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मक्सिम गोर्की <ref>वास्तविक नाम-पेश्कोव अलेक्सै मक्सीमोविज</ref>(1६.3.1८६८-1८.६.1९3६) महान रूसी लेखक। निज़्हना नोवगोरोद<ref>आधुनिक गोर्की</ref> नगर में जन्म हुआ। गोर्की के पिता बढ़ई थे। 11वर्ष की आयु से गोर्की काम करने लगे। 1८८4 में गोर्की का मार्क्सवादियों से परिचय हुआ। 1८८८ में गोर्की पहली बार गिरफ्तार किए गए थे। 1८९1 में गोर्की देशभ्रमण करने गए। 1८९2 में गोर्की की पहली कहानी 'मकार चुंद्रा' प्रकाशित हुई। गोर्की की प्रारंभिक कृतियों में रोमांसवाद और यथार्थवाद का मेल दिखाई देता है। 'बाज़ के बारे में गीत' (1८९५), 'झंझा-तरंगिका के बारे में गीत' (1८९५) और 'बुढ़िया इजेर्गील' (1९०1) नामक कृतियों में क्रांतिकारी भावनाएँ प्रकट हो गई थीं। दो उपन्यासों, 'फोमा गोर्देयेव' (1८९९) और 'तीनों' (1९०1) में गोर्की ने शहर के अमीर और गरीब लोगों के जीवन का वर्णन किया है। 1८९९-1९०० में गोर्की का परिचय चेखव और लेव तालस्तॉय से हुआ। उसी समय से गोर्की क्रांतिकारी आंदोलन में भाग लेने लगे। 1९०1 में वे फिर गिरफ्तार हुए और उन्हें कालापानी मिला। 1९०2 में विज्ञान अकादमी ने गोर्की को समान्य सदस्य की उपाधि दी परंतु रूसी ज़ार ने इसे रद्द कर दिया।
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मक्सिम गोर्की <ref>वास्तविक नाम-पेश्कोव अलेक्सै मक्सीमोविज</ref>(1६.3.1८६८-1८.६.1९3६) महान रूसी लेखक। निज़्हना नोवगोरोद<ref>आधुनिक गोर्की</ref> नगर में जन्म हुआ। गोर्की के पिता बढ़ई थे। 11वर्ष की आयु से गोर्की काम करने लगे। 1८८4 में गोर्की का मार्क्सवादियों से परिचय हुआ। 1८८८ में गोर्की पहली बार गिरफ्तार किए गए थे। 1८९1 में गोर्की देशभ्रमण करने गए। 1८९2 में गोर्की की पहली कहानी 'मकार चुंद्रा' प्रकाशित हुई। गोर्की की प्रारंभिक कृतियों में रोमांसवाद और यथार्थवाद का मेल दिखाई देता है। 'बाज़ के बारे में गीत' (1८९5), 'झंझा-तरंगिका के बारे में गीत' (1८९5) और 'बुढ़िया इजेर्गील' (1९०1) नामक कृतियों में क्रांतिकारी भावनाएँ प्रकट हो गई थीं। दो उपन्यासों, 'फोमा गोर्देयेव' (1८९९) और 'तीनों' (1९०1) में गोर्की ने शहर के अमीर और गरीब लोगों के जीवन का वर्णन किया है। 1८९९-1९०० में गोर्की का परिचय चेखव और लेव तालस्तॉय से हुआ। उसी समय से गोर्की क्रांतिकारी आंदोलन में भाग लेने लगे। 1९०1 में वे फिर गिरफ्तार हुए और उन्हें कालापानी मिला। 1९०2 में विज्ञान अकादमी ने गोर्की को समान्य सदस्य की उपाधि दी परंतु रूसी ज़ार ने इसे रद्द कर दिया।
  
गोर्की ने अनेक नाटक लिखे, जैसे 'सूर्य के बच्चे' (1९०५), 'बर्बर' (1९०५), 'तह में' (1९०2) आदि, जो बुर्जुआ विचारधारा के विरुद्ध थे। गोर्की के सहयोग से 'नया जीवन' बोल्शेविक समाचारपत्र का प्रकाशन हो रहा था। 1९०५ में गोर्की पहली बार लेनिन से मिले। 1९०६ में गोर्की विदेश गए, वहीं इन्होंने 'अमरीका में' नामक एक कृति लिखी, जिसमें अमरीकी बुर्जुआ संस्कृति के पतन का व्यंगात्मक चित्र दिया गया था। नाटक 'शत्रु' (1९०६) और 'मां' उपन्यास में (1९०६) गोर्की ने बुर्जुआ लोगों और मजदूरों के संघर्ष का वणर्न किया है। यह है विश्वसाहित्य में पहली बार इस प्रकार और इस विषय का उदाहरण। इन रचनाओं में गोर्की ने पहली बार क्रांतिकारी मजदूर का चित्र दिया। लेनिन ने इन कृतियों की प्रशंसा की। 1९०५ की क्रांति के पराजय के बाद गोर्की ने एक लघु उपन्यास - 'पापों की स्वीकृति' ('इस्पावेद') लिखा, जिसमें कई अध्यात्मवादी भूलें थीं, जिनके लिये लेनिन ने इसकी सख्त आलोचना की। 'आखिरी लोग' और 'गैरजरूरी आदमी की जिंदगी' (1९11) में सामाजिक कुरीतियों की आलोचना है। 'मौजी आदमी' नाटक में (1९1०) बुर्जुआ बुद्धिजीवियों का व्यंगात्मक वर्णन है। इन वर्षों में गोर्की ने बोल्शेविक समाचारपत्रों 'ज़्वेज़्दा' और 'प्रवदा' के लिये अनेक लेख भी लिखे। 1९11-13 में गोर्की ने 'इटली की कहानियाँ' लिखीं जिनमें आजादी, मनुष्य, जनता और परिश्रम की प्रशंसा की गई थी। 1९12-1६ में 'रूस में' कहानीसंग्रह प्रकाशित हुआ था जिसमें तत्कालीन रूसी मेहनतकशों की मुश्किल जिंदगी का प्रतिबिंब मिलता है।
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गोर्की ने अनेक नाटक लिखे, जैसे 'सूर्य के बच्चे' (1९०5), 'बर्बर' (1९०5), 'तह में' (1९०2) आदि, जो बुर्जुआ विचारधारा के विरुद्ध थे। गोर्की के सहयोग से 'नया जीवन' बोल्शेविक समाचारपत्र का प्रकाशन हो रहा था। 1९०5 में गोर्की पहली बार लेनिन से मिले। 1९०६ में गोर्की विदेश गए, वहीं इन्होंने 'अमरीका में' नामक एक कृति लिखी, जिसमें अमरीकी बुर्जुआ संस्कृति के पतन का व्यंगात्मक चित्र दिया गया था। नाटक 'शत्रु' (1९०६) और 'मां' उपन्यास में (1९०६) गोर्की ने बुर्जुआ लोगों और मजदूरों के संघर्ष का वणर्न किया है। यह है विश्वसाहित्य में पहली बार इस प्रकार और इस विषय का उदाहरण। इन रचनाओं में गोर्की ने पहली बार क्रांतिकारी मजदूर का चित्र दिया। लेनिन ने इन कृतियों की प्रशंसा की। 1९०5 की क्रांति के पराजय के बाद गोर्की ने एक लघु उपन्यास - 'पापों की स्वीकृति' ('इस्पावेद') लिखा, जिसमें कई अध्यात्मवादी भूलें थीं, जिनके लिये लेनिन ने इसकी सख्त आलोचना की। 'आखिरी लोग' और 'गैरजरूरी आदमी की जिंदगी' (1९11) में सामाजिक कुरीतियों की आलोचना है। 'मौजी आदमी' नाटक में (1९1०) बुर्जुआ बुद्धिजीवियों का व्यंगात्मक वर्णन है। इन वर्षों में गोर्की ने बोल्शेविक समाचारपत्रों 'ज़्वेज़्दा' और 'प्रवदा' के लिये अनेक लेख भी लिखे। 1९11-13 में गोर्की ने 'इटली की कहानियाँ' लिखीं जिनमें आजादी, मनुष्य, जनता और परिश्रम की प्रशंसा की गई थी। 1९12-1६ में 'रूस में' कहानीसंग्रह प्रकाशित हुआ था जिसमें तत्कालीन रूसी मेहनतकशों की मुश्किल जिंदगी का प्रतिबिंब मिलता है।
  
'मेरा बचपन' (1९12-13), 'लोगों के बीच' (1९14) और 'मेरे विश्वविद्यालय' (1९23) उपन्यासों में गोर्की ने अपनी जीवनी प्रकट की। 1९1७ की अक्टूबर क्रांति के बाद गोर्की बड़े पैमाने पर सामाजिक कार्य कर रहे थे। इन्होंने 'विश्वसाहित्य' प्रकाशनगृह की स्थापना की। 1९21 में बीमारी के कारण गोर्की इलाज के लिये विदेश गए। 1९24 से वे इटली में रहे। 'अर्तमोनोव के कारखाने' उपन्यास में (1९2५) गोर्की ने रूसी पूँजीपतियों और मजदूरों की तीन पीढ़ियों की कहानी प्रस्तुत की। 1९31 में गोर्गी स्वदेश लौट आए। इन्होंने अनेक पत्रिकाओं और पुस्तकों का संपादन किया। 'सच्चे मनुष्यों की जीवनी' और 'कवि का पुस्तकालय' नामक पुस्तकमालाओं को इन्होंने प्रोत्साहन दिया। 'येगोर बुलिचेव आदि' (1९32) और 'दोस्तिगायेव आदि' (1९33) नाटकों में गोर्की ने रूसी पूँजीपतियों के विनाश के अनिवार्य कारणों का वर्णन किया। गोर्की की अंतिम कृति- 'क्लिम समगीन की जीवनी' (1९2५-1९3६) अपूर्ण है। इसमें 1८८०-1९1७ के रूस के वातावरण का विस्तारपूर्ण चित्रण किया गया है। गोर्की सोवियत लेखकसंघ के सभापति थे। गोर्की की समाधि मास्को के क्रेमलिन के समीप है। मास्को में गोर्की संग्रहालय की स्थापना की गई थी। निज़्हनीय नावगोरोद नगर को 'गोर्की' नाम दिया गया था। गोर्की की कृतियों से सोवियत संघ और सारे संसार के प्रगतिशील साहित्य पर गहरा प्रभाव पड़ा। गोर्की की अनेक कृतियाँ भारतीय भाषाओं में अनूदित हुई हैं। महान्‌ हिंदी लेखक प्रेमचंद गोर्की के उपासक थे।
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'मेरा बचपन' (1९12-13), 'लोगों के बीच' (1९14) और 'मेरे विश्वविद्यालय' (1९23) उपन्यासों में गोर्की ने अपनी जीवनी प्रकट की। 1९1७ की अक्टूबर क्रांति के बाद गोर्की बड़े पैमाने पर सामाजिक कार्य कर रहे थे। इन्होंने 'विश्वसाहित्य' प्रकाशनगृह की स्थापना की। 1९21 में बीमारी के कारण गोर्की इलाज के लिये विदेश गए। 1९24 से वे इटली में रहे। 'अर्तमोनोव के कारखाने' उपन्यास में (1९25) गोर्की ने रूसी पूँजीपतियों और मजदूरों की तीन पीढ़ियों की कहानी प्रस्तुत की। 1९31 में गोर्गी स्वदेश लौट आए। इन्होंने अनेक पत्रिकाओं और पुस्तकों का संपादन किया। 'सच्चे मनुष्यों की जीवनी' और 'कवि का पुस्तकालय' नामक पुस्तकमालाओं को इन्होंने प्रोत्साहन दिया। 'येगोर बुलिचेव आदि' (1९32) और 'दोस्तिगायेव आदि' (1९33) नाटकों में गोर्की ने रूसी पूँजीपतियों के विनाश के अनिवार्य कारणों का वर्णन किया। गोर्की की अंतिम कृति- 'क्लिम समगीन की जीवनी' (1९25-1९3६) अपूर्ण है। इसमें 1८८०-1९1७ के रूस के वातावरण का विस्तारपूर्ण चित्रण किया गया है। गोर्की सोवियत लेखकसंघ के सभापति थे। गोर्की की समाधि मास्को के क्रेमलिन के समीप है। मास्को में गोर्की संग्रहालय की स्थापना की गई थी। निज़्हनीय नावगोरोद नगर को 'गोर्की' नाम दिया गया था। गोर्की की कृतियों से सोवियत संघ और सारे संसार के प्रगतिशील साहित्य पर गहरा प्रभाव पड़ा। गोर्की की अनेक कृतियाँ भारतीय भाषाओं में अनूदित हुई हैं। महान्‌ हिंदी लेखक प्रेमचंद गोर्की के उपासक थे।
  
  

०७:३७, १८ अगस्त २०११ का अवतरण

लेख सूचना
मक्सिम गोर्की
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 4
पृष्ठ संख्या 32
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक फूलदेव सहाय वर्मा
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1964 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक प्यौत्र अलेक्सीविच बारान्निकोव


मक्सिम गोर्की [१](1६.3.1८६८-1८.६.1९3६) महान रूसी लेखक। निज़्हना नोवगोरोद[२] नगर में जन्म हुआ। गोर्की के पिता बढ़ई थे। 11वर्ष की आयु से गोर्की काम करने लगे। 1८८4 में गोर्की का मार्क्सवादियों से परिचय हुआ। 1८८८ में गोर्की पहली बार गिरफ्तार किए गए थे। 1८९1 में गोर्की देशभ्रमण करने गए। 1८९2 में गोर्की की पहली कहानी 'मकार चुंद्रा' प्रकाशित हुई। गोर्की की प्रारंभिक कृतियों में रोमांसवाद और यथार्थवाद का मेल दिखाई देता है। 'बाज़ के बारे में गीत' (1८९5), 'झंझा-तरंगिका के बारे में गीत' (1८९5) और 'बुढ़िया इजेर्गील' (1९०1) नामक कृतियों में क्रांतिकारी भावनाएँ प्रकट हो गई थीं। दो उपन्यासों, 'फोमा गोर्देयेव' (1८९९) और 'तीनों' (1९०1) में गोर्की ने शहर के अमीर और गरीब लोगों के जीवन का वर्णन किया है। 1८९९-1९०० में गोर्की का परिचय चेखव और लेव तालस्तॉय से हुआ। उसी समय से गोर्की क्रांतिकारी आंदोलन में भाग लेने लगे। 1९०1 में वे फिर गिरफ्तार हुए और उन्हें कालापानी मिला। 1९०2 में विज्ञान अकादमी ने गोर्की को समान्य सदस्य की उपाधि दी परंतु रूसी ज़ार ने इसे रद्द कर दिया।

गोर्की ने अनेक नाटक लिखे, जैसे 'सूर्य के बच्चे' (1९०5), 'बर्बर' (1९०5), 'तह में' (1९०2) आदि, जो बुर्जुआ विचारधारा के विरुद्ध थे। गोर्की के सहयोग से 'नया जीवन' बोल्शेविक समाचारपत्र का प्रकाशन हो रहा था। 1९०5 में गोर्की पहली बार लेनिन से मिले। 1९०६ में गोर्की विदेश गए, वहीं इन्होंने 'अमरीका में' नामक एक कृति लिखी, जिसमें अमरीकी बुर्जुआ संस्कृति के पतन का व्यंगात्मक चित्र दिया गया था। नाटक 'शत्रु' (1९०६) और 'मां' उपन्यास में (1९०६) गोर्की ने बुर्जुआ लोगों और मजदूरों के संघर्ष का वणर्न किया है। यह है विश्वसाहित्य में पहली बार इस प्रकार और इस विषय का उदाहरण। इन रचनाओं में गोर्की ने पहली बार क्रांतिकारी मजदूर का चित्र दिया। लेनिन ने इन कृतियों की प्रशंसा की। 1९०5 की क्रांति के पराजय के बाद गोर्की ने एक लघु उपन्यास - 'पापों की स्वीकृति' ('इस्पावेद') लिखा, जिसमें कई अध्यात्मवादी भूलें थीं, जिनके लिये लेनिन ने इसकी सख्त आलोचना की। 'आखिरी लोग' और 'गैरजरूरी आदमी की जिंदगी' (1९11) में सामाजिक कुरीतियों की आलोचना है। 'मौजी आदमी' नाटक में (1९1०) बुर्जुआ बुद्धिजीवियों का व्यंगात्मक वर्णन है। इन वर्षों में गोर्की ने बोल्शेविक समाचारपत्रों 'ज़्वेज़्दा' और 'प्रवदा' के लिये अनेक लेख भी लिखे। 1९11-13 में गोर्की ने 'इटली की कहानियाँ' लिखीं जिनमें आजादी, मनुष्य, जनता और परिश्रम की प्रशंसा की गई थी। 1९12-1६ में 'रूस में' कहानीसंग्रह प्रकाशित हुआ था जिसमें तत्कालीन रूसी मेहनतकशों की मुश्किल जिंदगी का प्रतिबिंब मिलता है।

'मेरा बचपन' (1९12-13), 'लोगों के बीच' (1९14) और 'मेरे विश्वविद्यालय' (1९23) उपन्यासों में गोर्की ने अपनी जीवनी प्रकट की। 1९1७ की अक्टूबर क्रांति के बाद गोर्की बड़े पैमाने पर सामाजिक कार्य कर रहे थे। इन्होंने 'विश्वसाहित्य' प्रकाशनगृह की स्थापना की। 1९21 में बीमारी के कारण गोर्की इलाज के लिये विदेश गए। 1९24 से वे इटली में रहे। 'अर्तमोनोव के कारखाने' उपन्यास में (1९25) गोर्की ने रूसी पूँजीपतियों और मजदूरों की तीन पीढ़ियों की कहानी प्रस्तुत की। 1९31 में गोर्गी स्वदेश लौट आए। इन्होंने अनेक पत्रिकाओं और पुस्तकों का संपादन किया। 'सच्चे मनुष्यों की जीवनी' और 'कवि का पुस्तकालय' नामक पुस्तकमालाओं को इन्होंने प्रोत्साहन दिया। 'येगोर बुलिचेव आदि' (1९32) और 'दोस्तिगायेव आदि' (1९33) नाटकों में गोर्की ने रूसी पूँजीपतियों के विनाश के अनिवार्य कारणों का वर्णन किया। गोर्की की अंतिम कृति- 'क्लिम समगीन की जीवनी' (1९25-1९3६) अपूर्ण है। इसमें 1८८०-1९1७ के रूस के वातावरण का विस्तारपूर्ण चित्रण किया गया है। गोर्की सोवियत लेखकसंघ के सभापति थे। गोर्की की समाधि मास्को के क्रेमलिन के समीप है। मास्को में गोर्की संग्रहालय की स्थापना की गई थी। निज़्हनीय नावगोरोद नगर को 'गोर्की' नाम दिया गया था। गोर्की की कृतियों से सोवियत संघ और सारे संसार के प्रगतिशील साहित्य पर गहरा प्रभाव पड़ा। गोर्की की अनेक कृतियाँ भारतीय भाषाओं में अनूदित हुई हैं। महान्‌ हिंदी लेखक प्रेमचंद गोर्की के उपासक थे।


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. वास्तविक नाम-पेश्कोव अलेक्सै मक्सीमोविज
  2. आधुनिक गोर्की