कुश

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लेख सूचना
कुश
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3
पृष्ठ संख्या 75-76
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक सुधाकर पांडेय
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1976 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक परमेश्वरीलाल गुप्त


कुश

(1) एक प्रकार का तृण। इसकी पत्तियाँ नुकीली, तीखी और कड़ी होती है। धार्मिक दृष्टि से यह बहुत पवित्र समझा जाता है और इसकी चटाई पर राजा लोग भी सोते थे। वैदिक साहित्य में इसका अनेक स्थलों पर उल्लेख है। अर्थवेद में इसे क्रोधशामक और अशुभनिवारक बताया गया है। आज भी नित्यनैमित्तिक धार्मिक कृत्यों और श्राद्ध आदि कर्मों में कुश का उपयोग होता है। कुश से तेल निकाला जाता था ऐसा कौटिल्य के उल्लेख से ज्ञात होता है। भावप्रकाश के मतानुसार कुश त्रिदोषघ्न और शैत्य-गुण-विशिष्ट है। उसकी जड़ से मूत्रकृच्छ, अश्मरी, तृष्णा, वस्ति और प्रदर रोग को लाभ होता है।

(2) एक पौराणिक प्रदेश जिसमें कुशस्तंब नामक पर्वत था। वायु पुराण के अनुसार यह जंबुद्वीप के निकट था। यहाँ का राजा हिरण्यरेतस्‌ का पुत्र था। उसने अपने राज्य को अपने सात पुत्रों में बाँट दिया। भागवत पुराण के अनुसार इस प्रदेश में अग्निपूजा प्रचलित थी और वहाँ कुशल नामक मानवसमाज रहता था। आधुनिक विद्वानों की धारणा है कि हिंदूकुश पर्वत के उत्तर कास्पियन और अरल सागर के बीच की भूमि का नाम कुशद्वीप था। कुछ विद्वान्‌ कुशद्वीप के अंतर्गत सहारा, सूडान, गिनी, कामरेन, कांग तथा पश्चिमी और दक्षिणी अफ्रका को सम्मिलित बताते हैं।

(1) दाशरथि राम के सीता से उत्पन्न यमज पुत्रों में ज्येष्ठ पुत्र। लोकापवाद के भय से जब राम ने गर्भवती सीता का परित्याग कर दिया। और लक्ष्मण उन्हें तमसा तट पर वाल्मीकि आश्रम के निकट छोड़ आए तब वाल्मीकि के आश्रम में कुश और लव का जन्म हुआ था। वाल्मीकि ने उनका पालन-पोषण किया, वेद आदि की शिक्षा दी और रामायण कंठस्थ कराया। धनुर्विद्या आदि में भी उन्हें निष्णात किया। जब अश्वमेध के निमित्त राम ने अश्व छोड़ा तो कुश-लव ने उसे पकड़ लिया। शत्रुघ्न अश्व की रक्षा के लिये नियुक्त थे। उन्हें इन दोनों भाइयों ने युद्ध में मूर्छित कर दिया। तब लक्ष्मण से उनका युद्ध हुआ। वे पराजित हुए। तब स्वयं राम को कुश-लव के अपना पुत्र होने की बात ज्ञात हुई। उन्होंने उन बालकों को अश्व का संरक्षक नियुक्त किया।
(2)भागवत पुराण के अनुसार राजा सुहोत्र के तीन पुत्रों में से एक का नाम।
(3)स्कंद पुराण के अनुसार एक दैत्य जिसे शंकर ने अमरत्व प्रदान किया था। इस कारण विष्णु उसका वध करने में असमर्थ रहे। तब उन्होंने उसका सिर जमीन में गाड़कर उस पर शिवलिंग की स्थापना की, इस प्रकार वह वशीभूत हो पाया।



टीका टिप्पणी और संदर्भ