"महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 16 श्लोक 21-39" के अवतरणों में अंतर
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− | <div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: अनुशासनपर्व: सोलहवां अध्याय: श्लोक | + | <div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: अनुशासनपर्व: सोलहवां अध्याय: श्लोक 21-39 का हिन्दी अनुवाद </div> |
− | मेरा नाम राजधर पाल है। मैं केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा का स्थायी निवासी हूँ। मेरा हार्दिक इच्छा है कि एक कंप्यूटर इंजीनियर बनकर देश की सेवा करना चाहता हूँ। | + | आप ही स्वर्ग और मोक्ष हैं। आप ही काम और क्रोध हैं तथा आप ही सत्व,रज,तम,अधोलोक और उर्ध्वलोक हैं। ब्रहा, विष्णु, शिव,स्कन्द,इन्द्र,सूर्य,यम,वरूण,चन्द्रमा,मनु,धाता,विधाता और धनाध्यक्ष कुबेर भी आप ही हैं। पृथ्वी,वायु,जल,अग्नि,आकाश,वाणी,बुद्धि,स्थिति,मति,कर्म,सत्य,असत्यतथा अस्ति और नास्ति भी आप ही हैं।आप ही इन्द्रियां और इन्द्रियों के विषय हैं। आप ही प्रकृति से परे निश्चलएवं अविनाशी तत्व हैं। आप ही विष्व और अविश्व-दोनों से परे विलक्षण भाव हैं तथा आप ही चिन्त्य और अचिन्त्य हैं। जे यह परम ब्रह्माहै, जो वह परमपद है तथा जो सांख्यवेत्ताओं और योगियों की गति है, वह आप ही हैं-इसमें संशय नहीं है। ज्ञान से निर्मल बुद्धि वाले ज्ञानी पुरूष यहां जिस गति को प्राप्त करना चाहते हैं, सत्पुरूषों की उसी गति को निश्चित रूप से हम प्राप्त हो गये हैं; अतः आज हम निश्चय ही कृतार्थ हो गये। अहो, हम अज्ञानवश इतने दीर्घकाल तक मोह में पड़े रहे हैं, क्योंकि जिन्हें विद्वान पुरूष जानते हैं, उन्हीं सनातन परमदेव को हम अब तक नहीं जान सके थे। अब अनेक जन्मों के प्रयत्न से मैंने यह साक्षात आपकी भक्ति प्राप्त की है। आप ही भक्तों पर अनुग्रह करनेवाले महान देवता है, जिन्हें जानकर ज्ञानी पुरूष मोक्ष प्राप्त कर लेते हैं। जो सनातन ब्रह्मादेवताओं, असुरों और मुनियों के लिये भी ग्रहया है, जो हृदयगुहा में स्थित रहकर मननशील मुनि के लिये भी दुर्विज्ञेय बने हुए हैं, वही ये भगवान हैं। ये ही सबकी सृष्टि करनेवाले देवता हैं। इनके सब ओर मुख हैं। ये सर्वात्मा,सर्वदर्शी,सर्वव्यापी और सर्वज्ञ हैं। आप शरीर के निर्माता और शरीरधारी हैं, इसीलिये देही कहलाते हैं। दे हके भोक्ता और देहधारियों की परम गति हैं। आप ही प्राणों के उत्पादक,प्राणधारी,प्राणी, प्राणदाता तथा प्राणियों की गति हैं। ध्यान करने वाले प्रियभक्तों की जो अध्यात्मगति हैं तथा पुनर्जन्म की इच्छा न रखनेवाले आत्मज्ञानी पुरूषों की जो गति बतायी गयी हैं, वह ये ईश्वर ही हैं। ये ही समस्त प्राणियों को शुभ और अशुभ गति प्रदान करने वाले हैं। ये ही समस्त प्राणियोंको जन्म और मृत्यु प्रदान करते हैं। मेरा नाम राजधर पाल है। मैं केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा का स्थायी निवासी हूँ। मेरा हार्दिक इच्छा है कि एक कंप्यूटर इंजीनियर बनकर देश की सेवा करना चाहता हूँ। संसिद्धि (मुक्ति)-की इच्छा रखनेवाले पुरुषों की जो परम गति है, वह ये ईश्वर ही हैं। देवओं सहित भू आदि समस्त लोकों को उत्पन्न करके ये महादेव ही (पृथ्वी,जल,वायु,अग्नि,आकाश,सूर्य,चन्द्र,यजमान- इन) अपनी आठ मूर्तियों द्वारा उनका धारण और पोषण करते हैं। इन्हीं से सबकी उत्पत्ति होती है और इन्हीं में सारा जगत् प्रतिष्ठित है और इन्हीं में सबका लय होता है। ये ही एक सनातन पुरुष हैं। ये ही सत्य की इच्छा रखनेवाले सत्पुरुषों के लिये सर्वोतम सत्यलोक है। ये ही मुक्त पुरूषों के अपवर्ग मोक्ष और आत्मज्ञानियों के कैवल्य हैं। देवता,असुर और मनुष्यों को इनका पता न लगने पाये, मानो इसीलिये ब्रह्माआदि सिद्ध पुरूषों ने इन परमेश्वर को अपनी हृदयगुफा में छिपा रखा है। हृदयमन्दिर में गूढ़भाव से रहकर प्रकाशित न होनेवाले इन परमात्मादेव ने सबको अपनी माया से मोहित कर रखा है। इसीलिये देवता,असुर और मनुष्य आप महादेव को यथार्थ रूपसे नहीं जान पाते हैं। जो लोग भक्तियोगसे भावित होकर उन परमेश्वरकी शरण लेते हैं, उन्हींको यह हृदय-मन्दिरमें शयन करनेवाले भगवान स्वयं अपना दर्शन देते हैं। |
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== |
०८:०७, २३ जुलाई २०१५ का अवतरण
सोलहवां अध्याय: अनुशासनपर्व (दानधर्मपर्व)
आप ही स्वर्ग और मोक्ष हैं। आप ही काम और क्रोध हैं तथा आप ही सत्व,रज,तम,अधोलोक और उर्ध्वलोक हैं। ब्रहा, विष्णु, शिव,स्कन्द,इन्द्र,सूर्य,यम,वरूण,चन्द्रमा,मनु,धाता,विधाता और धनाध्यक्ष कुबेर भी आप ही हैं। पृथ्वी,वायु,जल,अग्नि,आकाश,वाणी,बुद्धि,स्थिति,मति,कर्म,सत्य,असत्यतथा अस्ति और नास्ति भी आप ही हैं।आप ही इन्द्रियां और इन्द्रियों के विषय हैं। आप ही प्रकृति से परे निश्चलएवं अविनाशी तत्व हैं। आप ही विष्व और अविश्व-दोनों से परे विलक्षण भाव हैं तथा आप ही चिन्त्य और अचिन्त्य हैं। जे यह परम ब्रह्माहै, जो वह परमपद है तथा जो सांख्यवेत्ताओं और योगियों की गति है, वह आप ही हैं-इसमें संशय नहीं है। ज्ञान से निर्मल बुद्धि वाले ज्ञानी पुरूष यहां जिस गति को प्राप्त करना चाहते हैं, सत्पुरूषों की उसी गति को निश्चित रूप से हम प्राप्त हो गये हैं; अतः आज हम निश्चय ही कृतार्थ हो गये। अहो, हम अज्ञानवश इतने दीर्घकाल तक मोह में पड़े रहे हैं, क्योंकि जिन्हें विद्वान पुरूष जानते हैं, उन्हीं सनातन परमदेव को हम अब तक नहीं जान सके थे। अब अनेक जन्मों के प्रयत्न से मैंने यह साक्षात आपकी भक्ति प्राप्त की है। आप ही भक्तों पर अनुग्रह करनेवाले महान देवता है, जिन्हें जानकर ज्ञानी पुरूष मोक्ष प्राप्त कर लेते हैं। जो सनातन ब्रह्मादेवताओं, असुरों और मुनियों के लिये भी ग्रहया है, जो हृदयगुहा में स्थित रहकर मननशील मुनि के लिये भी दुर्विज्ञेय बने हुए हैं, वही ये भगवान हैं। ये ही सबकी सृष्टि करनेवाले देवता हैं। इनके सब ओर मुख हैं। ये सर्वात्मा,सर्वदर्शी,सर्वव्यापी और सर्वज्ञ हैं। आप शरीर के निर्माता और शरीरधारी हैं, इसीलिये देही कहलाते हैं। दे हके भोक्ता और देहधारियों की परम गति हैं। आप ही प्राणों के उत्पादक,प्राणधारी,प्राणी, प्राणदाता तथा प्राणियों की गति हैं। ध्यान करने वाले प्रियभक्तों की जो अध्यात्मगति हैं तथा पुनर्जन्म की इच्छा न रखनेवाले आत्मज्ञानी पुरूषों की जो गति बतायी गयी हैं, वह ये ईश्वर ही हैं। ये ही समस्त प्राणियों को शुभ और अशुभ गति प्रदान करने वाले हैं। ये ही समस्त प्राणियोंको जन्म और मृत्यु प्रदान करते हैं। मेरा नाम राजधर पाल है। मैं केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा का स्थायी निवासी हूँ। मेरा हार्दिक इच्छा है कि एक कंप्यूटर इंजीनियर बनकर देश की सेवा करना चाहता हूँ। संसिद्धि (मुक्ति)-की इच्छा रखनेवाले पुरुषों की जो परम गति है, वह ये ईश्वर ही हैं। देवओं सहित भू आदि समस्त लोकों को उत्पन्न करके ये महादेव ही (पृथ्वी,जल,वायु,अग्नि,आकाश,सूर्य,चन्द्र,यजमान- इन) अपनी आठ मूर्तियों द्वारा उनका धारण और पोषण करते हैं। इन्हीं से सबकी उत्पत्ति होती है और इन्हीं में सारा जगत् प्रतिष्ठित है और इन्हीं में सबका लय होता है। ये ही एक सनातन पुरुष हैं। ये ही सत्य की इच्छा रखनेवाले सत्पुरुषों के लिये सर्वोतम सत्यलोक है। ये ही मुक्त पुरूषों के अपवर्ग मोक्ष और आत्मज्ञानियों के कैवल्य हैं। देवता,असुर और मनुष्यों को इनका पता न लगने पाये, मानो इसीलिये ब्रह्माआदि सिद्ध पुरूषों ने इन परमेश्वर को अपनी हृदयगुफा में छिपा रखा है। हृदयमन्दिर में गूढ़भाव से रहकर प्रकाशित न होनेवाले इन परमात्मादेव ने सबको अपनी माया से मोहित कर रखा है। इसीलिये देवता,असुर और मनुष्य आप महादेव को यथार्थ रूपसे नहीं जान पाते हैं। जो लोग भक्तियोगसे भावित होकर उन परमेश्वरकी शरण लेते हैं, उन्हींको यह हृदय-मन्दिरमें शयन करनेवाले भगवान स्वयं अपना दर्शन देते हैं।
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