुत्र भूरिश्रवा कुरूकुल में पूज्यतम पुरूष माने गये हैं। वे हम लोगों के निकट सम्बन्धी और मेरे प्रिय सखा हैं। रथी वीरों में उनका बहुत ऊंचा स्थान है। वे महान् धनुर्धर तथा आदरणीय वीर हैं। तुम मेरी ओर से मन्त्रियों सहित उनका कुशल-समाचार पूछना। संजय! इनके सिवा और भी जो कुरूकुल के प्रधान नवयुवक हैं, जो हमारे पुत्र, पौत्र और भाई लगते हैं, इनमें से जिस-जिसको तुम जिस व्यवहार के योग्य समझों, उससे वैसी ही बात कहकर उन सबसे बताना कि पाण्‍डव-लोग स्वस्थ और सानन्द हैं। दुर्योधन ने हम पाण्‍डवों के साथ युद्ध करने के लिये जिन-जिन राजाओं को बुलाया है। वे वशाति, शाल्व, केकय, अम्बष्‍ठ तथा त्रिगर्तदेश के प्रधान वीर, पूर्व उत्तर, दक्षिण और पश्चिम दिशा के शौर्यसम्पन्न योद्धा तथा समस्त पर्वतीय नरेश वहां उपस्थित हैं। वे लोग दयालु तथा शील और सदाचार से सम्पन्न हैं। संजय! तुम मेरी ओर से उन सबका कुशल-मड़्गल पूछना। जो हाथीसवार, रथी, घुड़सवार, पैदल तथा बडे़-बडे़ सज्जनों के समुदाय वहां उपस्थित हैं, उन सबसे मुझे सकुशल बताकर उनका भी आरोग्य-समाचार पूछना। जो राजा के हितकर कार्यों में लगे हुए मन्त्री, द्वारपाल, सेनानायक, आय-व्ययनिरीक्ष‍क तथा निरन्तर बडे़-बडे़ कार्यों एवं प्रश्‍नों पर विचार करने वाले हैं, उनसे भी कुशल-समाचार पूछना। तात! जो समस्त कौरवों में श्रेष्‍ठ, महाबुद्धिमान, ज्ञानी तथा सब धर्मों से सम्पन्न है, जिसे कौरव और पाण्‍डवों का युद्ध कभी अच्छा नहीं लगता, उस वैश्‍यापुत्र युयुत्सुकाभी मेरी ओर से कुशल-मग्ड़ल पूछना।


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