"महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 48 श्लोक 84-106" के अवतरणों में अंतर

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==अष्टचत्वारिंश अध्‍याय: भीष्म पर्व (भीष्‍मवध पर्व)==
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==अष्टचत्वारिंश (48) अध्‍याय: भीष्म पर्व (भीष्‍मवध पर्व)==
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: भीष्म पर्व: अष्टचत्वारिंश अध्याय: श्लोक 88-110 का हिन्दी अनुवाद </div>
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<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: भीष्म पर्व: अष्टचत्वारिंश अध्याय: श्लोक 84-106 का हिन्दी अनुवाद </div>
  
अपनी शक्ति को इस प्रकार विफल हुई देख विराटपुत्र श्वेत क्रोध से मूर्छित हो गये। कालने उनकी विवेकशक्ति को नष्ट कर दिया था; उन्‍हेंअपने कर्तव्य का मान न रहा। उन्होनें हर्ष से उत्साहित हो हॅसते-हॅसते भीष्म को मार डालने के लिये हाथ में गदा उठा ली। उस समय उनकी आंखें क्रोध से लाल हो रही थी। वे हाथ में दण्ड लिये यमराज के समान जान पड़ते थे। जैसे महान् जलप्रवाह किसी पर्वत से टकराता हो, उसी प्रकार वे गदा लिये भीष्म की और दौडे। प्रतापी भीष्म उसके वेग को अनिवार्य समझकर उस प्रहार से बचने के लिये सहसा पृथ्वी पर कूद पडे़। उधर श्वेत ने क्रोध से व्याप्त हो उस गदा को आकाश में घुमाकर भीष्म के रथपर फेंक दिया, मानों कुबेरने गदा का प्रहार किया हो। भीष्म को मार डालने के लिये चलायी हुई उस गदा के आघात से ध्वज, सारथी, घोडे़, जुआ और धुरा आदि के साथ वह सारा रथ चूर-चूर हो गया। रथियों में श्रेष्ठ भीष्म को रथहीन हुआ देख शल्य आदि उत्तम महारथी एक साथ दौडे़। तब दूसरे रथपर बैठकर धनुष की टंकार करते हुए गंगानन्दन भीष्म उदास मन से हॅसते हुए से धीरे-धीरे श्वेत की और चले। इसी बीच में भीष्म ने अपने हित से सम्बन्ध देखनेवाली एक दिव्य एवं गम्भीर आकाशवाणी सुनी- ‘महाबाहु भीष्म ! शीघ्र प्रयत्न करो। इस श्वेतपर विजय पाने के लिये ब्रह्माजी ने यही समय निश्चित किया है’। देवदूत का कहा हुआ यह वचन सुनकर भीष्मजी का मन प्रसन्न हो गया और उन्होनें श्वेत के वध का विचार किया। रथियों में श्रेष्ठ श्वेत को रथहीन और पैदल देख उसकी रक्षा करने के लिये एक साथ बहुत-से महारथी दौड़े आये। उनके नाम इस प्रकार है- सात्यकि, भीमसेन, द्रुपदपुत्र धृष्टघुम्न, केकयराजकुमार, धृष्टकेतु तथा पराक्रमी अभिमन्यु। इन सबको आते देख अमेय शक्तिसम्पन्न भीष्मजी ने द्रोणाचार्य, शल्य तथा कृपाचार्य के साथ जाकर उनकी गति रोक दी, मानो किसी पर्वतने जल के प्रवाह को अवरूद्ध कर दिया हो। समस्त महामना पाण्डवों के अवरूद्ध हो जानेपर श्वेत ने तलवार खिंचकर भीष्म का धनुष काट दिया। उस कटे हुए धनुष को फेंककर पितामह भीष्म ने देवदूत के कथन पर ध्यान देकर तुरन्त ही श्वेत के वध का निश्चय किया। तदनन्तर ! आपके पिता महारथी देवव्रत ने तुरंत ही दूसरा धनुष लेकर वहां विचरण करते हुए ही क्षणभर में उस पर प्रत्यंचा चढा दी। वह इन्द्रधनुष के समान प्रकाशित हो रहा था।भरतश्रेष्ठ ! आपके पिता गंगानन्दन भीष्म ने परश्रेष्ठ भीमसेन आदि महारथियों से घिरे हुए सेनापति श्वेत को देखकर उनपर तुरंत धावा किया। उस समय सेनानायक भीमको सामने आते देख प्रतापी महारथी भीष्म ने उन्हें साठ बाणों से घायल कर दिया। उस समरभूमि में आपके पिता भरतश्रेष्ठ भीष्म ने झुकी हुई गांठवाले तीन बाणों से अभिमन्यु को चोट पहुंचायी। भरतवंशियों के उन पितामह ने युद्धस्थल सौ बाणों से सात्यिकी को, बीस सायको द्वारा धृष्टघुम्न को और पांच बाणों से केकयराजकुमार को क्षत-विक्षत कर दिया। उस प्रकार आपके पिता भीष्म ने अपने भयंकर बाणों द्वारा उन सम्पूर्ण महा-धनुर्धरों को जहां के तहां रोककर पुनः श्वेत पर ही आक्रमण किया।
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राजन् ! श्वेत के हाथ से छूटकर यमदण्ड के समान प्रकाशित होनेवाली और केंचुल निकली हुई सर्पिणी-की भॉति अत्यन्त भय उत्पन्न करने वाली उस शक्ति को देखकर आपके पुत्रों के दल में महान् हाहाकार मच गया। राजन् ! वह शक्ति आकाश से बहुत बडी उलकाके समान सहसा गिरी। अन्तरिक्ष में ज्वालाओं से घिरी हुई-सी उस प्रज्वलित शक्ति को देखकर आपके पिता देवव्रत को तनिक भी घबराहट नहीं हुई। उन्होनें आठ-नौ बाण मारकर उसके टुकडे़-टुकडे़ कर दिये। भरतश्रेष्ठ! उत्तम सुवर्ण की बनी हुई उस शक्ति को भीष्म के पैने बाणों से नष्ट हुए देख आपके पुत्र हर्ष के मारे जोर-जोर से कोलाहल करने लगे।
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अपनी शक्ति को इस प्रकार विफल हुई देख विराटपुत्र श्वेत क्रोध से मूर्छित हो गये। कालने उनकी विवेकशक्ति को नष्ट कर दिया था; उन्‍हेंअपने कर्तव्य का मान न रहा। उन्होनें हर्ष से उत्साहित हो हॅसते-हॅसते भीष्म को मार डालने के लिये हाथ में गदा उठा ली। उस समय उनकी आंखें क्रोध से लाल हो रही थी। वे हाथ में दण्ड लिये यमराज के समान जान पड़ते थे। जैसे महान् जलप्रवाह किसी पर्वत से टकराता हो, उसी प्रकार वे गदा लिये भीष्म की और दौडे। प्रतापी भीष्म उसके वेग को अनिवार्य समझकर उस प्रहार से बचने के लिये सहसा पृथ्वी पर कूद पडे़। उधर श्वेत ने क्रोध से व्याप्त हो उस गदा को आकाश में घुमाकर भीष्म के रथपर फेंक दिया, मानों कुबेरने गदा का प्रहार किया हो। भीष्म को मार डालने के लिये चलायी हुई उस गदा के आघात से ध्वज, सारथी, घोडे़, जुआ और धुरा आदि के साथ वह सारा रथ चूर-चूर हो गया। रथियों में श्रेष्ठ भीष्म को रथहीन हुआ देख शल्य आदि उत्तम महारथी एक साथ दौडे़। तब दूसरे रथपर बैठकर धनुष की टंकार करते हुए गंगानन्दन भीष्म उदास मन से हॅसते हुए से धीरे-धीरे श्वेत की और चले। इसी बीच में भीष्म ने अपने हित से सम्बन्ध देखनेवाली एक दिव्य एवं गम्भीर आकाशवाणी सुनी- ‘महाबाहु भीष्म ! शीघ्र प्रयत्न करो। इस श्वेतपर विजय पाने के लिये ब्रह्माजी ने यही समय निश्चित किया है’। देवदूत का कहा हुआ यह वचन सुनकर भीष्मजी का मन प्रसन्न हो गया और उन्होनें श्वेत के वध का विचार किया। रथियों में श्रेष्ठ श्वेत को रथहीन और पैदल देख उसकी रक्षा करने के लिये एक साथ बहुत-से महारथी दौड़े आये। उनके नाम इस प्रकार है- सात्यकि, भीमसेन, द्रुपदपुत्र धृष्टघुम्न, केकयराजकुमार, धृष्टकेतु तथा पराक्रमी अभिमन्यु। इन सबको आते देख अमेय शक्तिसम्पन्न भीष्मजी ने द्रोणाचार्य, शल्य तथा कृपाचार्य के साथ जाकर उनकी गति रोक दी, मानो किसी पर्वतने जल के प्रवाह को अवरूद्ध कर दिया हो। समस्त महामना पाण्डवों के अवरूद्ध हो जानेपर श्वेत ने तलवार खिंचकर भीष्म का धनुष काट दिया। उस कटे हुए धनुष को फेंककर पितामह भीष्म ने देवदूत के कथन पर ध्यान देकर तुरन्त ही श्वेत के वध का निश्चय किया। तदनन्तर ! आपके पिता महारथी देवव्रत ने तुरंत ही दूसरा धनुष लेकर वहां विचरण करते हुए ही क्षणभर में उस पर प्रत्यंचा चढा दी। वह इन्द्रधनुष के समान प्रकाशित हो रहा था।भरतश्रेष्ठ ! आपके पिता गंगानन्दन भीष्म ने परश्रेष्ठ भीमसेन आदि महारथियों से घिरे हुए सेनापति श्वेत को देखकर उनपर तुरंत धावा किया।  
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{{लेख क्रम |पिछला=महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 48 श्लोक 67-87|अगला=महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 48 श्लोक 107-121}}
  
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
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==संबंधित लेख==
 
==संबंधित लेख==
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[[Category:कृष्ण कोश]] [[Category:महाभारत]][[Category:महाभारत उद्योग पर्व]]
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१२:२५, २६ जुलाई २०१५ के समय का अवतरण

अष्टचत्वारिंश (48) अध्‍याय: भीष्म पर्व (भीष्‍मवध पर्व)

महाभारत: भीष्म पर्व: अष्टचत्वारिंश अध्याय: श्लोक 84-106 का हिन्दी अनुवाद

राजन् ! श्वेत के हाथ से छूटकर यमदण्ड के समान प्रकाशित होनेवाली और केंचुल निकली हुई सर्पिणी-की भॉति अत्यन्त भय उत्पन्न करने वाली उस शक्ति को देखकर आपके पुत्रों के दल में महान् हाहाकार मच गया। राजन् ! वह शक्ति आकाश से बहुत बडी उलकाके समान सहसा गिरी। अन्तरिक्ष में ज्वालाओं से घिरी हुई-सी उस प्रज्वलित शक्ति को देखकर आपके पिता देवव्रत को तनिक भी घबराहट नहीं हुई। उन्होनें आठ-नौ बाण मारकर उसके टुकडे़-टुकडे़ कर दिये। भरतश्रेष्ठ! उत्तम सुवर्ण की बनी हुई उस शक्ति को भीष्म के पैने बाणों से नष्ट हुए देख आपके पुत्र हर्ष के मारे जोर-जोर से कोलाहल करने लगे।

अपनी शक्ति को इस प्रकार विफल हुई देख विराटपुत्र श्वेत क्रोध से मूर्छित हो गये। कालने उनकी विवेकशक्ति को नष्ट कर दिया था; उन्‍हेंअपने कर्तव्य का मान न रहा। उन्होनें हर्ष से उत्साहित हो हॅसते-हॅसते भीष्म को मार डालने के लिये हाथ में गदा उठा ली। उस समय उनकी आंखें क्रोध से लाल हो रही थी। वे हाथ में दण्ड लिये यमराज के समान जान पड़ते थे। जैसे महान् जलप्रवाह किसी पर्वत से टकराता हो, उसी प्रकार वे गदा लिये भीष्म की और दौडे। प्रतापी भीष्म उसके वेग को अनिवार्य समझकर उस प्रहार से बचने के लिये सहसा पृथ्वी पर कूद पडे़। उधर श्वेत ने क्रोध से व्याप्त हो उस गदा को आकाश में घुमाकर भीष्म के रथपर फेंक दिया, मानों कुबेरने गदा का प्रहार किया हो। भीष्म को मार डालने के लिये चलायी हुई उस गदा के आघात से ध्वज, सारथी, घोडे़, जुआ और धुरा आदि के साथ वह सारा रथ चूर-चूर हो गया। रथियों में श्रेष्ठ भीष्म को रथहीन हुआ देख शल्य आदि उत्तम महारथी एक साथ दौडे़। तब दूसरे रथपर बैठकर धनुष की टंकार करते हुए गंगानन्दन भीष्म उदास मन से हॅसते हुए से धीरे-धीरे श्वेत की और चले। इसी बीच में भीष्म ने अपने हित से सम्बन्ध देखनेवाली एक दिव्य एवं गम्भीर आकाशवाणी सुनी- ‘महाबाहु भीष्म ! शीघ्र प्रयत्न करो। इस श्वेतपर विजय पाने के लिये ब्रह्माजी ने यही समय निश्चित किया है’। देवदूत का कहा हुआ यह वचन सुनकर भीष्मजी का मन प्रसन्न हो गया और उन्होनें श्वेत के वध का विचार किया। रथियों में श्रेष्ठ श्वेत को रथहीन और पैदल देख उसकी रक्षा करने के लिये एक साथ बहुत-से महारथी दौड़े आये। उनके नाम इस प्रकार है- सात्यकि, भीमसेन, द्रुपदपुत्र धृष्टघुम्न, केकयराजकुमार, धृष्टकेतु तथा पराक्रमी अभिमन्यु। इन सबको आते देख अमेय शक्तिसम्पन्न भीष्मजी ने द्रोणाचार्य, शल्य तथा कृपाचार्य के साथ जाकर उनकी गति रोक दी, मानो किसी पर्वतने जल के प्रवाह को अवरूद्ध कर दिया हो। समस्त महामना पाण्डवों के अवरूद्ध हो जानेपर श्वेत ने तलवार खिंचकर भीष्म का धनुष काट दिया। उस कटे हुए धनुष को फेंककर पितामह भीष्म ने देवदूत के कथन पर ध्यान देकर तुरन्त ही श्वेत के वध का निश्चय किया। तदनन्तर ! आपके पिता महारथी देवव्रत ने तुरंत ही दूसरा धनुष लेकर वहां विचरण करते हुए ही क्षणभर में उस पर प्रत्यंचा चढा दी। वह इन्द्रधनुष के समान प्रकाशित हो रहा था।भरतश्रेष्ठ ! आपके पिता गंगानन्दन भीष्म ने परश्रेष्ठ भीमसेन आदि महारथियों से घिरे हुए सेनापति श्वेत को देखकर उनपर तुरंत धावा किया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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