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'''कुष्मांड या कूष्मांड''' एक लता जिसका फल पेठा, भतुआ, कोंहड़ा आदि नामों से भी अभिहित किया जाता है। इसका लैटिन नाम बेनिनकेसा हिस्पिडा (Benincasa hispida) है।
  
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कुष्मांड खेतों में बोया जाता अथवा छप्पर पर लता के रूप में चढ़ाया जाता है। कुष्मांड भारत में सर्वत्र उपजता है। आयुर्वेद में यह लघु, स्निग्ध, मधुर, शीतवार्य, बात, पित्त, क्षय, अपस्मार, रक्तपित्त और उनमाद नाशक, बलदायक, मूत्रजनक, निद्राकर, तृष्णाशामक और बीज कृमिनाशक आदि कहा गया है। इसके सभी भाग-फल, रस, बीज, त्वक्‌ पत्र, मूल, डंठल-तैल ओषधियों तथा अन्य कामों में प्रयुक्त होते हैं।
 
कुष्मांड खेतों में बोया जाता अथवा छप्पर पर लता के रूप में चढ़ाया जाता है। कुष्मांड भारत में सर्वत्र उपजता है। आयुर्वेद में यह लघु, स्निग्ध, मधुर, शीतवार्य, बात, पित्त, क्षय, अपस्मार, रक्तपित्त और उनमाद नाशक, बलदायक, मूत्रजनक, निद्राकर, तृष्णाशामक और बीज कृमिनाशक आदि कहा गया है। इसके सभी भाग-फल, रस, बीज, त्वक्‌ पत्र, मूल, डंठल-तैल ओषधियों तथा अन्य कामों में प्रयुक्त होते हैं।
  
इसके मुरब्बे, पाक, अवलेह, ठंढाई, घृत आदि बनते हैं। इसके फल में जल के अतिरिक्त स्टार्च, क्षार तत्व, प्रोटीन, मायोसीन शर्करा, तिक्त राल आदि रहते हैं। (रा. द. शा.)
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कुष्मांड के फलों के खाद्य अंश के विश्लेषण से प्राप्त आंकड़े इस प्रकार हैं आर्द्रता ९४.८; प्रोटीन ०.५; वसा (ईथर निष्कर्ष) ०.१; कार्बोहाइड्रेट ४.३; खनिज पदार्थ ०.३; कैल्सियम ०.१; फास्फोरस ०.३% लोहा ०.६ मि.ग्रा./,१०० ग्र. विटामिन सी, १८ मिग्रा. या १०० ग्रा.।
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कुम्हड़ा के बीजों का उपयोग खाद्य पदार्थों के रूप में किया जाता है। इसके ताजे बीज कृमिनाशक होते हैं। इसलिए इसके बीजों का उपयोग ओषधि के रूप में होता है।  
 
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लेख सूचना
कुष्मांड
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3
पृष्ठ संख्या 82-83
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक सुधाकर पांडेय
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1976 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक निरंकार सिहं

कुष्मांड या कूष्मांड एक लता जिसका फल पेठा, भतुआ, कोंहड़ा आदि नामों से भी अभिहित किया जाता है। इसका लैटिन नाम बेनिनकेसा हिस्पिडा (Benincasa hispida) है।

यह लता वार्षिकी, कठिन श्वेत रोमों से आवृत ५-६ इंच व्यास के पत्तों वाली होती है। पुष्प के साथ अंडाकार फल लगते हैं। कच्चा फल हरा, पर पकने पर श्वेत, बृहदाकार होता है। यह वर्षा के प्रारंभ में बोया जाता है। शिशिर में फल पकता है। बीज चिपटे होते हैं। इसके एक भेद को क्षेत्रकुष्मांड या कोंहड़ा कहते हैं, जो कच्ची अवस्था में हरा, पर पकने पर पीला हो जाता है।

कुष्मांड खेतों में बोया जाता अथवा छप्पर पर लता के रूप में चढ़ाया जाता है। कुष्मांड भारत में सर्वत्र उपजता है। आयुर्वेद में यह लघु, स्निग्ध, मधुर, शीतवार्य, बात, पित्त, क्षय, अपस्मार, रक्तपित्त और उनमाद नाशक, बलदायक, मूत्रजनक, निद्राकर, तृष्णाशामक और बीज कृमिनाशक आदि कहा गया है। इसके सभी भाग-फल, रस, बीज, त्वक्‌ पत्र, मूल, डंठल-तैल ओषधियों तथा अन्य कामों में प्रयुक्त होते हैं।

इसके मुरब्बे, पाक, अवलेह, ठंढाई, घृत आदि बनते हैं। इसके फल में जल के अतिरिक्त स्टार्च, क्षार तत्व, प्रोटीन, मायोसीन शर्करा, तिक्त राल आदि रहते हैं।

कुष्मांड के फलों के खाद्य अंश के विश्लेषण से प्राप्त आंकड़े इस प्रकार हैं आर्द्रता ९४.८; प्रोटीन ०.५; वसा (ईथर निष्कर्ष) ०.१; कार्बोहाइड्रेट ४.३; खनिज पदार्थ ०.३; कैल्सियम ०.१; फास्फोरस ०.३% लोहा ०.६ मि.ग्रा./,१०० ग्र. विटामिन सी, १८ मिग्रा. या १०० ग्रा.।

कुम्हड़ा के बीजों का उपयोग खाद्य पदार्थों के रूप में किया जाता है। इसके ताजे बीज कृमिनाशक होते हैं। इसलिए इसके बीजों का उपयोग ओषधि के रूप में होता है।



टीका टिप्पणी और संदर्भ